घर-घर में महाभारत तो कैसे आएगा राम का आदर्श
रायपुर। आज घर-घर में महाभारत हो रहा है तो राम राज्य की कल्पना कैसे की जा सकती है। आपने राम को आदर्श माना कहां ? जब जन्माष्टमी पर अपने ही ईस्ट देव श्रीकृष्ण को इस युग का डान बताते हुए व्हाट्सएप मैसेज संपे्रषित किया जा रहा है,तब ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है। न धर्म और न ही सत्य को जानने वाले ऐसे अवांछित लोग भगवान की लीलाओं को भी नहीं समझ पाये। तब क्या होगा ऐसे व्यक्ति, परिवार व समाज का भविष्य अंदाजा लगा सकते हैं।
मानस एवं गीता भागवत पुराण में आत्म प्रबंधन को आज के परिवेश में परिवार व समाज से जोड़कर कई महत्वपूर्ण सूत्र मानस मर्मज्ञ दीदी मां मंदाकिनी ने बताया कि परमात्मा एक है और उन्होने अपनी विभिन्न लीलाओं के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन किया है। लेकिन विडंबना आजकल लोग इन लीलाओं को अपनी दृष्टि से प्रतिपादित करने लगे हैं।
परिवार, समाज, राष्ट्र हर स्तर पर चाहते हैं कि राम राज्य की स्थापना हो, पर कैसे होगा क्या आपने श्रीराम के आदर्शों का पालन किया है। संपत्ति और सत्ता के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। कौरव-पांडव भाईयों की जंग में महाभारत हुआ था नतीजा सभी को मालूम है। लेकिन रामायण में देखें बड़े भाई को वनवास हुआ तो छोटे भाई ने चरणपादुका लेकर ही चौदह वर्ष गुजार दिए। क्या आज राम और भरत जैसे भाई मिलेंगे। स्वार्थ के बंधन में धर्म के उन सत्य तत्वों को नहीं समझेंगे तो कैसे होगी रामराज्य की स्थापना? सत्य ही सबसे बड़ा धर्म है।आज के समाज में लाभ और स्वार्थ की रक्षा में लगे लोग धर्म को मान्यता देते हैं।
किस ओर जा रहा है समाज-
दीदी मंदाकिनी ने इस बात पर दुख जताते हुए आगाह भी किया कि जन्माष्टमी के अवसर पर कुछ कुटिल तत्वों द्वारा यह मैसेज संप्रेषित किया गया कि श्रीकृष्ण तो इस युग के डान हैं, इसलिए कि उन्होने छल, झूठ के साथ अन्याय किया था। घर में अपने ईष्ट देव का पूजा तो जरूर कर रहे हैं पर उनकी लीलाओं को समझने में हम आज भी चूक कर रहे हैं। इतनी भागवत कथाएं हो रही हैं, फिर भी भगवान की लीलाओं का सही चित्रण और अनुसरण नहीं कर पाये। आखिर किस दिशा में जा रहा है हमारा समाज।
प्रहलाद से सीखें पितृ भक्ति
वास्तविक पितृभक्ति की सीख लेनी है तो भक्त प्रहलाद से लें, जिन्हें तमाम प्रकार की प्रताड़नाएं मिली फिर भी पिता की आज्ञा नहीं मानी लेकिन पिता का उद्धार भी कर दिया।
दृष्टि मलीन है तो कैसे होंगे दर्शन
हमारी दृष्टि मलीन है, इसलिए परमात्मा का दर्शन नहीं हो रहा है। दृष्टि को बढ़ाने के लिए अंजन लगा रहे,अब धर्म का अंजन लगाकर भी सत्य को नहीं देख पा रहे हैं तो वह अंजन असली नहीं है।
00 सत्य ही सबसे बड़ा धर्म – दीदी मंदाकिनी