न्यूज़ डेस्क। दुनिया भर में कम्युनिस्ट अथवा वामपंथी एक ऐसी प्रजाति है, जो लोकतान्त्रिक देशों में लोकतंत्र ख़त्म होने की बात करते हैं लेकिन जहाँ उन्हें सत्ता मिल जाती है वहाँ वो लोकतंत्र का गला घोंट देते हैं। भारत-चीन तनाव के बीच भारतीय वामपंथियों का भी चेहरा बेनकाब हुआ है, जिन्होंने चीन की निंदा में अभी तक एक शब्द भी नहीं कहा। इन कम्युनिस्टों ने उलटा अमेरिका और भाजपा को इस विवाद के लिए दोषी ठहरा दिया।
भारतीय कम्युनिस्टों की एक ख़ास बात यह है कि ये अपने धर्म और मातृभूमि के नहीं होते। ये चीन, क्यूबा और उत्तर कोरिया को अपना देश मानते हैं, जहाँ लोकतंत्र नाम की कोई चीज है ही नहीं। ये अपने देश की सेना का सम्मान नहीं करते। ये कम्युनिस्ट समस्याओं के समय अपनी सरकार के साथ खड़े नहीं होते। कुछ ऐसा ही इन्होने इस बार भी किया है। सीपीआई व अन्य कम्युनिस्ट पार्टियों के रुख को देख कर तो ऐसा ही लगता है।
CPIM यानि भारतीय कमिनुस्ट पार्टी का समचार पत्र गणशक्ति मे भारतीय सेना को सीमा संघर्ष के लिये दोषी बताया गया है 😡@shailytiwari07 @sanatani_meenoo @Annusharma21 @aarushthakur007 @Mohithindu977 @sonamsani1 @NaveenR0400 @Pushpam81500551 @rimjhimmishra05 @Ibishtvandana pic.twitter.com/we5yYXQKfk
— 🚩SKGoyal (मोदीजी का परिवार) (@SureshA74732559) June 19, 2020
उदाहरण के लिए आइए देखते हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के बांग्ला मुखपत्र ने क्या लिखा है। ‘गणशक्ति’ ने अपने पहले ही पन्ने पर भारतीय सेना के बलिदान का मखौल उड़ाते हुए उन्हें ही दोषी ठहराया है। इसके लिए किसी भारतीय नहीं बल्कि चीनी प्रवक्ता का बयान छापा गया है। वही चीन, जिसने सरहद पर हमारे 20 सैनिकों की जान ले ली। चीनी प्रवक्ता के हवाले से दावा किया गया है कि भारतीय सेना ने न सिर्फ़ सीमा सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन किया बल्कि गलवान घाटी में भी स्थिति से छेड़छाड़ किया।
यानीकि, देश की सीमा पर हमारे लिए सुरक्षा करते हुए चीनी सैनिकों की धोखेबाजी भरे हमले में जान गँवाने वाले हमारे ही सैनिकों पर सवाल उठाया जा रहा है और वो भी उनके बयान को आधार बना कर, जिनकी सेना ने ये घिनौना कृत्य किया है। ऐसा काम वामपंथी ही कर सकते हैं। हालाँकि, सीपीआई का कहना है कि वो हमेशा से भारत और चीन, दोनों ही का पक्ष रखता रहा है। लेकिन अभी तक ऐसा दिख तो नहीं रहा है।
Why does CPI(M) go silent whenever China is involved? Why haven’t they criticised China yet on its intrusion into Indian soil? #GalwanValley pic.twitter.com/rUBuZR8HpB
— Ramesh Chennithala (@chennithala) June 20, 2020
इसी ‘गणशक्ति’ में चीनी प्रवक्ता के उस बयान को भी पेश किया गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनका कोई सैनिक हताहत नहीं हुआ है। हालाँकि, केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि 43 चीनी सैनिकों की मौत हुई है। लेकिन, वामपंथी दलों के लिए आधिकारिक वर्जन चीन वाला है, भारत का नहीं। घुसपैठ की चीनियों ने, धोखा देकर हमला किया चीनियों ने लेकिन वामपंथी उन्हीं चीनियों के महिमामंडन में लगे हुए हैं।
CPI लाख सफाई दे कि उसने दोनों पक्षों को दिखाया है, वो पत्रकारिता के नियमों का पालन कर रहा है या फिर वो चीन का एजेंट नहीं है लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि उसे भारत का पक्ष दिखाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। जहाँ बात सेना और देश की सुरक्षा की आती है, वहाँ संवेदनशीलता से काम लिया जाता है। ये ठीक उसी तरह है, जैसे कश्मीर का कोई इस्लामी आतंकी संगठन हमेशा पाकिस्तान के लिए काम करता है।
All India Protest against Modi govt's anti-people policies.#PeopleProtestModiGovt pic.twitter.com/oJRUqXHsN5
— CPI (M) (@cpimspeak) June 16, 2020
यहाँ CPM व अन्य कम्युनिस्ट पार्टियों के इस व्यवहार को समझने के लिए 1962 के युद्ध की चर्चा भी ज़रूरी है। उस समय जब युद्ध छिड़ा था और चेयरमैन माओ ने भारत की पीठ में छुरी घोंपते हुए हमला कर दिया था, तब वामपंथियों ने केंद्र सरकार का समर्थन नहीं किया था। नेहरू सरकार की गलतियों को नज़रअंदाज़ कर लगभग सभी पार्टियाँ उस युद्ध में सरकार के साथ खड़ी थीं लेकिन वामपंथी चीन के समर्थन में थे।
इस दौरान नीचे संलग्न किए गए इस पोस्टर को देखिए, जो वामपंथियों द्वारा 70 के दशक में डिजाइन किया हुआ बताया जाता है। हालाँकि, इसका CPI से आधिकारिक लिंक क्या है ये तो सामने नहीं आया है लेकिन बांग्ला में यही लिखा हुआ है कि चेयरमैन माओ हमारे चेयरमैन हैं। कइयों ने सीताराम येचुरी और प्रकाश करात से इस सम्बन्ध में सवाल पूछे लेकिन वामपंथी नेताओं ने कोई जवाब नहीं दिया।
हालिया भारत-चीन विवाद को लेकर CPM के बयान को ही देख लीजिए, इसने न तो चीन की आलोचना की है और न ही भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाने वाला एक भी शब्द कहा। उसने उलटा भारत सरकार से ही सवाल दागा कि वो बताए कि सीमा पर क्या हुआ है? उसने दोनों देशों को मिल-बैठ कर मामला सुलझाने की सलाह तो दी लेकिन कहीं भी चीन की अप्रत्यक्ष आलोचना नहीं की। क्या ऐसी पार्टियों को भारत में चुनाव लड़ने का अधिकार होना चाहिए?
The Chinese chairman is our chairman. Leftist poster from the 70s ( via Somak Mukherjee). pic.twitter.com/oXwHyDycjo
— Arnab Ray (@greatbong) June 17, 2020
डोकलाम विवाद भी देश अभी तक भूला नहीं है। अगर आप याद कीजिए तो उस समय भी ये वामपंथी पार्टियाँ सरकार के साथ खड़ी नहीं हुई थी। उनका रवैया तब भी देशविरोधी ही था। उसने दावा किया था कि सीमा विवाद के विषय में भूटान 1984 से ही चीन के साथ सीधे बातचीत करता रहा है, इसीलिए अच्छा यही होगा कि भारत अब भूटान को ही बातचीत करने दे और ख़ुद पीछे हट जाए। क्या ये वामपंथी चाहते थे कि भारत पर चीन थोड़ा-थोड़ा कर के कब्जा करते जाए?
साथ ही वामपंथी पार्टियाँ दलाई लामा को भारत द्वारा शरण देने से भी नाराजगी जताती रहती है। सीपीएम ने तब ये भी आरोप लगाया था कि मोदी सरकार ने दलाई लामा को एक केंद्रीय मंत्री के साथ अरुणाचल का दौरा करा कर स्थिति बिगाड़ी है और चीन को गुस्सा दिलाया है। दलाई लामा से जिस तरह से चीन चिढ़ता है, ठीक उसी तरह वामपंथी भी चिढ़ते हैं। लेकिन क्या भारत चीन के आगे झुक कर दलाई लामा को प्रताड़ित करे?
सीपीएम का बांग्ला मुखपत्रों गणशक्ति लिखा गुजरात गणहत्या के कारीगर मोदी, इसलिये हम कार्यवाही मांग करते है अगर आप नही कर पाते हैं तो
I&B छोड़ दीजिये।ये प्रधानमंत्री और कोर्ट 2नो का अपमान। @Ra_THORe pic.twitter.com/0ktxhbbafT— subhankar ghosh (@_subhankarindia) February 23, 2019
1962 के युद्ध में तो CPI ने देशद्रोह का खुलेआम प्रदर्शन करते हुए यहाँ तक कहा था कि घायल जवानों को रक्तदान करना पार्टी विरोधी गतिविधियों में गिना जाएगा। वीएस अच्युतानंदम तब पार्टी की पोलित ब्यूरो के सदस्य थे लेकिन उन्हें सिर्फ़ इसीलिए हटा दिया गया था क्योंकि उन्होंने जवानों के लिए रक्तदान करने की योजना बनाई थी। अच्युतानंदम ने भी पार्टी की इमेज बदलने किए लिए ही ऐसी अपील की थी, जो दिखावा ही थी।