हार पर भाजपा में बढऩे लगा है अब रार

हार पर भाजपा में बढऩे लगा है अब रार

रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के महीने भर बाद राजधानी में जुटे भाजपा नेताओं के बीच चर्चा तो लोकसभा की तैयारी को लेकर होनी थी लेकिन इतनी बड़ी हार को आखिर भूलें कैसे? बैठक में अध्यक्ष कौशिक के सुर अचानक बदल गए और उन्होने कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता को हार की वजह बता दी। कल तक जिन कार्यकर्ताओं के भरोसे चुनाव लड़ने दंभ भरते थे पार्टी नेता आज उन्हे ही दोषी ठहराने पर उतर आए। कौशिक की बात अधिकांश लोगों को बेमानी लगी और उन्होने मोर्चा खोल दिया। जो 15 साल सत्ता में रहे उन्हे हक नहीं बनता किसी को जयचंद या विभीषण कहने की। यदि यही हाल रहा तो लोकसभा में और बड़ी हार के लिए तैयार रहना चाहिए।

इस बीच वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर साहू का बयान भी काफी गंभीर है जिसमें उन्होने किसानों के साथ छल को हार की वजह बताया है। वे तो माफी मांगने तक तैयार हैं। पूर्व विधायक देवजी पटेल उनके समर्थन में खुलकर उतर गए हैं। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मीडिया प्रभारी तो खुले आम कौशिक की बखिया उधेड़ रहे हैं,लेकिन इस मामले पर अग्रवाल ने चुप्पी साध रखी है। भाजपा नेत्री सरोज पांडेय का बयान भी काफी बचकाना आया है। ननकीराम कंवर भी पूर्ववर्ती अपने ही सरकार के फैसलों के खिलाफ लगातार भड़ास निकाल रहे हैं।

हाल ही में लोकसभा चुनाव के लिए जो प्रभारी बनाये गए हैं उन्हे लेकर भी नाराजगी है इसलिए कि हारे हुए लोगों को कद बढ़ा दिया गया। हार के बाद नेता प्रतिपक्ष के चयन से उपजे विवाद से दूरियां इतनी बढ़ गई है कि अब प्रदेश अध्यक्ष कोई भी बने इसमें केवल इजाफा होना है। हार के बाद तो अधिकांश लोगों ने पार्टी कार्यालय से मुंह मोड़ लिया है। यह मानकर कि पांच साल अब काफी वक्त होता है। दरअसल भाजपा के बड़े नेताओं को यह कतई उम्मीद नहीं थी कि उनका इस तरह से सूफड़ा साफ हो जाएगा। जो लोग पार्टी के लिए पूरी तरह से समर्पित रहे और जिन्हे हार से वाकई दुख हैं वे अब खुलकर सामने आ गए हैं। उनका कहना है हार की असली वजह नौकरशाही का हावी होना है,सत्ता यदि बेलगाम हो रही थी तो कौशिक की अगुवाई में काम कर रही संगठन गूंगे-बहरे की तरह चुप क्यों बैठी थी? जिन पर तोहमत लगाये जा रहे हैं वे भी दो-चार करने के मूड में आ गए हैं यदि आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर खुद ही एक-दूसरे की पोल खोलने लगें तो कोई बड़ी बात नहीं।

भ्रष्टाचार की खुलती परत ने भी कान खड़े कर दिए हैं कि आखिर इन पन्द्रह सालों में हु्आ क्या है? कार्यकर्ताओं ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि अब समीक्षा की जरूरत नहीं है हार के कारण तो कांग्रेस सरकार बता रही है। जब नजाकत है हार को सामूहिक रूप से स्वीकारने और सबको साथ लेकर चलने की तब बड़े नेता अपने को पाक साफ बता रहे हैं और दोष के नाम पर कार्यकर्ताओं को जयचंद-विभीषण। वर्तमान नई सरकार ने जिस प्रकार महीने भर में अपने वादों को तत्परता से पूरा किया है। स्थिति जस की तस है और मतदाताओं का भरोसा और मजबूत हुआ है। यदि पार्टी के भीतर बड़े नेताओं ने अपने तौर तरीके नहीं बदले तो लोकसभा चुनाव में दस-एक से एक-दस होने में देर नहीं।

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