रायपुर। रायपुर के साईंस कॉलेज मैदान में आयोजित राज्य युवा महोत्सव के पहले दिन मुख्य मंच में आज बिलासपुर, कबीरधाम, बालोद और धमतरी जिले के कलाकारों ने कर्मा नृत्य प्रस्तुत कर धूम मचा दी। पारंपरिक गीतों एवं धुन पर समूह में नृत्य करके युवक-युवतियों ने सबका मन मोह लिया। दर्शकों ने खूब ताली बजायी।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में प्रचलित अनेक लोक नृत्यों में से कर्मा नृत्य एक है। कर्मा नृत्य राज्य के बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर, राजनांदगांव, रायगढ़, सरगुजा, जशपुर, कोरिया, कवर्धा जिले में निवास करने वाली जनजातियों द्वारा किया जाता है। ये जनजातियां सरई एवं करम वृक्ष के नीचे इकठ्ठा होकर कर्मा गीत गाकर नृत्य करते हैं। जनजाति समूह वर्ष में एक बार इकठ्ठा होकर देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करके उत्सव मनाते हैं और करम वृक्ष की टहनी को जमीन में गड़ाकर चारों और घूम-घूमकर आनंदपूर्वक कर्मा नृत्य करते हैं। कर्मा नृत्य हमें कर्म का संदेश देता है। कर्मा नृत्य पर कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें राजा कर्म सेन की कथा, कर्मारानी की कथा, सात भाईयों की कथा, कर्मदेव का उल्लेख आदि प्रमुख हैं।
छत्तीसगढ़ में कर्मा नृत्य की विभिन्न शैलियां प्रचलित हैं। बस्तर जिले के अबुझमाड़ क्षेत्र में दण्डामी माड़िया जनजाति द्वारा माड़ी कर्मा लोक नृत्य किया जाता है। माड़ी कर्मा नृत्य विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया है और इनमें वाद्ययंत्रों का प्रयोग नहीं होता। केवल गीत के साथ नृत्य किया जाता है। यह नृत्य सामाजिक उत्सव व शुभ कार्य के अवसर पर दण्डामी माड़िया जनजाति करते हैं। बिलासपुर जिले में निवासरत भुंइहार जनजाति द्वारा भुंइहारी कर्मा नृत्य किया जाता है।