सद्गुण के साथ अभिमान आ गया तो तय है पतन – दीदी मंदानिकनी

सद्गुण के साथ अभिमान आ गया तो तय है पतन – दीदी मंदानिकनी

रायपुर। साधना का उद्देश्य है सद्गुण आए और दुर्गुण दूर हो जाए। सद्गुण को लाने में काफी प्रयास करना पड़ता है, लेकिन सद्गुण आते ही अभिमान भी आ जाता है और यहीं से व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है। सारे सदगुण क्यों न हो यदि प्रभु के प्रति भक्ति और प्रेम नहीं है तो वह व्यक्ति किसी काम का नहीं। मानस ने तो कहा है ऐसे में जुटाए कर्म और धन भी जलाने योग्य है।

गुरूतेगबहादुर सभागार में चल रही श्रीराम कथा अनुष्ठान में मानस एवं गीता भागवत पुराण में आत्म प्रबंधन विषय पर मानस मर्मज्ञ दीदी मां मंदाकिनी ने बताया कि हम सब चाहते हैं कि हमारे भीतर सद्गुण आए पर वे टिकते नहीं। यदि अभिमान आ गया तो वह आपके लिए नकारात्मक होगा। द्वापर युग में कंस जानता था कि देवकी का आठवां पुत्र उसके मौत का कारण बनेगा फिर भी वह छह पुत्रों का वध करता है। उसका अभिमान ही पतन का कारण बना। धर्म के व्याख्याकार गुरु वशिष्ट ने भी कहा है कि योग-वियोग और ज्ञान-अज्ञान है जहां राम के प्रति प्रेम नहीं हैं।

प्रकृति के साथ विकृति जुड़ी हुई है। लेकिन प्रभु की करूणा ऐसी है कि वे विकृति को भी स्वीकार लेते हैं,राम और कृष्ण जन्म के अवसर को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि त्रेतायुग में प्रकृति पूरी तरह से अनुकूल थी लेकिन द्वापर में बारिश का दिन होने के बाद भी यमुना का मटमैला जल बिल्कुल ही निर्मल हो गया था, यह श्यामसुंदर की कृपा थी। साधक के अंत:करण का दोष (मलीनता) भी उनकी कृपा से दूर हो जाता है।

साधना का उद्देश्य क्या है

सद्गुण आए और दुर्गुण दूर हो जाए। आज आंखें बंद कर साधना तो कर रहे हैं, लेकिन मन भटक रहा है। ध्यान किसका कर रहें हैं? बहिरंग स्थूल को प्रवेश करने से नहीं रोकेंगे तो साधना का औचित्य नहीं।

जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ही है सच्चा योग

आज योग को अंग्रेजियत की नजर से सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखने के माध्यम के रूप में प्रस्तुत करते हुए योगा का नामकरण दे दिया गया है। लेकिन जीव के अंदर छिपी और सोई शक्ति को जागृत कर लेते हैं, तब जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ही सच्चा योग है। योग और साधना के द्वारा तो रावण ने भी सर्वशक्ति प्राप्त कर लिया था लेकिन राम नाम की शक्ति इतनी थी कि वह किशोरीजी को किंचित भी स्पर्श नहीं कर सका। वह योग किस काम का जिसमें प्रभु के प्रति प्रेम और भक्ति न हो?

क्या है ज्ञान की व्याख्या

आज हर कोई अपने को ज्ञानी बताने लगते हैं, लेकिन मानस के अनुसार स्वस्वरूप का बोध हो जाना ही ज्ञान है। सभी को समान रूप से जो देखेगा वही ज्ञानी है, नहीं तो दुर्लभ जीवन में पतन के सिवाय कुछ भी नहीं हैं। ज्ञान के बाद भी भगवान का भजन जरूरी है। जिस दिन उनकी कृपा आ जाएगी सारे गुण स्वमेव आ जाएंगे और कोई व्यवधान नहीं रहेगा। जब तक आत्म प्रबंधन के इन सारे गुर को आप जीवन में नहीं उतारेंगे तो योग, ध्यान, साधना, तप, ज्ञान और भक्ति सब अधूरा है।

00 जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ही सच्चा योग

संबंधित समाचार

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.