न्यूज़ डेस्क (Bns)। छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष में वृद्धि हुई है, और चिंताजनक आंकड़े बताते हैं कि पिछले 11 वर्षों में हाथियों ने लगभग 600 लोगों को मार डाला है। इस वृद्धि का कारण प्रवासी हाथियों का इस क्षेत्र में स्थायी रूप से बस जाना है, जिसके कारण पिछले दो दशकों में उनकी संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। एक सार्वजनिक तथ्य के मुताबिक लगभग 10 पहले पूरे छत्तीसगढ़ में केवल 150 हाथी थे, लेकिन अब इनकी संख्या ढाई गुना बढ़ चुकी है।
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छत्तीसगढ़ में लगातार हाथियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इसका कारण ओडिशा, झारखंड जैसे पड़ोसी राज्यों के जंगलो में बढ़ता मानवीय दखल है। जंगल उजड़ने से हाथी नए ठिकाने की तलाश में जुट गए हैं। उनका रूझान छत्तीसगढ़ की तरफ काफी अधिक हो गया है।
जंगलो से लगे गांवो में हाथी को भगाने के लिए ग्रामीण पटाखे फोड़ना, मिर्ची बम का उपयोग, पत्थर मारना जैसे उपाय करते हैं। जिससे हाथी आक्रामक होते हैं। उन्हें अतिक्रमण, अवैध कटाई, सड़क निर्माण, और खदानों की खुदाई,शोर, प्रदूषण भी परेशान करता हैं।
इस वजह से हाथियों को इंसानों के बीच टकराहट बढ़ती है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में 2019 से 2024 के बीच हाथियों के हमलों में लगभग 300 लोगों की मौत हुई है। कोरबा और जशपुर में हाथी के कुचलने से 7 लाेगों की मौत हो चुकी है। सबसे अधिक मौत 2018 से 2020 के बीच 204 लोगों की मौत हुई थी, जबकि कई घायल हुए।
हाथियों की मौत का आंकड़ा भी काफी बड़ा है। 2001 से जून 2024 तक छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष के कारण 221 हाथियों की मौत हुई। इनमें से 33 प्रतिशत मौतें बिजली के झटके से हुईं, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने पाया है कि छत्तीसगढ़ में भारत की कुल हाथियों की आबादी का केवल एक प्रतिशत ही रहता है, लेकिन देश में मानव-हाथी संघर्षों में 15 प्रतिशत हिस्सा भी इसी का है। विशेषज्ञ इसका कारण जंगलो की कटाई और आजीविका के लिए वनों पर स्थानीय निर्भरता को मानते हैं।
छत्तीसगढ़ में 359 हाथी, एमपी महाराष्ट्र की तरफ बढ़ रहे हैं कदम जानकारी के मुताबिक पता चला है कि साल 2013 में 12 हाथियों का झुंड महासमुंद जिले क बारनवापारा पहुंचा था। धीरे- धीरे इनकी तादाद बढ़ती चली गई, वन विभाग के मुताबिक छत्तीसगढ़ में इस समय अनुमानित तौर पर 359 हाथी हैं। इसमें सरगुजा में 125 हाथी, बिलासपुर में 192 हाथी, रायपुर सर्किल में 42 हाथी हैं। इसके अतिरिक्त धरमजयगढ़ वनमंडल में 108 हाथी हैं। यह भी जानना जरूरी है कि झारखंड और ओडिशा से आने वाले हाथी छत्तीसगढ़ से गुजरते हुए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की तरफ बढ़ जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में हाथियों पर नियंत्रण के लिए 23 साल में 18 योजनाओं और करोड़ों रुपए खर्च किये गए हैं। विभिन्न उपायों के बावजूद समस्या जस की तस बनी हुई है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हाथियों को जंगल के भीतर रोकने के लिए की कवायद में जुटे हुए हैं। गजराज के संरक्षण और संवर्धन को लेकर हो रही तमाम कोशिशों के सार्थक परिणाम जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं दे रहे हैं।
इतने उपाय, सब फेल
- छत्तीसगढ़ वन विभाग के प्रयासों में हाथियों को रिहायशी इलाकों में घुसने से रोकने के लिए आठ गजराज वाहन खरीदना भी शामिल था। हालांकि, यह योजना भी सफल नहीं हो पाई।
- वन विभाग ने हाथियों को रिहायशी इलाकों में घुसने से रोकने के लिए रेडियो कॉलर लगाना और हाथी ट्रैकिंग ऐप का इस्तेमाल करना शामिल है। यह ऐप सैटेलाइट के ज़रिए हाथियों की गतिविधियों का पता लगाने में मदद करता है, जिससे हाथी मित्र दल के सदस्य हाथियों के नज़दीक आने के बारे में निवासियों को चेतावनी दे पाते हैं, लेकिन यह भी नाकाफी साबित हुए हैं। सोलर बज़ूका और हाथियों के गले में घंटियाँ बाँधने का भी प्रयास किया गया लेकिन योजना के अनुसार काम नहीं आया।
- मधुमक्खी पालन और एलिफेंट रिजर्व जैसी अन्य पहल भी विफल रहीं। मधुमक्खी पालन इस विचार पर आधारित था कि हाथी मधुमक्खियों के छत्तों से दूर रहते हैं, जबकि पारगमन शिविरों का उद्देश्य हाथियों को जंगलों में खिलाना था ताकि वे गांवों में प्रवेश न करें। दोनों ही योजनाएँ सफल नहीं हुईं।
- छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग ने कर्नाटक से कुमकी हाथी लाए गए थे, ताकि उत्पाती हाथियों को नियंत्रित किया जा सके, लेकिन वे अप्रभावी साबित हुए।
- राज्य का वन विभाग ने इस समस्या को कम करने के लिए कई तरीके आजमाए हैं, लेकिन कोई भी कारगर साबित नहीं हुआ है। सोलर फेंसिंग का उद्देश्य हल्के विद्युत प्रवाह के ज़रिए हाथियों को गांवों से दूर रखना था, लेकिन यह योजना फिलहाल निष्क्रिय है।
- जंगल के भीतर उनके खाने के लिए फलदार वृक्ष, मशरूम और धान खिलाने की कोशिश भी की गई । इसके बाद भी गजराज के दल जंगल छोड़कर रिहायशी इलाकों की तरफ लगातार रुख कर रहे है।