मक्का, धान, फसलों पर फाल आर्मी वर्मकीट प्रकोप से बचाव किया जाना आवश्यक
रायपुर। राज्य में फॉल आर्मी वर्म (स्पोडोप्टेरा फ्रुजीपर्डा) कीट के नियंत्रण एवं उन्मूलन हेतु गठित राज्य स्तरीय उप समिति की बैठक गत दिवस संचालनालय कृषि में संपन्न हुई। समिति के अध्यक्ष संचालक कृषि तथा सदस्य के रूप में सी.आई.पी.एम. शैलेन्द्र नगर रायपुर के वैज्ञानिक, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक तथा एन.आई.बी.एम. (आई.सी.ए.आर.) बरोंडा रायपुर के कृषि वैज्ञानिक उपस्थित थे। बैठक में निर्णय लिया गया कि कृषकगण कीट प्रकोप के संबंध में क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी को जानकारी उपलब्ध कराकर उचित तरीके से फसलों पर कीट नियंत्रण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त किसान कॉल सेन्टर के टोल फ्री नंबर-1800-180-1551 पर दूरभाष के माध्यम से भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
बैठक में कृषि वैज्ञानिक श्री सी.एस.नाईक ने बताया कि यह विदेशी कीट है जो अमेरिका में पाया जाता है तथा 80 से अधिक फसलों को नुकसान पहुंचा सकता है। सर्वप्रथम यह कर्नाटक में मक्के की फसल पर देखा गया, इसके बाद तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मिजोरम आदि राज्यों में मक्का, धान, गन्ना आदि फसलों पर भी देखा गया है। राज्य के बस्तर, कोण्डागांव एवं रायगढ़ जिलों में इस कीट की पहचान मक्के की फसल में हुई है। उन्होंने संभावना व्यक्त की है कि खरीफ 2019 में मक्का, धान आदि फसलों पर कीट प्रकोप की स्थिति निर्मित हो सकती है, जिसके लिए उचित उपाय करना आवश्यक होगा।
फॉल आर्मी वर्म का वयस्क कीट एक रात में 100 किलोमीटर तक तथा पूरे जीवन काल में 2000 किलोमीटर तक उड़ सकता है। वयस्क मादा कीट एक बार में 150-200 तक अंडे दे सकती है। सामान्यत: इसकी इल्ली 30-35 दिन तक नुकसान पहुंचा सकती है, किन्तु ठण्डे मौसम में यह अवधि 90 दिन तक हो सकती है। इल्ली तेजी से फसल को नुकसान पहुंचाती है। समय रहते यदि कीट की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय नहीं किये गये तो फसल को नुकसान से बचाना कठिन हो सकता है।
इस कीट के नियंत्रण एवं प्रबंधन हेतु भारत सरकार की ओर से एडवायजरी जारी की गई है। रसायनिक विधियों की तुलना में भौतिक एवं जैविक विधियां ज्यादा कारगर है। कीट की पहचान इल्ली के मस्तिष्क पर बने अंग्रेजी के उल्टे ‘वाईÓ चिन्ह के आधार पर की जा सकती है। लाईट ट्रैप-फेरोमोन ट्रैप का लगाकर नियमित अनुश्रवण करना चाहिए। खेतों में ‘टीÓ आकृति में बांस-लकड़ी खंभे लगाने चाहिए जिससे इन पर पक्षी बैठकर इल्लियों को खा सके। खेतों का दैनिक निरीक्षण करना चाहिए एवं कोई इल्ली दिखाई पड़े तो उसे तुंरत नष्ट कर देना चाहिए। मक्के की फसल में अंतर्वती फसल के रूप में दलहनी फसल जैसे-उड़द मूंग आदि लगाया जा सकता है। बार्डर क्रॉप के रूप में फसल के चारों ओर 3-4 की कतार में नेपियर घास लगायी जा सकती है। दलहनी तथा पुष्प वाले पौधों को लगाया जाना चाहिए, जिससे मित्र कीटों को बढ़ावा मिल सके।
जैविक विधि से नियंत्रण के अंतर्गत ट्राईकोग्रामा प्रेटिओसम और टेलीनोमस रेमस का उपयोग किया जा सकता है। एन्टोमो पैथोजेनिक फंगस एवं बैक्टेरिया जैसे-मेटाराईजियम, ऐनीसोप्ली, मेटाराईजियम रिलेयी तथा बैसिलय थुरिन्जिएन्सिस का भी उपयोग किया जा सकता है।
00 इल्ली तेजी से फसल को नुकसान पहुंचाती है