अनुभूति नहीं कर पा रहे हैं, ईश्वर तो आपके भीतर है – स्वामी परिवाज्रक

अनुभूति नहीं कर पा रहे हैं, ईश्वर तो आपके भीतर है – स्वामी परिवाज्रक

रायपुर। आज एक बड़ा यक्ष सवाल पूछा जाता है कि ईश्वर का बोध हमें क्यों नहीं हो रहा है? इसमें गलती ईश्वर की नहीं आप की है, वे तो आपके भीतर हैं लेकिन आप अनुभूति नहीं कर पा रहे हैं। आत्मा का बोध और ईश्वर का बोध दोनों अलग-अलग है। तमाम विकारों में फंसे मनुष्य इसे समझ नहीं पाता। मनुष्य कैसे ज्यादा से ज्यादा खुश रहे इसे आप से कहीं अधिक ईश्वर जानते हैं। ईश्वर सर्वव्यापी हैं। पाप और पुण्य का फल भोगना ही पड़ता है। सच और झूठ को जानने के लिए वेदों को पढऩा और ज्ञान होना भी जरूरी है।

वेद शास्त्रों पर आधारित जीवन निर्माण शिविर में शनिवार को वृंदावन सभागार में जुटे साधकों की जिज्ञासाओं का गुजरात से आए वैदिक संत स्वामी विवेकानंद परिवाज्रक सरल तरीके से समाधान किया। उन्होंने बताया कि हर विषय पर हम तर्क-कुतर्क तो कर लेतें है लेकिन वेदों में जो बातें लिखी हैं वह पूरी तरह से सच और सत्यापित हैं। आप उपदेशक की बात पर सहमत भी न हों लेकिन सरल सा उदाहरण है कि भोज्य पदार्थ में मांसाहारी भोजन के साथ सिगरेट, बीड़ी, शराब जैसी चीजों का व्यसन करते हैं तो आपकी उम्र निश्चित रूप से घटेगी और यही मौत का कारण भी बनेगा। ठीक इसके विपरीत दिनचर्या के साथ संयमित रूप से शाकाहारी भोजन करने वाले की आयु कहीं अधिक रहती है। जो भोज्य पदार्थ बुद्धि को नाश कर देता है वह मन को भी भटकाता है और यहां तक कि गलत काम करने के लिए प्रेरित करता है।

उन्होंने कहा कि ईश्वर ने सृष्टि बनायी है तो उन्हे संभावना भी मालूम है सत्य और असत्य क्या है लोग पहचान नहीं कर पा रहे हैं। पाप और पुण्य क्या कर रहे यह भी नहीं मालूम, लेकिन इसका फल अगले जन्म में अवश्य मिलता है। मनुष्य योनि देने से पहले ईश्वर के यहां इसका आकलन जरूर हो जाता है। यह तो वेदों में भी बताया गया है कि ज्यादा पाप करने वाले मनुष्य को अगले जन्म में जानवर की योनि वरण करना पड़ता है।

कुछ लोगों ने सवाल किया कि सुबह उठने पर वेद पुराण की जगह ईश्वर को याद करना ज्यादा उचित मानते हैं। स्वामी जी ने समझाया कि इसमें गलत क्या है सिर्फ आप क्रम ही तो बदल रहे हैं। लेकिन आज कहां हर कोई उठते ही मोबाइल में पहले व्हाट्सएप चेक करने में लग जाते है। ईश्वर तो हमेशा आपके भीतर है लेकिन आप अनुभूति नहीं कर पाते और उन्हे ढूंढने जाते हैं। डा. राकेश दुबे ने बताया कि पतंजलि योग समिति, भारत स्वाभिमान न्यास, वैदिक सत्संग और युवा भारत के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित शिविर का दो दिन में काफी संख्या में लाभ उठाया।

00 वेदों ने भी कहा है, पाप, पुण्य, सच, झूठ का फल भोगना ही पड़ेगा

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