मानस है मानसरोवर पर गोता नहीं लगा पा रहे – दीदी मंदाकिनी
रायपुर। संसार में मनुष्य रुप में शरीर मिला है तो हम अपने आत्म बल को पहचाने। दशरथ के समान धर्मरक्त हममें भी है, पर जरुरत अपने सद्गुण को ज्ञानरुप श्रीराम से जोड़ने की है। राम और कृष्ण सभी रुपों में समान है। अंतर सिर्फ उनके नेत्रों में है, जिसे समझें। जिनका चित्त अचल हो तो रामकथा में मंदाकिनी समाहित हो जाते है। मानसरोवर है रामचरित मानस, जिसमें तार्किक व्यक्ति के लिए गोता लगाना संभव नहीं है। जीवन में सफलता के लिए ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का होना जरूरी है।
श्रीराम कथा अनुष्ठान के समापन दिवस पर दीदी मंदाकिनी ने मानस एवं गीता भागवत पुराण में आत्म प्रबंधन के सूत्रों को पिरोते हुए बताया कि राम और कृष्ण में कोई अंतर नहीं है। बहिरंग रुप से दोनों समान लगते है, अंतर केवल उनके नेत्रों में है। श्रीराम के नेत्र में गांभीर्य है, वहीं कृष्ण के नेत्र में चंचलता। अपनी लीलाओं के माध्यम से इन्हीं चंचलताओं को बताना चाहते है श्रीकृष्ण कि मन भी चंचल है। आपकी निष्ठा अपने ईष्ट के प्रति है तो दूसरे को प्रणाम करना जड़ता है ऐसा नहीं, वह तो सिर्फ प्रभु के प्रति है,यदि पक्षपात का भाव नहीं रखते है तो आनंद ही आनंद है।
भक्ति तत्व की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि वह वृंदावन और चित्रकूट में समान रुप से है। वन की उपमा गई प्रसंगों में है। दंडकारण्य का वन, संशय का वन, मनरुपी वन, मोह और अभिमान को भी गोस्वामी तुलसीदास ने वन के रुप में प्रस्तुत किया है।
मानस है मानसरोवर
मानसरोवर है रामचरित मानस जहां गोता लगाने के लिए प्रभु के प्रति विश्वास के साथ सच्ची निष्ठा और भक्ति रखनी होगी। इस मानसरोवर में कई नदियों को पार करना है, ठंडी भी है और कई कठिनाईयां भी है। ठंड के कारण जैसे मानसरोवर जाकर भी वंचित रह जाते हैं कई लोग, ठीक वैसे ही बुद्धि में जड़ता रखने वाला व्यक्ति मानस से वंचित रह जाता है। तार्किक व्यक्ति के लिए गोता लगाना संभव नहीं है।
आज तो गूगल बता रहे हैं मार्ग-
मानस में प्रेम को भी वन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। भक्तों के ह्दय में यदि प्रेम है और वे भटक गए हों तो प्रियतम (प्रभु) स्वंय उन्हे मार्ग बताने चले आते हैं। लेकिन विडंबना मोह और अहंकार से ग्रसित लोग आज गूगल पर सर्च कर अपना मार्ग ढूंढ रहे हैं लेकिन वन और नगर के भटके मार्ग के तात्पर्य को मानस के प्रसंग से समझना होगा। नगर की संरचना लोगों की बनायी हुई है लेकिन वन नैसर्गिक है। वन सिर्फ बाहर ही नहीं हमारे भीतर भी है।
भक्ति सापेक्ष हैं मोर प्रभु
दीदी मंदाकिनी ने मोर रायपुर के लोगों को बताया कि भक्ति सापेक्ष हैं मोर प्रभु। मर्यादा का पालन करते हुए उन्होने मिथिला में किशोरीजी की भक्ति और वृंदावन में गोपियों की भक्ति के लिए जो लीलाएं की हैं वह अनुकरणीय है। प्रभु ने यह बताया है कि वे भक्तों के पक्षधर है। प्रभु की कृपा जब हो जाती है तो परिपूर्णता आ जाती है। हमारे जीवन में वह आनंद और रस की अनुभूति इसलिए नहीं है क्योंकि वैसी भक्ति हमारी नहीं हैं।
00 तार्किक व्यक्ति की बुद्धि में जड़ता है इसलिए संभव नहीं
00 सफलता के लिए ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का होना जरूरी