शबरी के बेर जैसा स्वाद महलों के भोजन में कहां

शबरी के बेर जैसा स्वाद महलों के भोजन में कहां

रायपुर। सत्संग में जब गुरु और शिष्य एक-दूसरे को स्वीकार लेते है, तभी सत्संग का गर्भाधान होता है। यह एक गंभीर सूत्र है। गुरु जो बातें कहते है वह कभी निरर्थक नहीं होती है। गुरु और शिष्य का नाता न जाने कितने जन्मों तक चलते रहता है। गुरु सेवा का सबसे बड़ा उदाहरण है शबरी। ध्यान यदि घड़ी पर होगी तो काल से ऊपर कैसे उठोगे। स्मृति थकाती है और विस्मृति भुलाती है।

महामाया मंदिर प्रांगण पुरानीबस्ती में चल रही श्रीराम कथा में श्रीरामकिंकर विचार मिशन के संत श्री मैथिलिशरण भाई जी ने बताया कि यदि आँख में बालू लग जाए तो दिखाई नहीं देता लेकिन गुरु के पैरों का रज लग गया तो जो दिखाई नहीं पड़ रहा है वह भी दिखाई देने लगता है। वनवास से वापसी पर तीनों माताओं के अलावा और भी जगहों पर भोजन करने के लिए बुलाये जाते हैं भगवान, तब वे कहते है कि शबरी के बेरों जैसा स्वाद यहां के भोजनों में नहीं है।

कौन देगा हमें आनंद

घड़ी पर ध्यान रहेगा तो काल से कैसे ऊपर उठोगे। धन, रूप, पद, संबंध इन सबसे ऊपर उठना होगा। स्मृति थकाती है और याद रखेंगे तो दुखी होगे,विस्मृति आपको सुख और विश्राम देती है। भूलेंगे तभी आनंद की प्राप्ति होगी।

कटु सत्य को जाने

आने का आनंद तब है, जब जाने की तिथि निश्चित हो। आपसे कोई कहे इससे पहले ही चले जाओ। संसारी और संत में यही तो अंतर है। जो व्यवहार संसार का है और जो इस कटु सत्य को मानकर चलेगा तभी वह सुखी और आनंद रह पाएगा।

मुंह तो रोज धोते हो पर माला नही

प्रसंगवश एक महिला का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए भाईजी ने कहा कि एक माला महिला के पास गंदी अवस्था में देखा और साफ नहीं करने के सवाल पर कहती है कि खराब हो जाएगा। बड़ी विचित्र बात है रोज मुंह धोते हो, कंघी करते हो, तेल लगाते हो, शरीर की सफाई करते हो पर भगवान का नाम जिस माला से जपते हो उसकी सफाई नहीं कर सकते। यह धन, यह शरीर, यह माला किसकी दी हुई है।

क्रिया की प्रतिक्रिया तुरंत मत दो

किसी भी किया की प्रतिक्रिया तुरंत कभी भी नहीं देना चाहिए। लेकिन आज वह बात कहां, तुरंत जवाब देने को महारोग कहा गया है, अब तो यह सभी घरों की समस्या बन गई है। यदि एक घंटे विचार करने के लिए समय रख दो, तो निश्चित मानो कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी।

भाषा मौन होती है

ईश्वर जो कर रहे हैं मौन रहकर कर रहे है, हम जो कार्य कर रहे है बोलकर कर रहे है। भाषा तो केवल मौन होती है। जिसने मौन की भाषा को समझ लिया उसकी भाषा, भाषा हो जाती है।

कुटिया के समान है हमारा शरीर

हमारा, आपका शरीर भी तो कुटिया के समान है। चित्त के अंदर ऐसे संस्कार आ जाए। चित्त को कसते रहिए, सत्संग करें, रोज उसका चिंतन करें। शबरी भी नित्य अपनी कुटिया में यहीं करते रही, उसे प्रभु के दर्शन हुए। शबरी और भगवान का मिलन भी गुरु के कारण संभव हो सका।

00 भक्त और भगवान का मिलन कराते हैं गुरू – मैथिलिशरण भाई जी

संबंधित समाचार

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.