कैग की रिपोर्ट में पकड़ायी गड़बड़ी,भारी घोटाला
रायपुर। सीएनजी की रिपोर्ट में आज एक बार फिर बड़ी गड़बड़ी पकड़ी गयी है। ई टेंडरिंग में जहां बड़े पैमाने पर गडबड़ी हुई है वहीं स्वास्थ्य विभाग को पूरी तरह बीमारू बताया है। महालेखाकर विजय कुमार मोहंती ने सीएनजी की रिपोर्ट पेश किये जाने के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर इसकी पूरी जानकारी दी। मोहंती ने बताया कि तीन अलग-अलग सेक्टरों में रिपोर्ट पेश की गयी है। सोशल सेक्टर में भी बड़े पैमाने पर गड़बडि़यां सामने आयी है।
मोहंती ने बताया कि रिपोर्ट में 21 वैसी स्कूलों में गड़बडि़यों का खुलासा हुआ, जो अस्तित्व में ही नहीं था। उस स्कूल के नाम पर एससी-एसटी के स्कालरशिप लिये जा रहे थे। इस मामले में एक करोड़ 40 लाख रुपये की रिकवरी का आदेश दिये गया है और एफआईआर भी दर्ज कराये गये हैं। इस मामले में 20 अधिकारियों पर एफआइआर दर्ज की गयी है। इनमें सरकारी स्कूल के 6 प्रिंसिपल ओर प्राइवेट स्कूल के 13 प्रिंसिपल शामिल हैं। वहीं रविशंकर यूनिवर्सिटी में भी तय ट्रांसपोर्ट एलाउंस से ज्यादा भत्ता लिये जाने का खुलासा रिपोर्ट में किया गया है। ये रकम भी 1 करोड़ से ज्यादा की है, इसे भी रिकवर किया गया है।
एक बड़ा ही सनसनीखेज खुलासा करते हुए ई टेंडर में द्वारा 4601 करोड़ के 74 कॉमन कम्प्यूटर से गलत तरीके से बिडिंग का खुलासा हुआ है। जिस पर कार्रवाई की गई टेंडर में बड़े पैमाने पर घोटाले का भी खुलासा हुआ है। जांच में सीएनजी ने पाया है कि जिन कम्प्युटरों से टेंडर को जारी किया गया था, उसी कम्प्युटर आईपी से टेंडर भरे गये। मतलब आशंकाएं है कि टेंडर अधिकारियों ने भरे हैं। 4600 रुपये के टेंडर में 74 ऐसे कप्यूटर का इस्तेमाल टेंडर भरने के लिए किया गया, जिससे टेंडर निकाले गये थे।
सरकार की ई टेंडरिंग प्रकिया में 17 विभागों द्वारा चिप्स संस्था के ज़रिए 1921 निविदाओं के 4601 करोड़ की निविदाएं भारी गई। खास बात की ये सभी निविदाएं एक ही कम्प्यूटर से भरी गई। 79 वेंडर्स ने दो दो पेनकार्ड का उपयोग किया गया जिसको वेरिफाई नही किया गया। ज़्यादातर वेंडर्स के कॉमन ईमेल आईडी से निविदा भरी गई जिसमें पारदर्शिता का उल्लंघन किया गया।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में सीएनजी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि राज्य में 90 प्रतिशत स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की कमी है। अस्पतालों में दवाइयों का 40 से 76 प्रतिशत तक की कमी है। वहीं 36 से 71 प्रतिशत प्रयोगशालाओं की कमी है, जिससे लोगो को सुविधाएं नहीं मिल रही है। चौकाने की बात ये है कि 186 हॉस्पिटल्स 5 साल से अधूरे हैं, जिनमें 14 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। सबसे बड़ी परेशानी दवाइयों की कमी है, सही समय पर दवाइयों की खरीदी और वितरण नही होने के कारण परेशानी आ रही है। डिलेवरी के लिए आने वाली महिलाओं को 24 घंटे अस्पताल में होना चाहिये लेकिन सुविधाओं की कमी के कारण वे नहीं रहती, जिसके कारण शिशु और मातृ मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई है।