जीवन में सारे सुख हैं पर शांति का हरण हो गया – दीदी मंदाकिनी
रायपुर। सारे सुख हैं पर जीवन में शांति नहीं हैं, हरण हो गया है। मिथ्यारूपी माया के पीछे भाग रहे हैं तब ऐसे में प्रभु के प्रति अनुराग कैसे रख सकेंगे। भक्ति को सुरक्षित रखने का दायित्व वैराग्य का है। भगवान के प्रति अनुराग तब तक सुरक्षित रहेगा जब वैराग्य का कवच होगा। वैराग्य की उत्पत्ति के उद्देश्य को लेकर श्रीमद्भागवत की कथा सुनाई गई है। विश्वास के अभाव में संशय उत्तपन्न हो जाता है और विश्वास आएगा तभी जीवन में भक्ति सुरक्षित रहेगी। भोगों का विनाश ज्ञान उतपन्न होने पर ही होगा।
मानस एवं गीता भागवत पुराण में आत्म प्रबंधन कैसे करें, सूत्रों को जोड़कर प्रसंगवश दीदी मंदाकिनी ने कई बातें बताई। जीवन में ज्ञान का उदय तब तक नहीं होगा जब तक मोह और अहंकार रहेगा। ज्ञान के उत्पन्न होने से ही भोगों का विनाश होगा। कितना भी ज्ञानवान व्यक्ति क्यों न हो परमात्मा ने संदेश दिया है कि यदि वह माया के पीछे भागेगा तो उसका ज्ञान नष्ट हो जाएगा। यदि सद्गुण रहते हुए भक्ति कर रहे हैं तो जीवन में कभी भी पराजित नहीं होंगे।
ज्ञान, भक्ति और वैराग्य तीनों की आवश्यकता हमारे जीवन में हैं। त्रेतायुग व द्वापर युग में इसे अलग-अलग रूपों में बताया गया है। श्रीराम की लीलाओं के तीन केन्द्र अयोध्या, मिथिला से चित्रकूट और लंका वहीं श्रीकृष्ण के मथुरा, वृंदावन और द्वारिकाधीश के केन्द्र रहे हैं। दोनों ही कालों में युद्ध लड़ा गया पर दोनों की स्थितियां-परिस्थितियां अलग थी।
पति-पत्नी है ज्ञान और भक्ति-
मानस में श्रीराम को ज्ञान और किशोरीजी को भक्ति के रूप मे प्रतिपादित किया गया है। दोनों के विश्वास, अटूट प्रेम, समर्पण को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया है। आध्यात्म से कैसे करें आत्मप्रबंधन करें यह मानस में सिखाया गया है।
साधुता वेश से नहीं बनती
आज समाज में साधु के वेश में ठग घुस गए हैं, जो चमत्कार और प्रलोभन के नाम पर लोगों को ठग रहे हैं। दरअसल साधुता की पहचान वेश से नहीं होती। आए दिन ठगी की खबरें आते रहती है फिर भी लोग ठगे जा रहे हैं। आज साधुता पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। इसका प्रमुख कारण है लोग शीघ्र से शीघ्र से पाना चाहते हैं। मानस में बताया गया है लक्ष्मणरूपी असली साधु की बात सीताजी ने भी नहीं मानी और नकली साधु (रावण) से ठगी गई।
मिथ्या के पीछे भागोगे तो शांति कहां
लोग आज इस बात से आहत हैं कि जीवन में सारे सुख साधन तो हैं पर शांति नहीं है ऐसे लगता है कि उसका हरण हो गया है। मिथ्या के पीछे भागोगे तो और क्या मिलेगा। इसके लिए विश्वास रखना होगा, यदि संशय रखा तो धन ही नहीं बल्कि भक्ति भी चली जायेगी। विश्वास का सबसे बड़ा प्रतीक हनुमानजी महाराज हैं।
भक्ति की सुरक्षा वैराग्य का दायित्व
ज्ञान की सेवा और भक्ति की रक्षा करना वैराग्य का परम दायित्व है जो लक्ष्मण जी ने किया था। वैराग्य की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लक्ष्मण की खींची रेखा को रावण भी पार नहीं कर पाया था। इसके लिए विश्वास का होना भी जरूरी है, तभी भक्ति सुरक्षित रह पायेगी।
00 विश्वास के अभाव में संशय हो गया है इसलिए भक्ति नहीं
00 वैराग्य का कवच होगा तभी सुरक्षित रह सकेगी भक्ति