नई दिल्ली। डाबर और पतंजलि ने पर्यावरण प्रहरी CSE (Centre for Science and Environment-CSE) के इन दावों पर सवाल उठाया कि उनके द्वारा बेचे जाने वाले शहद (Honey) में चीनी शरबत की मिलावट है। कंपनियों ने कहा कि यह दुर्भावना और उनकी ब्रांड छवि को खराब करने के उद्देश्य से प्रेरित लगता है। कंपनियों ने इस बात पर जोर देते हुये कहा कि उनके द्वारा बेचे गए शहद को प्राकृतिक रूप से एकत्रित किया जाता है और बिना चीनी या अन्य किसी मिलावट के पैक किया जाता है। इसके अलावा, खाद्य नियामक, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा शहद के परीक्षण के लिए निर्धारित मानदंडों का पूरी तरह से कंपनियों द्वारा अनुपालन किया जाता है।
इस का जवाब देते हुए, इमामी (झंडू) के प्रवक्ता ने कहा कि एक जिम्मेदार संगठन के रूप में इमामी सुनिश्चित करता है कि उसका झंडू शुद्ध शहद भारत सरकार और उसके प्राधिकरण FSSAI द्वारा निर्धारित सभी नियम-शर्तों और गुणवत्ता मानदंडों / मानकों के अनुरूप हो और उनका पालन करे।
ब्रांड की छवि को खराब करने के उद्देश्य से प्रेरित
डाबर के एक प्रवक्ता ने कहा कि हालिया रिपोर्ट दुर्भावना और हमारे ब्रांड की छवि को खराब करने के उद्देश्य से प्रेरित प्रतीत होती है। हम अपने उपभोक्ताओं को आश्वस्त करते हैं कि डाबर हनी शत प्रतिशत शुद्ध और स्वदेशी है, जिसे भारतीय स्रोतों से प्राकृतिक रूप से एकत्रित किया जाता है और बिना चीनी या अन्य किसी मिलावट के साथ पैक किया जाता है। पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि यह प्रसंस्कृत शहद को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्राकृतिक शहद उद्योग और निर्माताओं को बदनाम करने की साजिश है। यह एक ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग चैनल सहित लाखों ग्रामीण किसानों और शहद उत्पादकों’ को हटाकर प्रसंस्कृत / कृत्रिम / मूल्य वर्धित शहद निर्माताओं को प्रतिस्थापित करने की योजना लगती है. यह देखते हुए कि शहद बनाना, एक भारी पूंजी खर्च वाला और मशीनरी द्वारा संचालित उद्योग है, बालकृष्ण ने कहा, ‘‘हम 100 प्रतिशत प्राकृतिक शहद बनाते हैं जो शहद के लिए एफएसएसएआई द्वारा निर्धारित 100 से अधिक मानकों पर खरा है।
कोलकाता स्थित इमामी समूह, जो झंडू ब्रांड का मालिक है, ने कहा कि वह इस संबंध में FSSAI द्वारा निर्धारित सभी प्रोटोकॉल का पालन करता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने बुधवार को दावा किया कि भारत में कई प्रमुख ब्रांड द्वारा बेचे जाने वाले शहद में चीनी शरबत की मिलावट पाई गई। अपने अध्ययन में, सीएसई ने तीन कंपनियों के ब्रांड का भी उल्लेख किया। अध्ययन में कहा गया है कि डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, झंडू, हितकारी और एपिस हिमालय जैसे प्रमुख ब्रांड के शहद के नमूने एनएमआर (न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस) परीक्षण में विफल रहे।
राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के कार्यकारी सदस्य देवव्रत शर्मा ने कहा कि न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (NMR) परीक्षण में इस बात का भी पता मिल सकता है कि कोई खास शहद किस फूल से, कब और किस देश में निकाला गया है। इस परीक्षण में चूक होने की गुंजाइश नहीं है. उन्होंने कहा कि भारतीय खाद्य नियामक, FSSAI को अपने शहद के मानकों में NMR परीक्षण को अनिवार्य कर देना चाहिये ताकि हमारे देशवासियों को भी शुद्ध शहद खाने को मिले। अभी NMR जांच केवल अमेरिका को होने वाले निर्यात के लिए लागू है, FSSAI को इसे देश के हर शहद उत्पादकों पर अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए NMR परीक्षण को अपने गुणवत्ता मानकों में शामिल करना चाहिये।’’ बालकृष्ण ने इस अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारतीय शहद की बाजार हिस्सेदारी को कम करने का प्रयास के रूप में माना।
उन्होंने कहा कि यह जर्मन तकनीक और महंगी मशीनरी को बेचने की साजिश है। यह देश के प्राकृतिक शहद उत्पादकों को बदनाम करने और प्रसंस्कृत शहद को बढ़ावा देने के लिए भी एक साजिश है। यह वैश्विक शहद बाजार में भारत के योगदान को भी कम करेगा। बैद्यनाथ और अन्य कंपनियों से तुरंत संपर्क नहीं किया जा सका।
राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के कार्यकारी सदस्य देवव्रत शर्मा ने कहा कि न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (NMR) परीक्षण में इस बात का भी पता मिल सकता है कि कोई खास शहद किस फूल से, कब और किस देश में निकाला गया है। इस परीक्षण में चूक होने की गुंजाइश नहीं है।
उन्होंने कहा कि भारतीय खाद्य नियामक, एफएसएसएआई को अपने शहद के मानकों में एनएमआर परीक्षण को अनिवार्य कर देना चाहिये ताकि हमारे देशवासियों को भी शुद्ध शहद खाने को मिले। गुजरात में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) में सेंटर फॉर एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टॉक एंड फ़ूड (Calf) में पहली बार सीएसई द्वारा इन ब्रांड के शहद के नमूनों का परीक्षण किया गया।
परीक्षणकर्ता सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, लगभग सभी शीर्ष ब्रांड, शुद्धता के परीक्षणों में सफल हुए, जबकि कुछ छोटे ब्रांडों में सी-4 चीनी का पता लगने से वे परीक्षणों को विफल रहे। सी-4 ऐसी बुनियादी मिलावट का प्रारूप है जिसमें गन्ना चीनी का उपयोग किया जाता है।
परीक्षणकर्ता ने कहा कि लेकिन जब न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (NMR) का उपयोग करके उन्हीं ब्रांडों के नमूनों का परीक्षण किया गया तो लगभग सभी छोटे बड़े ब्रांड परीक्षण में विफल पाए गए। न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (NMR) परीक्षण में किसी भी प्रकार की मिलावट का पता लगाया जा सकता है। मिलावट की पक्की जांच के लिए विश्व स्तर पर एनएमआर परीक्षण का उपयोग किया जा रहा है। इस एनएमआर परीक्षण में 13 ब्रांडों के परीक्षणों में से केवल तीन सफल हो पाए। यह परीक्षण, जर्मनी में एक विशेष प्रयोगशाला द्वारा किया गया था।
CSE की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि ‘हम शहद का सेवन कर रहे हैं – महामारी से लड़ने के लिए। लेकिन चीनी के साथ मिलावटी शहद हमें स्वस्थ नहीं बनाएगा। यह वास्तव में हमें और भी कमजोर बना देगा। दूसरी ओर हमें इस बात की भी चिंता करनी चाहिए कि मधुमक्खियों के नष्ट होने से हमारी खाद्य प्रणाली ध्वस्त हो जाएगी क्योंकि पर-परागण के लिए मधुमक्खियां महत्वपूर्ण हैं। यदि शहद में मिलावट है तो न केवल हमारा स्वास्थ प्रभावित होगा बल्कि हमारी कृषि उत्पादकता पर भी असर आएगा।