Paris olympics 2024: खराब मौसम के बावजूद प्राचीन खेलों के जन्मस्थली यूनान में पेरिस ओलिंपिक की लौ जलाई गई

अन्तर्राष्ट्रीय डेस्क(Bns)। प्राचीन ओलिंपिया (यूनान): ‘अपोलो’ (सूर्य देवता) की मदद के बिना ही पेरिस ओलिंपिक में जलने वाली लौ मंगलवार को दक्षिणी यूनान में प्राचीन खेलों के स्थल पर जलाई गई। आसमान में बादलों के कारण सूर्य की किरणें नहीं दिखीं और मंगलवार को पारंपरिक तरीके से लौ जलाने के प्रयास विफल हो गए। पारंपरिक तरीके में चांदी की मशाल जलाने के लिए सूरज की किरणों का इस्तेमाल किया जाता है जिसके लिए प्राचीन यूनान की पुजारिन की पोशाक पहने एक युवती हाथ में मशाल लिए रहती थी। यूनान के सूर्य देवता ‘अपोलो’ की प्रार्थना के बाद किरणों से लौ जलाई जाती थी, लेकिन इसके बजाय मंगलवार को एक ‘बैकअप’ लौ का उपयोग किया गया था, जिसे सोमवार को अंतिम ‘रिहर्सल’ के दौरान उसी स्थान पर जलाया गया था।

सामान्यत: चुन्नटवाली लंबी पोशाक पहने पुजारिनों का एक समूह ईंधन से भरी मशाल को एक अवतल दर्पण ‘पैराबोलिक मिरर’ के सामने रखता, जिससे सूर्य की किरणें मशाल पर केंद्रित हो जाती और लौ जलने लगती। लेकिन इस बार ऐसी कोशिश ही नहीं की गई। सीधे ‘बैकअप’ का इस्तेमाल किया गया। विडंबना यह है कि कुछ मिनट बाद सूरज चमकने लगा। ओलिंपिया के प्राचीन स्टेडियम से मशालधारियों की रिले मशाल को प्राचीन ओलिंपिया के खंडहर मंदिरों और खेल मैदानों से 5000 किमी (3100 मील) से ज्यादा की दूरी तक ले जाएगी।

यूनान में रिले की 11 दिवसीय यात्रा एथेंस में 26 अप्रैल को पेरिस 2024 के आयोजकों को मशाल सौंपने के साथ समाप्त होगी। सबसे पहले मशाल यूनान के रोअर स्टेफानोस डोस्कोस को दी गयी जिन्होंने तोक्यो में 2021 में स्वर्ण पदक जीता था। वह इसे लेकर करीब के स्मारक की ओर भागे। इसके बाद मशाल फ्रांस की तैराक लौरे मानाउडोउ को सौंपी गयी जिन्होनें 2004 में एथेंस में तीन पदक जीते थे। उन्होंने मशाल यूरोपीय संघ के एक सीनियर अधिकारी मारगारिटिस शिचिनास को सौंपी।

सोर्स : एजेंसी

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