मुंबई। यौन हमले के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने पिछले दिनों एक फैसला दिया था। उस पर विवाद चल रहा है। अब एक और फैसला इसी तरह का आया है। 15 साल की लड़की से रेप के आरोपित को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि बिना हाथापाई के बलात्कार नहीं किया जा सकता।
अदालत का कहना था कि पीड़िता का मुँह दबाना, फिर उसके और अपने कपड़े उतारना। बाद में जबरन बिना किसी हाथापाई के रेप करना अकेले युवक के लिए संभव नहीं है। स्तन दबाने के मामले में ‘स्किन टू स्किन’ जजमेंट और फिर नाबालिग के सामने जिप खोलने, हाथ पकड़ने को यौन हमले से अलग श्रेणी में बताने वाली जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला ने कहा,
गौरतलब है कि 6 जुलाई 2013 को सूरज कासरकार नाम के युवक पर लड़की के घरवालों ने रेप का आरोप लगाया था। इसके 6 साल बाद 14 मार्च 2019 को वह रेप करने का दोषी ठहराया गया। सत्र न्यायालय ने मामले में फैसला सुनाते हुए आरोपित को 10 साल की सजा सुनाई। उस समय उसके ख़िलाफ़ पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के साथ IPC की धारा 376(1) और 451 के तहत आरोप तय हुए थे।
सत्र न्यायालय से फैसला आने के बाद युवक ने हाई कोर्ट में अपील की थी। यहाँ युवक ने कहा था कि उसने रेप नहीं किया। दोनों की सहमति से संबंध बने। लड़की अपनी सहमति से घर से भागी थी, जब उसकी माँ को पता चला तो उसके ख़िलाफ़ FIR दर्ज करवा दी। कोर्ट में तब भी कहा गया कि लड़की कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी है। वहीं सरकारी वकील एमजे खान ने कहा कि पीड़िता गलत बयान नहीं दे सकती।
ज्ञात हो कि 6 जुलाई 2013 को सूरज कासरकार नाम के युवक पर लड़की के घरवालों ने रेप का आरोप लगाया था। इसके 6 साल बाद 14 मार्च 2019 को वह रेप करने का दोषी ठहराया गया। सत्र न्यायालय ने मामले में फैसला सुनाते हुए आरोपित को 10 साल की सजा सुनाई। उस समय उसके ख़िलाफ़ पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के साथ IPC की धारा 376(1) और 451 के तहत आरोप तय हुए थे।
सत्र न्यायालय से फैसला आने के बाद युवक ने हाई कोर्ट में अपील की थी। यहाँ युवक ने कहा था कि उसने रेप नहीं किया। दोनों की सहमति से संबंध बने। लड़की अपनी सहमति से घर से भागी थी, जब उसकी माँ को पता चला तो उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करवा दी। कोर्ट में तब भी कहा गया कि लड़की कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी है। वहीं सरकारी वकील एमजे खान ने कहा कि पीड़िता गलत बयान नहीं दे सकती।
न्यायाधीश ने कहा कि दोनों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध की बातें सामने आई हैं। ऐसे में अभियुक्त को संदेह का लाभ दे सकते हैं। लड़की ने भी स्वीकारा है कि अगर उसकी माँ वहाँ नहीं पहुँचती तो वह शिकायत नहीं दर्ज करवाती।
इसके बाद सत्र न्यायालय का आदेश खारिज करते हुए कहा गया, “बलात्कार के मामलों में अभियोजन पक्ष की एकमात्र गवाही आरोपितों के खिलाफ आपराधिक दायित्व तय करने के लिए पर्याप्त है। लेकिन लड़की की निम्न स्तर की गवाही देखते हुए याचिकाकर्ता को 10 साल के लिए सलाखों के पीछे भेजना घोर अन्याय होगा।”
गौरतलब है कि हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक फैसला सुनाया था, जिसके मुताबिक़ सिर्फ ग्रोपिंग (groping, किसी की इच्छा के विरुद्ध कामुकता से स्पर्श करना) को यौन शोषण नहीं माना जा सकता। कोर्ट के मुताबिक इसके लिए शारीरिक संपर्क या ‘यौन शोषण के इरादे से किया गया शरीर से शरीर का स्पर्श’ (स्किन टू स्किन) होना चाहिए। इसके अलावा कोर्ट ने एक मामले में यह भी कहा था कि यदि किसी नाबालिग के सामने कोई पैंट की जिप खोल दे, तो वो पॉक्सो एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा।