#MyParliamentMyPride” : गुजराती PM, तमिल ‘सेंगोल’, दिल्ली का संसद भवन, राजस्थान के पत्थर, महाराष्ट्र की लकड़ियाँ, 60000 श्रमिक… लोकतंत्र का नया मंदिर भारत की एकता का प्रतीक

न्यूज़ डेस्क (BNS)। भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन हो गया है। इसे महज एक उद्घाटन समारोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे भारत के लोकतंत्र के उस नए मंदिर के रूप में देखा जाना चाहिए जो 150 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा। नया संसद भवन भारत के हर एक राज्य, हर एक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करेगा – देशवासी इसी आशा में उत्सव का हिस्सा बने हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जन-भागीदारी में विश्वास रखते हैं, ऐसे में नए संसद भवन को लेकर भी जनता का सकारात्मक रुख देखने लायक है।

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देश का नया संसद भवन लोकतंत्र के लिए कैसे हितकारी है? जैसा कि आपको पता है, नया संसद भवन नई दिल्ली के सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसके तहत संसद भवन के अलावा इसके आसपास के इलाके में कई कार्य हो रहे हैं। क्या आपको पता है कि सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के पूरा होने से देश का 1000 करोड़ रुपया बचेगा? कई दफ्तरों के लिए ये रकम भारत सरकार रेंट के रूप में खर्च करती आ रही थी, जो अब रुक जाएगा।

केंद्र सरकार के कई ऐसे दफ्तर हैं, जो जगह-जगह बिखरे हुए हैं और उनमें से कई रेंट ली हुई संपत्तियों पर चल रहे हैं। इस रेंट का भुगतान जनता के पैसों से किया जाता है। सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट जब पूरी तरह पूरा हो जाएगा तो न सिर्फ देश के खजाने में बचत होगी, बल्कि सारे दफ्तरों के एक जगह होने से कामकाज का समन्वय भी बेहतर होगा। वो दिन दूर नहीं, जब नॉर्थ एवं साउथ ब्लॉक म्यूजियम में बदल जाएगा। 2026 तक नई दिल्ली के इस इलाके की तस्वीर ही बदल जाएगी।

अतः, नया संसद भवन दिखावे के लिए नहीं बना है बल्कि इसकी ज़रूरत थी। संयुक्त सदन की स्थिति में इसमें 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की गई है। भविष्य में जब संसदीय क्षेत्रों का पुनर्गठन होगा तो सांसदों की संख्या भी बढ़ेगी। ऐसे में देश को नए संसद भवन की आवश्यकता पड़नी ही थी, क्योंकि पुराने संसद भवन में 552 सदस्य ही बैठ सकते थे। सुरक्षा के लिहाज से भी एक 100 वर्ष पुरानी इमारत में सैकड़ों नेताओं-अधिकारियों द्वारा देश का कामकाज करना सही नहीं था।

नए संसद भवन के दोनों चैम्बरों में 1272 सीटें हैं। आने-जाने के लिए एक सांसद को किसी दूसरे के डेस्क से होकर नहीं गुजरना होगा। सांसदों के लिए अलग-अलग डेस्क होंगे। तकनीकी रूप से भी ये संसद भवन समृद्ध है। हर मंत्री का अलग-अलग दफ्तर होगा। हजारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति का भी दर्शन होगा। कलाकृतियों से नए संसद भवन को सँवारा गया है। चाणक्य से लेकर समुद्र मंथन तक की कलाकृतियों से नेताओं को प्रेरणा मिलेगी।

हमने जाना कि कैसे देश के लिए ये संसद भवन सही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेता के साथ-साथ सामाजिक सुधार के भी प्रणेता रहे हैं। आपने अक्सर देखा होगा कि वो किसी भी कार्य के पूरा हो जाने के बाद उन श्रमिकों से मिलते हैं, जिनकी वजह से ये संभव हो पाया। प्रधानमंत्री उन्हें ‘श्रमजीवी’ कह कर संबोधित करते हैं। नए संसद भवन के निर्माण में भी 60,000 मजदूरों को रोजगार मिला। कई मजदूरों से पीएम मोदी ने उद्घाटन के दौरान मुलाकात भी की।

उन्होंने इन मजदूरों के लगातार समर्पण और उनके शिल्प-कौशल के लिए उन्हें सम्मानित किया। इसी तरह, अक्टूबर 2022 में उन्होंने उन सफाई कर्मचारियों के पाँव धोए थे, जिन्होंने कुम्भ मेला के दौरान काम किया था। जब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन सभी मजदूरों से मुलाकात की थी जिन्होंने इसे संभव बनाया। प्रधानमंत्री ने उन पर फूल बरसाया था। पीएम मोदी को श्रमिकों के साथ भोजन करते हुए भी हम देख चुके हैं।

सांस्कृतिक लिहाज से भी नया संसद भवन भारत का गौरव बनेगा। हमने बात की कि कैसे इसमें कई ऐसी कलाकृतियाँ हैं जो पौराणिक युग से लेकर डिजिटल युग तक की यात्रा को दर्शाती है। अखंड भारत हो या चाणक्य, या फिर सरदार वल्लभभाई पटेल और भीमराव आंबेडकर की मूर्ति, इन सबसे प्रेरणा मिलेगी। लेकिन, संसद भवन के उद्घाटन से पहले जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में आया, वो है ‘सेंगोल’। चोल साम्राज्य का राजदंड – ‘सेंगोल’।

मदुरै अधीनम के महंत हरिहर स्वमिगल ने कहा कि पीएम मोदी तमिल संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं, वो हमेशा तमिल जनता के साथ खड़े रहे हैं। आज़ादी के बाद सत्ता हस्तांतरण के दौरान जो ‘सेंगोल’ जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था, उसे बनाने वाले चेट्टी परिवार के सुधाकर बंगारू, जो अब 97 वर्ष के हो गए हैं, उनके चेहरे पर आए भावों ने बता दिए कि इस क्षण का कितना महत्व है। उन्होंने इसे गौरवशाली पल करार दिया।

श्रीलंका, लक्षद्वीप और मालदीव से लेकर भारत में गोदावरी-कृष्णा नदी के मैदानों तक, भटकल में कोंकण के तट तक और पूरे मालाबार के तटों तक राज करने वाला चोल राजवंश हजारों वर्षों तक दक्षिण भारत में शासन का एक प्रमुख स्तम्भ बना रहा। आज प्राचीन चोल राजवंश की संस्कृति दिल्ली के संसद भवन में स्थापित हुई है, तो देश की ‘अनेकता में एकता’ को प्रदर्शित करने का इससे बड़ा माध्यम क्या हो सकता है? तमिलों का ‘सेंगोल’ दिल्ली में अब सत्ता की शान है।

इस तरह सांस्कृतिक लीजह से भी ये कदम काफी क्रांतिकारी है। तमिल संत गुजरती प्रधानमंत्री द्वारा दिल्ली में हुए समारोह में आमंत्रित किए जाते हैं, और तमिल हिन्दू संस्कृति का प्रतीक ‘सेंगोल’ संसद में स्थापित किया जाता है – इससे बड़ी बात क्या होगी देश की एकता दर्शाने के लिए? संसद भवन के निर्माण में जिन सामग्रियों का इस्तेमाल हुआ है, वो भी देश के कई अलग-अलग राज्यों से आई हैं। ऐसे, इसकी भी एक बानगी देखते हैं।

केसरिया-हरे रंग का पत्थर राजस्थान के उदयपुर से आया है। रेड ग्रेनाइट राजस्थान के अजमेर से आया है। राजस्थान के ही अम्बाजी से सफ़ेद संगमरमर भी आया है। इसी तरह सागौन की लकड़ियाँ महाराष्ट्र के नागपुर से लाई गईं और बलुआ पत्थर राजस्थान के धौलपुर में स्थित सरमथुरा से आए। चैंबर की सीलिंग में लगाने के लिए स्टील दमन एवं दीव से लाए गए। उत्तर प्रदेश के नोएडा और राजस्थान के राजनगर से जाली वाले पत्थर लाए गए।

इसी तरह, अशोक चिह्न के लिए मैटेरियल महाराष्ट्र के औरंगाबाद और राजस्थान के जयपुर से लाए गए। लोकसभा के दोनों चैम्बरों में जो बड़ा अशोक चक्र दिख रहा है, वो मध्य प्रदेश के इंदौर से लाए गए माल से बना। हरियाणा के चरखी दादरी से आया बालू भी संसद भवन के निर्माण में इस्तेमाल किया गया। हरियाणा-उत्तर प्रदेश से ईंटें आईं। इस तरह, इस संसद भवन को पूरे देश ने मिल कर बनाया गया। देश के कई श्रमिकों को इसमें काम मिला।

सोर्स :- इंटरनेट, सोशल मीडिया, ऑपइंडिया

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