सफलता के लिए मनुष्य जीवन में संतुलन जरूरी

सफलता के लिए मनुष्य जीवन में संतुलन जरूरी

रायपुर। मनुष्य जीवन में सफलता पाने के लिए सब से प्रमुख घटक है संतुलन। जिसका जीवन रथ असंतुलित हो गया वह अवश्य दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगा। भगवान ने अपने अवतारों के माध्यम से जीवन प्रबंधन के तरीके बताये हैं। जीवन में प्रकाश और अंधकार दोनों की जरूरत है। संतुलन भौतिकजगत ही नहीं बल्कि अंतरजगत में भी है जरूरी।

बुधवार से गुरूतेग बहादुर भवन में उक्त विचार श्री रामकिंकर आध्यात्मिक मिशन के तत्वावधान में आयोजित सप्त दिवसीय रामकथा ज्ञान यज्ञ में युग तुलसी महाराजश्री रामकिंकरजी की उत्तराधिकारी दीदी मां मंदानिकी के द्वारा रखे गए। उन्होने कहा कि संतुलन केवल भौतिक जगत में ही नहीं, अंतर जगत में भी परमावश्यक है। मन, बुद्धि, चित और अहंकार इन चारों में भी जब तक सामंजस्य नहीं होता तो व्यक्ति अंतर कलह से व्यथीत हो जाता है जिसके भयानक दुष्परिणाम हो सकते है। वर्तमान समय में आधुनिक जीवनशैली के भी दुष्प्रभाव अब व्यक्ति के समक्ष आ रहे है। बढ़ते हुए शारीरिक एवं मानसिक रोगों का कारण विदेशीकरण को बताया जा रहा है। जब तक अंतर और स्थूल शरीर से विषहरण नहीं होगा तब तक पूर्ण स्वस्थता संभव नहीं है।

भगवान श्रीराम और कृष्ण ने इस धाम पर अवतरित होकर व्यक्ति के जीवन प्रबंधन के महत्वपूर्ण गुर हमें प्रदान किया है। भगवान श्रीराम अवरित हुए सूर्यवंश में और भगवान श्रीकृष्ण प्रगट हुए चंद्रवंश में। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो सूर्य को आत्मा का प्रतीक बताया गया है और चंद्रमा मन का प्रतीक है। चंद्रमा और सूर्य दोनों प्रकाश के केंद्र है, पर जहां सूर्य में केवल उज्जवलता और प्रकाश है वहीं चंद्रमा में प्रकाश के साथ अंधकार भी जुड़ा हुआ है। हमारे जीवन में दोनों की आवश्यकता है। वही सत्य हमारे अंतर जीवन से जुड़ा है।

सूर्य यदि शुद्ध आत्मतत्व है तो प्रकाश तत्व है। इसलिए बुद्धि की तुलना सूर्य से की गई है। मन के संदर्भ में देखें वहां प्रकाश भी है और अंधकार भी। मन में ही पाप है और पुण्य है। मन में जिस प्रकार की वृत्तियां आती है कभी अधोगामी विचार आते है तो कभी मन ऊंची उड़ान भरता है। इन वृत्तियों का उपशमन कैसे हो, यह मन से विषहरण की प्रक्रिया ही भगवान श्यामसुंदर के द्वारा द्वापर युग में संपन्न हुई। जीव के मन को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए ही भगवान नाचते है, ज्ञान सुनाते है, बंशी बजाते है, गागर फोड़ते है। किसी तरह भी जीव का मन उनकी ओर आकृष्ट हो। मन अपनी प्रकृति का परित्याग ही कर पाता, पर भगवान की यह असीम करुणा है कि दोनों अवतारों में श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अपनी लीला में साधना और कृपा के द्वारा अंतरमन से विषहरण के उपाय दर्शाए।

00 मानस एवं गीता भागवत पुराण में है आत्म प्रबंधन – दीदी माँ मंदाकिनी

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