नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को उद्योग जगत से कहा कि उसे अपनी खुद से बनी संकोच-असमंजस वाली सोच से बाहर निकलना चाहिये और उत्साह के साथ निवेश के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिये। उन्होंने जोर देते हुये कहा कि बजट के बाद उठाये गये अनेक कदमों का जमीनी स्तर पर परिणाम दिखाई देने लगा है। उद्योग मंडल एसोचैम के 100वें सालाना सम्मेलन को संबोधित करते हुये वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने भारत की व्यवस्था को बदलने को लेकर मजबूती दिखाई है। सरकार ने कुछ ठोस निर्णय लिये हैं और यह सुनिश्चित किया है कि सरकार उद्योगों की समस्या पर ध्यान देने वाली हो। वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले कुछ साल के दौरान जो प्रमुख कदम उठाये गये हैं उनसे भारत दुनिया की नजरों में आया है और उद्योग भी इस बदलाव का साक्षी बना है।‘‘मैं आप लोगों से अपील करती हूं कि आप खुद से बनी संदेह वाली सोच से बाहर निकलें। क्या यह हम कर सकते हैं? क्या भारत यह कर सकता है? ….. यह नकारात्मक सोच क्यों है? खुद से बने इस विचार से बाहर निकलें।’’वित्त मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ज्यादातर वृहद आर्थिक संकेतक मजबूत बने हुये हैं।
https://twitter.com/BarhSonu/status/1208005009650130945?s=20
उन्होंने कहा मुद्रास्फीति नियंत्रण में है। वृहद आर्थिक कारक पूरी तरह से मजबूत हैं। विदेशी मुद्रा भंडार रिकार्ड ऊंचाई पर है और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पेशेवर बनाया गया है।’’अर्थव्यवस्था में जारी मौजूदा आर्थिक सुस्ती और निजी क्षेत्र के कमजोर निवेश को देखते हुये वित्त मंत्री की ये टिप्पणियां काफी अहमियत रखतीं हैं। सीतारमण ने भारतीय उद्योग जगत से देश की आर्थिक वृद्धि में भागीदार बनाने का आह्वान करते हुये कहा कि उन्हें सरकार के विनिवेश कार्यक्रम में पहली बोली लगाकर अपना योगदान करना चाहिये।उन्होंने कहा, ‘‘यह सरकार नहीं चाहती है कि व्यावसाय बंद हों।हम विधायी और अन्य प्रशासनिक बदलावों के जरिये फिर से खड़ा होने में उनकी मदद करना चाहते हैं .. हम आपके साथ हैं। मैं चाहती हैं कि आपका यह खुद के संदेह की यह सोच पूरी तरह से आपके दिमाग से निकल जानी चाहिये।’’ वित्त मंत्री ने विकास और वृद्धि पर जोर देते हुये कहा कि ये दोनों सरकार की प्राथमिकतायें हैं और सरकार सुधारों को बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध है।
वित्त मंत्री ने इस दौरान बजट के बाद सरकार द्वारा उठाये गये कदमों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि तरलता संकट को दूर किया गया। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी डाली गई और एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) क्षेत्र में भी नकदी बढ़ाने के उपाय किये गये साथ ही सार्वजनिक उपक्रमों के निदेशक मंडलों को पेशेवर बनाने के प्रयास भी किये गये। सरकार ने कंपनी कर में भारी कटौती की है। कारपोरेट कर को पहले के करीब 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत पर ला दिया गया। यहां तक कि विनिर्माण क्षेत्र में उतरने वाली नई कंपनी के लिये 15 प्रतिशत कर की दर रखी गई है। उन्होंने कहा कि सरकार ने कर प्राप्ति में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है और कर अधिकारी व करदाता के आमने सामने आने की पुरानी व्यवस्था को समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया है ताकि भ्रष्टाचार समाप्त किया जा सके।