न्यूज़ डेस्क। नए कृषि कानूनों को लेकर प्रदर्शनकारी किसान जहां हर हाल में वापस लेने की मांग पर अड़े हैं, वहीं मोदी सरकार कानूनों को किसानों के हित में बताकर उन्हें समझाने की कोशिश कर रही है। सरकार की दलील है कि नए कानून के तहत किसान मंडियों की गुलामी से मुक्त हो सकेंगे और अपनी इच्छा के अनुसार अपनी कीमत पर अपना कृषि उत्पाद बेच सकेंगे। सरकार और किसानों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। दिल्ली की सीमाओं पर जमे आंदोलनकारी किसानों में बड़ी संख्या पंजाब के किसानों की है, जहां की मंडियों का कुल शुल्क सबसे ज्यादा है।
पंजाब में MSP का कुल 8.5 % टैक्स
पंजाब में अभी भी अनाजों की खरीद APMC (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइवस्टॉक मार्केट कमिटी) मंडियों के माध्यम से ही होती है। यह राज्य कृषि उत्पादों के कारोबार पर सबसे ज्यादा टैक्स भी वसूलता है। इसके चलते केंद्र सरकार पर फूड सब्सिडी का बोझ भी बहुत ज्यादा हो चुका है। एफसीआई और दूसरी एजेंसियां इन मंडियों से जो अनाज खरीदती हैं, उसपर पंजाब सरकार उनसे एमएसपी का कुल 8.5 % टैक्स के रूप में वसूलती है। इनमें मार्केट फीस के तौर पर 3%, ग्रामीण विकास सेस 3% और 2.5% आढ़तियों (बिचौलियों) का कमीशन शामिल होता है।
मंडी शुल्क बिचौलियों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया
पंजाब में सरकार और बिचौलियों की कमाई का कितना मोटा जरिया है, यह इन आंकड़ों से पता चलता है। 2019-20 में पूरे देश में मंडी शुल्क के तौर पर देश में कुल 8,600 करोड़ रुपये वसूले गए। इनमें से सिर्फ पंजाब का हिस्सा 1,750 करोड़ रुपये है। जीएसटी लागू होने के बावजूद भी एफसीआई और राज्य की दूसरी खरीद एजेंसियों से राज्य सरकारें मुख्यतौर पर धान और गेहूं की खरीद के लिए लेवी के रूप में मोटी रकम वसूलती हैं।
मंडी लॉबी की मार का सबसे बड़ा भुक्तभोगी केंद्र सरकार
केंद्र सरकार को होता है बड़ा नुकसान जीएसटी से पहले एफसीआई अनाज खरीद के लिए जो मंडियों को विभिन्न लेवी का भुगतान करती थी, वह कई बार एमएसपी का औसतन 13 प्रतिशत तक होता था। पंजाब में तब यह 14.5 प्रतिशत तक था। मंडी लॉबी की इस मार का सबसे बड़ा भुक्तभोगी केंद्र सरकार ही रही है। मसलन, 2019-20 में केंद्र ने एफसीआई और दूसरी एजेंसियों के जरिए जो सिर्फ धान और गेहूं की खरीद की थी, उसकी एवज में उसे 7,600 करोड़ रुपये सिर्फ मंडी टैक्स और आढ़तियों के कमीशन के रूप में देने पड़ गए।
सात प्रदेशों में कुल शुल्क 5-8 प्रतिशत
गौरतलब है कि देश के 25 राज्यों में कृषि उत्पाद बाजार समितियां (एपीएमसी) हैं। 12 प्रदेशों की मंडी समितियों में अधिसूचित फसलों पर कमीशन नहीं लिया जाता है। इनमें से नौ में सेवा शुल्क 0-1 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश और त्रिपुरा में यह दो प्रतिशत हो जाता है। पांच प्रदेशों में 1-2 प्रतिशत कमीशन लिया जाता है। कर्नाटक में कुल शुल्क 3.5 प्रतिशत है। बाजार समिति के हित में दो प्रतिशत या उससे कम मंडी शुल्क का निर्धारण किया जा सकता है। सात प्रदेशों में कुल शुल्क 5-8 प्रतिशत है।
पंजाब में कांग्रेस सरकार, अकाली दल और आम आदमी पार्टी कानून के विरोध में खड़े हैं, क्योंंकि पंजाब जैसे राज्य में वर्षों से तैयार हुई वह मंडी व्यवस्था है, जिसकी उपज कई राजनीतिक दल पीढ़ियों से खा रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि जो भी राजनीतिक दल पंजाब में सत्ता में आने की इच्छा रखते हैं, वह कभी भी मंडी लॉबी को नाराज करने का जोखिम मोल नहीं ले सकते। क्योंकि उनका नेटवर्क इतना तगड़ा है, जिससे कि राज्य सरकार का खजाना भी भरता है और बिचौलियों (आढ़तियों) के एक बड़े वर्ग की कमाई भी होती है।