श्रीनगर। जम्मू कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन धनशोधन मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और अन्य की 11.86 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति जब्त की है। इस बात की जानकारी एजेंसी के सूत्रों से मिली है।संपत्ति में दो आवासीय और एक कॉमर्शियल संपत्ति और तीन भूखंड शामिल हैं। अटैच की गई इन संपत्तियों की वैल्यू 11.86 करोड़ है, वहीं मार्केट वैल्यू 60-70 करोड़ है। इस बात का दावा एजेंसी के अधिकारियों ने दावा किया है।
ज्ञात हो कि साल 2015 में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। इसके बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की FIR और चार्जशीट पर संज्ञान लेने के बाद ED ने मनी-लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था।
ED के मुताबिक, फारूक 2002 से 2011 तक जेकेसीए के अध्यक्ष थे। इस दौरान BCCI की ओर से कश्मीर में क्रिकेट के प्रोमोशन के लिए जारी फंड में से 43 करोड़ रुपए निकाल लिए गए थे। ईडी की जांच में यह पाया गया कि फाइनेंशियल इयर 2005-2006 से 2011-2012 तक जेकेसीए को BCCI ने 94.06 करोड़ रु. का फंड दिया था। यह फंड तीन अलग-अलग बैंक खातों के जरिए दिए गए थे। हालांकि, इसके बाद भी जेकेसीए के नाम से कई अलग-अलग बैंक खाते खोले गए और उसमें फंड से मिले पैसे ट्रांसफर किए गए।
113 करोड़ की हेराफेरी
अब्दुल्ला से हेराफेरी के मामले में ईडी इससे पहले भी 6 घंटे तक उनसे से पूछताछ कर चुकी थी। जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन में कथित 113 करोड़ रुपये की धांधली का मामला बहुत पुराना है। ऐसे आरोप हैं कि इसमें से करीब 43.69 करोड़ रुपये का गबन किया गया और इस पैसे को खिलाड़ियों पर भी खर्च नहीं किया गया।
कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पूछताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर गए थे। ED की ओर से पूछताछ के लिए नोटिस जारी होने के बाद फारूक दफ्तर गए। हालांकि ईडी के नोटिस पर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने नाराजगी जताई और आरोप लगाया कि ये आवाज दबाने की कोशिश है।
नेशनल कांफ्रेंस के प्रवक्ता ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय का पत्र गुप्कर घोषणा के बाद आया है। कश्मीर में ‘पीपुल्स अलायंस’ बनने के बाद यह स्पष्ट राजनीतिक प्रतिशोध है। हम जानते हैं कि होना ही था, “पार्टी ने कहा, केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अपनी एजेंसियों का उपयोग नए राजनीतिक गठन से लड़ने के लिए कर रही थी, क्योंकि वह राजनीतिक रूप से नहीं लड़ सकती थी “।
भाजपा के विचारधारा और विभाजनकारी राजनीति का विरोध करने पर यह एक कीमत है। हालिया इतिहास इस बात का गवाह है कि कैसे देश भर में विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए भाजपा विभिन्न विभागों के माध्यम से जबरदस्ती और डराने के उपाय अपनाती रही है।