मुंबई। भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) ने शुक्रवार को घोषणा की कि पार्टी का नाम “शिवसेना” और प्रतीक “धनुष और तीर” एकनाथ शिंदे गुट के पास ही रहेगा। चुनाव आयोग के इस फैसले के बाद शिवसेना का नाम और पार्टी का निशान उद्धव ठाकरे से छिन गया है। चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को पार्टी का नाम और शिवसेना का प्रतीक तीर कमान सौंप दिया। शिवसेना के दोनों गुट (एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे) पिछले साल ठाकरे के खिलाफ शिंदे (वर्तमान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री) के विद्रोह के बाद से पार्टी के धनुष और तीर के निशान के लिए लड़ रहे हैं। आयोग ने पाया कि शिवसेना पार्टी का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है।
अगले साल ही 2024 के लिए लोकसभा के चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा की सबसे अधिक सीटें महाराष्ट्र से ही आती हैं। कुल 48 सीटें हैं और ऐसे में उद्धव ठाकरे को एक बड़ा झटका लगा है। वहीं शिंदे गुट को बड़ी राहत मिली है। शिवसेना का नाम केवल चुनाव चिन्ह बल्कि नाम भी उन्हें मिल गया। शिवसेना जो अपने असली और पुश्तैनी होने का दावा कर रही थी। दो ये कह रही थी कि हमारे पिताजी ने पार्टी का गठन किया है। लेकिन मुट्ठी में बंद रेत की भांति धीरे-धीरे उनके हाथ से न केवल सत्ता बल्कि संगठन से भी पकड़ छूट गई। निर्वाचन आयोग ने अपने 78 पेज के विस्तृत फैसले में बताया है कि आखिर क्यों शिवसेना उद्धव गुट को इन अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
एकनाथ शिंदे को शिवसेना का नाम और निशाना दोनों चीजें दे दी गई हैंं। यानी जो लोग ये दावा करते नहीं थक रहे थे कि हमारा इस पर पुश्तैनी अधिकार है। हमारे बाप-दादाओं की संपत्ति हैं। हम इसके असली वारिस हैं। लेकिन निर्वाचन आयोग ने कहा कि पूरी प्रक्रिया को देखते हुए कहीं से ऐसा नहीं लग रहा। अंक के गणित के हिसाब से या फिर पार्टी में जो दो फाड़ हुआ है। उद्धव ठाकरे गुट को कहीं पर भी तरजीह मिलती दिखाई नहीं दी है। हालांकि उद्धव गुट ने कहा कि उन्होंने काफी हड़बड़ी में चीजें जुटाई हैं इसलिए वो संख्याबल प्रदर्शित नहीं कर पाए। निर्वाचन आयोग ने सबूत और दस्तावेज को खंगालने और तर्क व दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला दिया।