वाशिंगटन। कोविड-19 वैश्विक महामारी से जिन देशों में सबसे अधिक मौतें हुई हैं उनमें जरूरी नहीं कि वे सबसे गरीब, सबसे अमीर या सबसे घनी आबादी वाले देश हों, लेकिन उनमें एक समानता जरूर है और वह यहकि इन देशों के नेता लोकलुभावनवादी और परंपरागत ढर्रे से अलग हट कर चलने वाले हैं। राजनीति में लोकलुभावनवादी का मतलब ऐसी नीतियों से होता है जोआमजन में तो ‘‘लोकप्रिय हों ’’ लेकिन प्रबुद्ध वर्ग और विशेषज्ञोंमेंनहीं। अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन के बोरिस जॉनसन और ब्राजील के जेयर बोलसोनारो के साथ ही भारत के नरेंद्र मोदी और मैक्सिको के आंद्रेस मैनुअल लोपेज ओब्राडोर जनता को सामाजिक फायदों का वादा कर पुरानी व्यवस्था को चुनौती देते हुए लोकतांत्रिक देशों में सत्ता में आए हैं। लेकिन जब कोविड-19 जैसी नयी बीमारी से लड़ने की बात आती है तो लोकलुभावनवादी नीतियों के बजाय यूरोप में जर्मनी, फ्रांस और आयरलैंड या एशिया में दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों में उदार लोकतांत्रिक नीतियां फायदेमंद साबित हुई हैं।
वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक ‘इंटर-अमेरिकन डायलॉग’ के अध्यक्ष माइकल शिफ्टर ने कहा, ‘‘यह जन स्वास्थ्य संकट है जिससे निपटने के लिए विशेषज्ञता और विज्ञान की जरूरत है। लोकलुभावनवादी स्वभाव के नेता विशेषज्ञों और विज्ञान की अवहेलना करते हैं।’’ शिफ्टर ने कहा, ‘‘ब्राजील और अमेरिका में विशेषज्ञता है लेकिन दिक्कत यह है कि लोकलुभावनवादी नीतियों से ऐसी तर्कवादी नीतियां लागू करने में बहुत मुश्किल होती है जिससे मुद्दे हल होते हैं या कम से कम संकट से प्रभावी तौर पर निपटते हैं।’’ अमेरिका, ब्राजील, ब्रिटेन और मैक्सिको जैसेदेशों का नेतृत्व ऐसे नेता कर रहे हैं जिन्हें वैज्ञानिकों पर शंका है और जिन्होंने शुरुआत में इस बीमारी को हल्के में लिया। इन चार देशों में दुनिया में कोरोना वायरस से हुई 618,000 मौतों में आधी मौतें हुई हैं। इस बीच भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया है। वहां कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या अभी 12 लाख के पार हुई है। भारत में मोदी ने लॉकडाउन के जरिए इस बीमारी से निपटने में काफी आक्रामकता दिखाई।