सिंधिया का कांग्रेस से इस्तीफा, 22 विधायकों के इस्तीफे से कमलनाथ सरकार पर गहराया राजनैतिक संकट, अटकलों का बाजार गर्म

भोपाल। मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से चल रहे राजनीतिक घमासान के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को इस्तीफा देते हुए कांग्रेस छोड़ दी और उनके भाजपा में शामिल होने की संभावना है। साथ ही, पार्टी के 22 विधायकों के इस्तीफे से राज्य की कमलनाथ सरकार गिरने के कगार पर पहुंच गई है।

हालांकि, कांग्रेस ने कहा है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते सिंधिया को निष्कासित किया गया है। मंगलवार सुबह जब पूरा देश होली का जश्न मना रहा था, तभी सिंधिया ने भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित आवास पर मुलाकात की।

बैठक में क्या बातचीत हुई, इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है। हालांकि, भाजपा सूत्रों ने कहा कि सिंधिया से लंबी बातचीत करने का भगवा पार्टी के दोनों शीर्ष नेताओं का फैसला इस बात को दर्शाता है कि वे उन्हें (सिंधिया को) कितना महत्व देते हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को नौ मार्च को लिखे इस्तीफा पत्र में सिंधिया ने कहा कि उनके लिये आगे बढ़ने का समय आ गया है क्योंकि इस पार्टी में रहते हुए वह देश के लोगों की सेवा करने में अक्षम हैं। कांग्रेस पार्टी ने कहा कि उनका पत्र सोनिया गांधी के आवास पर मंगलवार को दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर मिला।

सिंधिया के पार्टी छोड़ने के साथ ही मध्य प्रदेश की कमलनाथ नीत कांग्रेस सरकार के अस्तित्व पर संकट काफी गहरा गया है। समाचार एजेंसी के सूत्रों के हवाले से बताया कि सिंधिया खेमे के 22 विधायकों ने राजभवन को अपना इस्तीफा भेज दिया है। इनमें से 19 विधायकों ने ई-मेल से, जबकि एक विधायक बिसाहूलाल सिंह ने पत्र भेजकर इस्तीफा सौंपा है।

मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में दो सीटें फिलहाल रिक्त हैं। ऐसे में 228 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास मामूली बहुमत है। अगर 22 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिये जाते हैं तो विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या महज 206 रह जाएगी। उस स्थिति में बहुमत के लिये जादुई आंकड़ा सिर्फ 104 का रह जाएगा।

ऐसे में, कांग्रेस के पास सिर्फ 92 विधायक रह जाएंगे, जबकि भाजपा के 107 विधायक हैं। कांग्रेस को चार निर्दलीयों, बसपा के दो और सपा के एक विधायक का समर्थन हासिल है। उनके समर्थन के बावजूद कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से दूर हो जाएगी। हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि निर्दलीय और बसपा तथा सपा के विधायक कांग्रेस का समर्थन जारी रखेंगे या वे भी भाजपा से हाथ मिला लेंगे।

सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा है कि आज के घटनाक्रम की पृष्ठभूमि पिछले एक साल से तैयार हो रही थी और अब उनके लिये नयी शुरुआत करना सर्वश्रेष्ठ है।

सिंधिया ने अपने इस्तीफा पत्र में कहा, ”पिछले 18 साल से कांग्रेस का प्राथमिक सदस्य रहा। अब मेरे लिये आगे बढ़ने का समय है। मैं कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं और जैसा कि आप अच्छी तरह जानती है कि यह रास्ता पिछले एक साल से अपने आप तैयार हो रहा था।

सिंधिया ने ट्विटर पर पोस्ट किये पत्र में कहा, ”अपने राज्य और देश के लोगों की सेवा करना मेरा हमेशा से मकसद रहा है। मैं इस पार्टी में रहकर अब यह करने में अक्षम में हूं।” उन्होंने कहा, ”अपने लोगों और कार्यकर्ताओं की आकांक्षाओं को साकार करने के लिये मेरा मानना है कि यह सर्वश्रेष्ठ है कि अब मैं नयी शुरुआत करूं।

गुना के पूर्व सांसद ने देश की सेवा करने के लिये मंच प्रदान करने की खातिर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी के अपने पूर्व साथियों के प्रति आभार प्रकट किया है। इसके तुरंत बाद, कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक बयान में कहा, ”कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण सिंधिया को तत्काल प्रभाव से निष्कासित करने की स्वीकृति प्रदान की है।”

पार्टी का कभी उदीयमान सितारा समझे जा रहे सिंधिया और मुख्यमंत्री कमलनाथ के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही थी। दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया।

हालांकि, समस्या हाल में शुरु हुई, जब सरकार में सिंधिया समर्थकों को दरकिनार किया गया और ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने की उनकी महत्वाकांक्षा भी विफल कर दी गई। यह भी बताया जाता है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व उनकी शिकायतें सुनने को तैयार नहीं था।

इस सप्ताह के अंत में, सिंधिया और कमलनाथ मंत्रिमंडल के छह मंत्री बेंगलुरु गए और उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा था। इसके बाद यह स्पष्ट हो गया कि पार्टी में बगावत पनप रही है और कमलनाथ सिंधिया के वफादार छह मंत्रियों के साथ-साथ अन्य विधायकों का भी समर्थन खो देंगे।

कमलनाथ ने मंगलवार को राज्यपाल लालजी टंडन को पत्र लिखकर सिंधिया के खेमे से जुड़े छह मंत्रियों को तत्काल हटाने की मांग की। होली के दिन चल रहे सियासी ड्रामे का असर मध्य प्रदेश के बाहर भी होगा। मध्य प्रदेश भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। मध्य प्रदेश हिंदी पट्टी के उन तीन प्रमुख राज्यों में से एक था, जहां कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था।

मध्य प्रदेश के आसन्न नुकसान के साथ, यह स्पष्ट है कि कांग्रेस नेतृत्व पार्टी को एकजुट रखने में विफल रहा है और अपने कई क्षेत्रीय नेताओं की परस्पर विरोधी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करने में असमर्थ रहा है। निरंतर अंतर्कलह से पार्टी के और कमजोर होने की संभावना है।

मध्य प्रदेश को फिर से हासिल करने से हिंदी पट्टी में भाजपा की ताकत बढ़ेगी और कांग्रेस के पास केवल पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ रह जाएगा। राजस्थान में भी पार्टी को विभिन्न खेमों के बीच टकराव का सामना करना पड़ रहा है।

श्री सिंधिया के इस्तीफे पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, ”राष्ट्रीय संकट के समय भाजपा के साथ हाथ मिलाना एक नेता की खुद की राजनीतिक आकांक्षा को दिखाता है। खासतौर पर उस समय जब भाजपा अर्थव्यवस्था, लोकतांत्रिक संस्थाओं, सामाजिक तानेबाने और न्यायपालिका को बर्बाद कर रही है।”

उन्होंने कहा, ”सिंधिया ने जनता के विश्वास और विचारधारा के साथ विश्वासघात किया है। ऐसे लोग यह साबित करते हैं कि वे सत्ता के बगैर नहीं रह सकते। वो जितनी जल्दी छोड़ दें बेहतर है।”

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी सिंधिया पर हमला करते हुए कहा, “यह कांग्रेस पार्टी के लिए दुखद खबर है”। चौधरी ने पीटीआई-भाषा से कहा, “उन्हें पार्टी ने महत्वपूर्ण काम सौंपा था। लेकिन अब स्थिति ऐसी हो गई कि उन्हें दूसरी पार्टी में जाना अधिक सुविधाजनक लगा।” चौधरी ने कहा, “भाजपा की ओर से दिये गए किसी प्रकार के प्रलोभन ने उन्हें पार्टी बदलने के लिये राजी किया।

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