रायपुर। छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परम्पराएं एवं मान्यताएं लोकनृत्य-गीतों के रूप में अद्वितीय रूप से अभिव्यक्त होती है। जिनमें छत्तीसगढ़ धरा की समृद्ध सभ्यता एवं संस्कृति की इंद्रधनुषी छटा दिखाई देती है। मिट्टी से जुड़ी हमारी लोक संस्कृति नृत्य-गीतों में ग्रामीण जनजीवन जीवंत रूप में प्रकट होता है। इन्ही मिट्टी की खुशबू को संजोए रायगढ़ लोक रंग नाचा के कलाकार स्वामी विवेकानंद की स्मृति में 12 से 14 जनवरी को रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित होने वाले तीन दिवसीय ‘छत्तीसगढ़ युवा उत्सव’ में अपनी प्रस्तुति देंगे।
राजधानी में आयोजित राज्य स्तरीय युवा उत्सव में लोक रंग नाचा दल के कलाकार ददरिया एवं सुआ नृत्य की प्रस्तुति देने वाले हैं। ददरिया में छत्तीसगढ़ में खुशहाली, खेत-खलिहान के लोकजीवन की मनोहारी झांकी दिखाई देती है। ददरिया छत्तीसगढ़ी ‘गीतों का राजा’ है। यह गाँव की पगडंडियों एवं मेढ़ों में गाया जाने वाला मया के गीत है, जो मूलत: श्रृंगारिक व्यंजना लिए होता है। श्रम से जुड़े खेती किसानी करने वाले किसान मजदूर ‘दादर’अर्थात ऊंचे स्थान में उत्साह एवं उल्लासपूर्वक सामूहिक एवं एकल नृत्य करते हैं। ददरिया प्रश्न उत्तर के रूप में होते हैं।
तैय जवाब दे दे टूरी मैं गावथों ददरिया
तैय जवाब दे दे टूरा मैं गावथों ददरिया
आधा आधा रथिया के कइसन बाजार
ओदे कोने ठाड़े हासथे नदिया के पार
आधा आधा रथिया के अइसन बाजार ओदे चाँद ठाड़े हासथे नदिया के पार
एक पेड़ आमा, पच्चीस पेड़ जाम
मधुबन के चिरैया बोलथे राम राम
यूं तो ददरिया के कई प्रकार होते हैं, लेकिन मेंडऱई ददरिया (मेढ़ पर गाया जाने वाला) एवं गाड़ा ददरिया प्रमुख हैं। मेंडऱई ददरिया में जैसा कि हम जानते हैं कि खेत का मेढ़ व्यवस्थित नहीं होता, आड़ा तिरछा होता है, उसी ढंग से इस गीत के लय ताल भी यथा नाम तथा गुण होते हैं।
अमरईया चिरइया किलोर भई जाये
मोला आन दे मोला जान दे, अमरईया ले लोर
पोसे सुआ ला दे देबो दाना
अमराई मा काली जरूर आना
मोला आन दे मोला जान दे अमरईया ले लोर
गाड़ा ददरिया में लयबद्धता होती है। किसानों के धान को अपनी बैलगाड़ी में लादकर लेने जैसे दृश्य सजीव हो उठते हैं।
डोंगरी डोंगरी नदिया, नरवा तोला खोजे ले लोर
नई दिखे घर मा, नई दिखे बन मा
खोज डारेव नई दिखे
नजर भर मा डोंगरी डोंगरी
वहीं सुआ नृत्य गीत अनोखे रूप में प्रकट होते हैं। जनश्रुति है कि देवी पार्वती, भगवान शंकर के साथ संवाद करती है जिसे हम छत्तीसगढ़ में डड़ईरानी कहते हैं।
शंकर वो भोला मोर बड़े रंगरजुआ रे सुआ ना
देखी देखी मोला सुहाय रे सुआ ना
महाभारतकालीन लेखों में उल्लेख मिलता है कि सुआ अर्थात सुकजी ने महाभारत की कथा सुनाई थी। नागमति अपने पति का इंतजार करती है और हीरामन तोते को संदेशवाहक के रूप में अपने पति के पास भेजती है। इस उदगार में प्रिय की प्रतीक्षा करते हुए कहती है कि-
नागमति चितउर पतहेरा
पीयू जो गए फि र कीन्ह ना फेरा
अंचल में सुआ के विविध रूप देखने को मिलते हैं। नारी व्यथा कथा का चित्रण सुआ गीत रूपों में मिलता है।
चंदा सुरुजुआ मैं तोरे पैयां लागू रे सुआ ना
कि तिरिया जनम झन दे
तिरिया जनम मोरे गाऊ के बरोबर रे सुआ ना
की जहां रे पठोय तिहां जाये
अंगूरी ला घेरी बेरी, अंगना लिपाय रे सुआ ना
कि ननदी के मन नहीं भाये
टूटे फू टे पखना के बन्दना बंदाव रे सुआ ना
कि घुरवा के दिन बहुराये
महिलाएं घर-घर जाकर गोल घेरे में सुआ नृत्य करते हुए कहती है-
अरन बरन कोदो दरन
जभे देबे तबे टरन
इनको सम्मान स्वरूप ग्रामीणजन धान या नगद देकर अपने आँगन से विदा करते हैं। एक टोकरी में ये महिलाएं मिट्टी या काठ का सुआ रख कर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं। पहले तो हाथ की तालियों से ही सुआ नृत्य किया जाता था, लेकिन अब इसमें हारमोनियम, ढोलक, तबला का प्रयोग किया जाता है। जिस टोकरी में सुआ रखा जाता है, उसे सुग्गी कहा जाता है। धान एकत्रित करके महिलाएं इसका विक्रय करती हैं। इसके पीछे एकमात्र कारण होता है कि उस प्राप्त राशि से वे गौरा-गौरी की मूर्ति खरीद सकें और उनका पूजन कर अपने धार्मिक दायित्वों का निर्वहन कर सकें, जो ठीक दीपावली तक चलता है।
छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति में फाग गीत का विशेष महत्व है। बसंत पंचमी के दिन जाड़ा पौधे का पौधरोपण किया जाता है, तभी उसी दिन से फाग गीत गाने की शुरुआत होती है। इन गीतों में श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन उल्लास बिखेरता है।
मुख मुरली बजाये, छोटे से श्याम कन्हैया
तरैया में सारस बोले रे
पूरे छत्तीसगढ़ का वातावरण गोकुल के वातावरण में समाहित हो जाता है।
माटी के रायगढिय़ा कवि बंशीधर पांडे भावों को शब्दों में पिरोते हुए कहते हैं-
छत्तीसगढ़ मोर जनमन ठान
एखर बार मैं करौं गुमान
धीर-बीर यहाँ के रहवैया
जौन ला कहथे छत्तीसगढ़िया
लोकरंग नाचा के मार्गदर्शक हुतेन्द्र ईश्वर शर्मा कहते हैं कि सभी युवा कलाकार राज्य स्तरीय युवा उत्सव में शिरकत करने के लिये उत्साहित हैं। यह जरूरी है कि युवा पीढ़ी छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति से जुड़े और इसे आगे ले जाये। शासन के प्रयासों से हमारी छत्तीसगढिय़ा संस्कृति की देश विदेश में एक विशेष पहचान बन रही है। लोक कलाकार आशा चन्द्रा ने कहा कि युवा, वायु कि तरह आगे बढ़े और संस्कृति को आगे बढ़ाएं। अन्य कलाकार डॉली गोस्वामी ने कहा कि युवा महोत्सव में प्रस्तुति देने का अवसर मिलेगा यह गौरव की बात है। लोक कलाकार एवं कथक नृत्यांगना प्रिया वैष्णव ने कहा कि इन नृत्यों से ऊर्जा और आत्मीयता मिलती है। पीताम्बर साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए युवाओं को आगे आना होगा। इस अवसर पर निहारिका यादव, जितेंद्र देवांगन, प्रेरणा देवांगन, शोभा दाऊ, मोहिनी दाऊ, सृष्टि मिश्रा, उमा बोहिदार, लेखनी साहू सदस्य उपस्थित थे।
* उषा किरण-पवन