साहित्य संगीत सांस्कृतिक मंच मुजगहन (धमतरी) द्वारा आयोजित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के सेवानिवृत हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. गोरेलाल चंदेल की पांच भागों में प्रकाशित लोकसंस्कृति के विविध आयाम पर केन्द्रित कृति ‘‘झेंझरी’’ पर जिला पंचायत धमतरी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी विजय दयाराम के. के मुख्य आतिथ्य, प्रोफे. त्रिभुवन पांडेय की अध्यक्षता, डाॅ. जीवन यदु, प्रोफे. सुरेश देशमुख, डाॅ. पीसीलाल यादव, प्रोफे. नत्थू तोड़े, रवि श्रीवास्तव, दुर्गा प्रसाद पारकर, बलदाऊ राम साहू के आतिथ्य में संगोष्ठी का कार्यक्रम साहित्य सदन में सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी की शुरूवात अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलन एवं माल्यार्पण कर किया गया। शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान, विद्यालय के सर्वांगीण विकास में उनके विशिष्ट योगदान एवं उनकी बहुआयामी शैक्षणिक अभिरूचि के लिए मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण से सम्मानित शिवसिंह वर्मा शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय धमतरी की प्राचार्य श्रीमती बी. मैथ्यू एवं सबसे कठिन और तालवाद्य तबला को मुजगहन जैसे छोटे से गांव में शास्त्रीय संगीत की इस दुनिया से एक अधिक आत्मीय परिचय कराने वाले मेनोनाईट इंग्लिश स्कूल धमतरी के संगीत शिक्षक श्री हीरा लाल साहू को शाल, श्रीफल एवं लोकसंस्कृति पर आधारित सूपा में भरे हुए धान, नदिया बैल एवं अभिनंदन पत्र सहित मुख्य अतिथि श्री विजय दयाराम के. मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत धमतरी ने सम्मानित किया। कु. खुशबू मीनपाल, केशर मीनपाल ने लोक आधारित भरथरी, ददरिया, भोजली गीत का गायन किया।
तत्पश्चात मुख्य अतिथि विजय दयाराम के. ने कहा कि-आप सबके मध्य स्वयं को पाकर प्रसन्नता हो रही है। छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति की तरह कर्नाटक की लोक संगीत, साहित्य, संस्कृति सभी विधाओं को अपने नये अंदाज में बांधते हैं। हम आज अपने को भले ही परिभाषित नहीं कर पाते। हम सबको बांधने वाली हमारी संस्कृति है।
छत्तीसगढ़ के साहित्यकार एवं लोकसंस्कृति कर्मी, विद्वान वक्ताओं ने अपने विचार भी प्रस्तुत किये। संगोष्ठी सत्र के प्रारंभ में कार्यक्रम संयोजक एवं अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव ने कहा कि- लेखक की हर अच्छी कृति में ऐसी ताकत होती है जो अपने रचना की पहचान करा सके। डाॅ. गोरेलाल चंदेल की कृति ‘‘झेंझरी’’ किसी निश्चित अनुशासन व्यक्ति के लिए नहीं सबके लिए है। आप किसी भी कार्यक्षेत्र की बात करें ‘‘झेंझरी’’ में लिखे लेख छत्तीसगढ़ की समृद्ध परम्परा को विकसित करता है।
डाॅ. राकेश सोनी ने कहा-लोक संस्कृति के महत्व को जानने समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कृति है ‘‘झेंझरी’’। जितेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि-बदलाव के रंग में डूब जाये या अपनी संस्कृति की रक्षा करें। गांव में शहरों की आधुनिकता का प्रवेश हो रहा है। छत्तीसगढ़ को जानने के लिए मील का पत्थर है ‘‘झेंझरी’’। डाॅ. एस.एस. ध्रुर्वे ने कहा कि-छत्तीसगढ़ में विविधता है। सांस्कृतिक विविधता का प्रारंभिक विवरण इस पुस्तक में है। विभिन्न लोकगीतों के उदाहरण विषय को प्रमाणिक बताते हैं। कुमेश्वर कुमार ने कहा कि-लोकजीवन पर अभी भी सामंती प्रभाव मौजूद है, उनकी जानकारी इस पुस्तक में मिलती है। डाॅ. मांझी अनंत ने कहा कि-लोक साहित्य, लोक संस्कृति के प्रणेता डाॅ. गोरेलाल चंदेल ने इस कृति के माध्यम से लोक संस्कृति को चारों ओर से देखा है। लोक साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर ने कहा कि-छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति पर महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। उन्होंने तुलसी की चैपाई और कांशी के सफेद फूल का विशेष जिक्र किया। आने वाली पीढ़ी को सांस्कृतिक समझ प्रदान करना हम सबका दायित्व है। प्रसिद्ध व्यंग्यकार रवि श्रीवास्तव ने कहा कि-छत्तीसगढ़ का किसान नवाखाई के समय धान की बाली बांटता है। वह गांव की उदारता है। झेंझरी के संवाद रोचक और पात्रों के अनुरूप है। डाॅ. जीवन यदु ने प्रथम खंड की कहानियों का उल्लेख किया। लोक संस्कृति का बड़ा ही दिलचस्प चित्रण इन कहानियों में मौजूद है। समाज में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव संस्कृति पर पड़ता है। लोकगीतों का सस्वर गायन प्रस्तुत करने हुए नत्थू तोड़े ने विभिन्न लोकगीतों का महत्व रेखांकित किया। अधिकांश लोकगीत झेंझरी में उद्घृत किये गये हैं। डाॅ. बलदाऊ राम साहू ने कहा-विभिन्न माध्यमों से लोकजीवन का चित्रण इस पुस्तक में मिलता है। लोक यात्रा के विविध रूपों की जानकारी महत्वपूर्ण है। लोक के साथ जीने वाला लेखक ही ऐसा प्रमाणिक लेखन कर सकता है। पीसी लाल यादव ने अच्छा लिखने के लिए यह कहा जाता है कि जैसा दिखता है वैसा लिख। इस कृति के संदर्भ में यह कथन सटीक है। बतौर अतिथि धमतरी विधायक श्रीमती रंजना साहू ने आयोजन की प्रशंसा करते हुए सभी उपस्थित रचनाकारों के योगदान को महत्वपूर्ण बताया। झंेझरी के लेखक डाॅ. गोरेलाल चंदेल अनुभव के पुनर्सृजन से रचना का जन्म होता है। झेंझरी का चर्चा हुई मनुष्य का इतिहास लोक से प्रारंभ होता है। लोक संस्कृति मातृसत्तात्मक होती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार त्रिभुवन पांडेय ने लोक संस्कृति के तीन प्रमुख तत्वों का उल्लेख करते हुए कहा-लोक संस्कृति श्रम, सामूहिकता और लोक संगीत से निर्मित होती है। सामूहिकता लोक संस्कृति की सबसे बड़ी शक्ति है। ज्योतिषाचार्य श्री ज्ञानेश्वर शर्मा ने कार्यक्रम की सफलता पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए झेंझरी जैसे कृति को छत्तीसगढ़ के लिए अमूल्य धरोहर बताया। लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति पर आधारित संगोष्ठी झेंझरी के कार्यक्रम में मुख्यरूप से इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के शोध छात्र डाॅ. दीपशिखा पटेल, वेदांत सिंह, योगेन्द्र धृतलहरे, कु. मोनिका साहू, कु. रोशनी वर्मा, (एम. ए. लोक संगीत), डाॅ. सरिता दोशी, मदनमोहन खंडेलवाल, चन्द्रशेखर शर्मा, डाॅ. विद्या गुप्ता, श्रीमती पुष्पलता इंगोले, ए. आर. इंगोले, डाॅ. यशवंत साव, सीताराम साहू, कृष्ण कुमार साहू दीप, माखन लाल साहू, जे. एल. साहू, डी.पी. देशमुख, भरत राना, श्रीकांत सरोज, श्रीमती कविता ध्रुव, श्रीमती अंजना तिवारी, श्रीमती गीता साहू, श्रीमती संध्या मानिकपुरी, श्रीमती शिल्पा मानिकपुरी, अखिलेश श्रीवास्तव, प्रदीप साहू, मन्नम राना, यशवंत पठारे, मदनमोहन दास, रविकांत गजेन्द्र, कुलदीप सिन्हा, चन्द्रहास साहू उपस्थित थे।