नव निर्वाचित सांसदों को शाह का संदेश: धर्म का मतलब रीलीजन नहीं, फर्ज और दायित्व

नव निर्वाचित सांसदों को शाह का संदेश: धर्म का मतलब रीलीजन नहीं, फर्ज और दायित्व

नई दिल्ली। 17वीं लोकसभा के नये निर्वाचित सदस्यों को प्रबोधन कार्यक्रम के तहत गृह मंत्री अमित शाह ने संबोधित किया। नव निर्वाचित सासंदों को अमित शाह ने संबोधित करते हुए कहा कि हमें इस बात का एहसास होना चाहिए कि हम जो बोल रहे हैं, वह पूरी दुनिया देख रही है। हम जो बोलते हैं, उसके आधार पर संसद की छवि बनती है और बिगड़ती है। बता दें कि 17वीं लोकसभा के नये निर्वाचित सदस्यों के लिये लोकसभा सचिवालय ने 3-4 जुलाई को ”प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया है।

अमित शाह ने नव निर्वाचित सासंदों को संबोधित किया और कहा कि मैं चुनकर आए सभी दलों के सांसदों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। हमें हमेशा ये ध्यान रखना होगा कि सवा सौ करोड़ लोगों के देश में 543 सांसद चुने जाते हैं, ये सांसद ही देश का भविष्य तय करते हैं। नये संसद सदस्यों को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा कि औसतन 15 लाख से ज्यादा लोगों का प्रतिनिधित्व हम यहां कर रहे हैं। जब तक हम प्रतिनिधित्व जिस संस्था में कर रहे हैं उस संस्था के बारे में नहीं जानेंगे, तब तक हमारा अच्छा और प्रभावी सांसद बनना असंभव होगा।

अमित शाह ने कहा कि आज हम लोकसभा के अंदर बैठे हैं, हर रोज आते हैं, हर रोज यहां वक्तव्य देंगे, मगर ये संस्था क्या है? जब तक वो गौरव के साथ में नहीं पहचानेंगे अपने आप के बारे में भी गौरव खड़ा करना और प्रभावी काम करना असंभव है।

अमित शाह ने कहा कि हमें सदैव इस बात का बोध रहना चाहिए कि हम जो यहां बोलते हैं उसे सिर्फ हमारे क्षेत्र के लोग देख रहे हैं या पार्टी के लोग ही देख रहे हैं, ऐसा नहीं है। यहां हमारा वक्तव्य दुनिया के लोगों के सामने है। हमारी बात से ही संसद और हमारे लोकतंत्र की साख बनती-बिगड़ती है।

अमित शाह ने कहा कि हमें ये सदैव ध्यान रखना चाहिए कि राजनीति आरोप-प्रत्यारोप में जवाब देना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन इसके साथ में कानून बनाने की प्रक्रिया में हमारा योगदान महत्वपूर्ण और सटीक होना चाहिए। सदन का प्राथमिक दायित्व कानून बनाना है। यहां बजट पेश होता है, बजट पर अलग-अलग विचार व्यक्त होते हैं। बजट के माध्यम से देश का खाका खींचने का काम ये संसद ही करती है।

अमित शाह ने सासंदों से कहा कि धर्म शब्द को कोई ओछी तरीके और कंजर्वेटिव तरीके न लें। ‘धर्मचक्र प्रवर्तनाय’ का मतलब है कि भारत के शासक धर्म के रास्ते आगे बढ़े। धर्म का मतलब रीलीजन नहीं होता है। धर्म का मतलब हमारा फर्ज और दायित्व होता है। एक नागरिक का देश के प्रति धर्म क्या होता है, एक सासंद का संसद के प्रति धर्म क्या होता है, इसका बोध कराने के लिए धर्मचक्र प्रवर्तनाय का यह सूत्र अध्यक्ष की कुर्सी के पीछे लिखा है।

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