बर्ड फ्लू से डरने की जरूरत नहीं, चिकन-अंडे को सही तरीके से पकाकर खाएं : पशुपालन आयुक्त डॉ. मलिक

नई दिल्ली। पिछले कई दिनों से नॉन-वेज प्रेमियों के लिए हालात कुछ अच्छे नहीं बताये जा रहे। बर्ड फ्लू (Bird Flu) ने उनकी खाने की प्लेट पर असर डाल दिया है। हालात ये हैं कि उन्हें खाने की अपनी प्लेट कुछ हल्की लगने लगी है।

इसका असर मांस मछली बेचने वाले व्यापारियों पर भी साफ़ देखने को मिल रही है। बर्ड फ्लू ने उनके कारोबार पर बुरा असर डाला है। उनका कहना है कि कोरोना ने पहले ही उनकी हालत ख़राब कर दी थी, उस पर बर्ड फ्लू ने हालत और भी बिगाड़ दिए हैं।

केंद्र सरकार ने बर्ड फ्लू की रोकथाम के लिए चाकचौबंद प्रबंध किए हैं। इसके तहत सभी प्रकार के जरूरी उपाय किए जा रहे हैं, इसलिए चिकन या अंडे खाने से डरने की जरूरत नहीं है, यह कहना है केंद्र सरकार में पशुपालन आयुक्त डॉ. प्रवीण मलिक का।

डॉ. मलिक ने कहा कि मुर्गों में बर्ड फ्लू की इस साल अभी तक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन अगर पुष्टि होती भी है तो डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस दिशा में पहले से ही सतर्कता बरती जा रही है।

गौरतलब है कि बर्ड फ्लू की खबर आने के बाद देश में चिकन और अंडे की बिक्री घट गई है, क्योंकि लोग घबराए हुए हैं। इस संबंध में पूछे गए सवाल पर पशुपालन आयुक्त ने कहा कि अंडे और चिकन को अगर सही तरीके से पकाकर खाएं तो यह पूरी तरह सुरक्षित है, इसलिए घबराने या डरने की जरूरत नहीं है।

हालांकि उन्होंने बताया कि हरियाणा में बड़ी संख्या में पोल्ट्री बर्ड यानी मुर्गों की मौत हुई है, लेकिन इसकी वजह बर्ड फ्लू है या नहीं, इसकी भोपाल स्थित राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान (NIHSAD) भेजे गए नमूनों की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही साफ होगा।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत आने वाले NIHSAD को देश के अन्य राज्यों से भी पक्षियों की असामान्य मौत को लेकर नमूने लगातार भेजे जा रहे हैं, लेकिन डॉ. मलिक ने बताया कि अब तक चार राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई है।

इनमें से राजस्थान और मध्यप्रदेश में कौव्वों में जबकि हिमाचल प्रदेश में प्रवासी पक्षियों में और केरल में घरेलू बतख में ‘बर्ड फ्लू’ की रिपोर्ट है। उन्होंने बताया कि केरल में पहले रोकथाम के उपायों के तहत बर्ड को मारने की प्रक्रिया को अमल में लाया जा चुका है।

उन्होंने बताया, “पोल्ट्री बर्ड में जहां कहीं भी बर्ड फ्लू यानी एवियन इन्फ्लूएंजा (एआई) की रिपोर्ट मिलती है, वहां प्रभावित फार्म के सारे बर्ड और एक किलोमीटर के एरिया में लोगों ने जो भी बर्ड पाल रखा है, सबको खत्म कर दिया जाता है और सरकार की ओर से लोगों को उसका मुआवजा दिया जाता है। इसके बाद अगले 10 किलोमीटर तक निगरानी बढ़ा दी जाती है और उस क्षेत्र से नमूने लेकर उनकी जांच करवाए जाते हैं। इसके बाद पोस्ट सर्विलांस ऑपरेशन चलता है। इसमें दो-तीन महीने रिपोर्ट निगेटिव रहती है तो फिर उसे बर्ड फ्लू मुक्त एरिया घोषित कर दिया जाता है।”

डॉ. मलिक ने बताया कि इसके अलावा वाइल्ड बर्ड यानी जंगली पक्षी के मामले में जो सावधानियां व उपाय हैं, उनको भी अमल में लाया जाता है। जंगली बर्ड में इस बीमारी की पुष्टि होने पर किए जाने वाले उपायों के बारे में उन्होंने बताया कि जहां पक्षियों की मौत की रिपोर्ट मिलती है, वहां पहले सुरक्षा बढ़ा दी जाती है और मृत पक्षियों का तुरंत निपटान करने की बात करते हैं। इस दौरान मानवों की आवाजाही कम कर दी जाती है और सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। मसलन, चिड़ियाघर में बर्ड फ्लू की रिपोर्ट आने पर वहां विजिटर्स की आवाजाही रोक दी जाती है।

डॉ. मलिक ने बताया कि दुनिया में बर्ड फ्लू का पहला मामला 1996 में प्रकाश में आया था, लेकिन भारत में यह साल 2006 में पहली बार सामने आया। इसके आने से एक साल पहले 2005 में ही इससे बचाव की कार्ययोजना बना ली गई थी। उन्होंने बताया कि 2006 के बाद से सर्दियों में लगातार दो-तीन राज्यों में बर्ड फ्लू की रिपोर्ट मिलती रही है और इस दौरान कार्ययोजना में भी बदलाव किए गए हैं।

डॉ. मलिक ने बताया कि बड़ी संख्या में पक्षियों की असामान्य मौत की रिपोर्ट इस साल अब तक राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, केरल के अलावा हरियाणा से आई है, लेकिन दूसरे राज्यों से भी नमूने भोपाल भेजे गए हैं, उनमें से कई नमूने निगेटिव आए हैं।

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