नई दिल्ली। केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों और सरकार के बीच आज (22 जनवरी) 11वें दौर की बैठक भी बेनतीजा खत्म हो गई है। दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई बैठक में सरकार की ओर से केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र तोमर ने कानूनों को स्थगित करने की बात को ही एक बार फिर दोहराया तो किसान नेता कानूनों को रद्द करने से कम पर राजी नहीं हुए। जिसके बाद बैठक बिना किसी नतीजे खत्म हो गई। अगली बैठक के लिए भी कोई तारीख आज नहीं तय हुई है। सरकार ने सख्त रुख दिखाते हुए साफ कर दिया कि उसने कानूनों के अमल पर रोक और कमेटी का जो प्रस्ताव दिया है, वो आखिरी है। किसानों के प्रस्ताव पर राजी होने के बाद ही आगे बात करने को सरकार ने कहा है।
बैठक के बाद भाकियू नेता राकेश टिकैत ने बताया, केंद्रीय मंत्री की ओर से कहा गया कि सरकार डेढ़ साल की जगह दो साल तक कृषि कानूनों को स्थगित करने के लिए तैयार है, इस दौरान कमेटी बनाकर इन पर चर्चा की जा सकती है। सरकार की ओर से कहा गया कि अगर इस प्रस्ताव पर किसान तैयार हैं तो ही हम कल फिर से बात की जा सकते हैं। इसके अलावा कोई दूसरा प्रस्ताव सरकार ने नहीं दिया है। उन्होंने ये भी साफ किया कि 26 जनवरी पर ट्रैक्टर परेड तय कार्यक्रम से हिसाब से ही होगी।
किसान नेता गुरनाम चढूनी ने बैठक के बाद मीडिया से कहा, सरकार ने जो प्रस्ताव दिया था वो हमने स्वीकार नहीं किया। कृषि कानूनों को वापस लेने की बात को सरकार ने स्वीकार नहीं की। ऐसे में कोई हल नहीं निकल सका। अगली बैठक के लिए अभी कोई तारीख तय नहीं हुई है।
किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के एसएस पंढेर ने बैठक के बाद कहा कि सरकार का तरीका आज बेहद निराश करने वाला रहा। मंत्री ने साढ़े तीन घंटे हमें इंतजार कराया, ये किसानों का अपमान है। आने के बाद कहा कि अगर किसान प्रस्ताव नहीं मानते तो हम बैठक खत्म कर रहे हैं। सरकार का ये रवैया समस्या को सुलझाने वाला नहीं है, हम अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे।
बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, भारत सरकार की कोशिश थी कि वो सही रास्ते पर विचार करें जिसके लिए 11 दौर की वार्ता की गई। परन्तु किसान यूनियनें क़ानून वापसी पर अड़ी रही। सरकार ने एक के बाद एक प्रस्ताव दिए। परन्तु जब आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता। यही हो रहा है।
किसान नेता गुरनाम चढूनी ने बैठक के बाद मीडिया से कहा, सरकार ने जो प्रस्ताव दिया था वो हमने स्वीकार नहीं किया। कृषि कानूनों को वापस लेने की बात को सरकार ने स्वीकार नहीं की। ऐसे में कोई हल नहीं निकल सका। अगली बैठक के लिए अभी कोई तारीख तय नहीं हुई है।
किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के एसएस पंढेर ने बैठक के बाद कहा कि सरकार का तरीका आज बेहद निराश करने वाला रहा। मंत्री ने साढ़े तीन घंटे हमें इंतजार कराया, ये किसानों का अपमान है। आने के बाद कहा कि अगर किसान प्रस्ताव नहीं मानते तो हम बैठक खत्म कर रहे हैं। सरकार का ये रवैया समस्या को सुलझाने वाला नहीं है, हम अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे।
बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, भारत सरकार की कोशिश थी कि वो सही रास्ते पर विचार करें जिसके लिए 11 दौर की वार्ता की गई। परन्तु किसान यूनियनें क़ानून वापसी पर अड़ी रही। सरकार ने एक के बाद एक प्रस्ताव दिए। परन्तु जब आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता। यही हो रहा है।
इससे पहले 20 जनवरी को हुई बैठक में केंद्र सरकार की ओर से कृषिमंत्री नरेंद्र तोमर ने किसान नेताओं के सामने प्रस्ताव रखा था कि कानूनों के अमल पर हम डेढ़ साल के लिए रोक लगा देंगे। इसके बाद एक कमेटी बनाई जाए। जिसमें किसान और सरकार दोनों से सदस्य हों। ये समिति कानूनों पर बिंदुवार चर्चा करे और कानूनों को लेकर फैसला ले। कृषिमंत्री के प्रस्ताव पर किसानों ने आपस में बात करने के बाद आज (शुक्रवार) जवाब देने की बात कही थी। किसानों ने गुरुवार को आपस में बैठक के बाद सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। जिसकी जानकारी आज बैठक में सरकार को दे दी गई और इसके बाद बैठक बिना नतीजे खत्म हो गई।
केंद्र सरकार पिछले साल तीन नए कृषि कानून लेकर आई है, जिनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडार सीमा खत्म करने जैसे प्रावधान किए गए हैं। इसको लेकर किसान जून के महीने से लगातार आंदोलनरत हैं और इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। ये आंदोलन जून से नवंबर तक मुख्य रूप से हरियाणा और पंजाब में हो रहा था। सरकार की ओर से प्रदर्शन पर ध्यान ना देने पर 26 नवंबर को किसानों ने दिल्ली की और कूच करने का ऐलान कर दिया। जिसके बाद बीते 57 दिन से किसान दिल्ली और हरियाणा को जोड़ने वाले सिंघु बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं। टिकरी, गाजीपुर और दिल्ली के दूसरे बॉर्डर पर भी किसान नए कानूनों को वापस लेने और एमएसपी पर कानून की मांग को लेकर धरने पर हैं।