नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि यदि महिला से शादी करने का किया गया वादा शुरू से झूठा है तो उसे रेप माना जा सकता है, अन्यथा ये रेप नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए रेप के एक अरोपी के खिलाफ दाखिल चार्जशीट निरस्त करने का आदेश दिया है। यह मामला उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने यह आदेश आरोपी सोनू की विशेष अनुमति याचिका पर दिया। सोनू ने याचिका में FIR और चार्जशीट निरस्त करने का आग्रह किया था। कोर्ट ने आदेश में कहा कि एफआईआर और चार्जशीट को पढ़ने भर से तथा साथ में पीड़ित के बयान से साफ है कि जब दोनों के बीच संबंध बना तब उसकी ओर से शादी करने का कोई इरादा नहीं था। न ही यह कहा जा सकता है कि शादी करने का वादा झूठा था।
पीठ ने फैसले में कहा कि अभियुक्त और पीड़ित के बीच रिश्ता आपसी सहमति का था। वहीं दोनों इस रिश्ते में करीब डेढ़ वर्ष से थे। बाद में जब अभियुक्त ने शादी करने से मना किया तो उसके आधार पर एफआईआर दर्ज करवाई गई। इस मामले में FIR साफ कह रही है कि अभियुक्त और शिकायतकर्ता के बीच संबंध एक साल से ज्यादा समय से थे।
उसका अरोप था कि शादी के लिए अभियुक्त के परिजन राजी थे लेकिन अब शादी के लिए मना कर रहे हैं। इससे लगता है कि उसकी एकमात्र शिकायत सोनू का उससे विवाह नहीं करना है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में शादी करने से मनाही बाद में की गई है जिसके आधार पर एफआईआर हुई है। हमें लगता है कि इस मामले में रेप का कोई आरोप नहीं बनता है। क्योंकि यह सामने नहीं आया है कि शादी का झूठा वादा करके सबंध बनाए गए।
पीठ ने कहा कि पीबी पवार बनाम महाराष्ट्र केस में हम तय कर चुके हैं कि धारा 375 के तहत महिला की सहमति कब और कैसे होगी। यह स्थापित करने के लिए दो बाते सिद्ध करनी होंगी :
1. शादी का वादा झूठा होना चाहिए, बुरे इरादे से दिया गया हो और अभियुक्त का वादा करने के समय ही उसका उसे पूरा करने का कोई इरादा न हो।
2. ये झूठा वादा बहुत नया हो और तुरंत किया गया हो या इस वादे का महिला पर उससे संबंध बनाने के बारे में फैसला लेने से सीधा संबंध हो।