आत्मा और परमात्मा का मिलन ही राजयोग – उर्मिला दीदी
रायपुर। वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी उर्मिला दीदी ने कहा कि आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से जोडऩा ही राजयोग कहलाता है। चूंकि परमात्मा ही सभी गुणों और शक्तियों के अविनाशी स्त्रोत हैं। अत: उनकी याद से हमें न सिर्फ सच्ची खुशी मिलती है वरन्ï हमारे जीवन से रोग और शोक भी मिट जाते हैं। सभी योगों में श्रेष्ठï होने के कारण ही इसे राजयोग कहा जाता है।
ब्रह्माकुमारी उर्मिला दीदी आज प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा विश्व शान्ति भवन चौबे कालोनी रायपुर में आयोजित तनावमुक्ति एवं शान्ति अनुभूति शिविर के अन्तर्गत भारत का प्राचीन योग-राजयोग विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रही थीं। उन्होंने आगे कहा कि गीता में वर्णित भारत का प्राचीन राजयोग सभी योगों में श्रेष्ठ है। योग का शाब्दिक अर्थ होता है जोड़ अथवा मिलन। इसका विपरीत शब्द है वियोग अर्थात बिछुडऩा। मन और बुद्घि से परमात्मा को याद करना ही सच्चा योग है।
अपने उद्ïबोधन में उन्होने कहा कि जैसे बिजली के तारों को जोडऩे के लिए उसके ऊपर का रबर उतारना पड़ता है, ठीक वैसे ही परमात्मा से सर्व प्राप्तियां करने के लिए हमें अपनी देह के भान को भूलकर परमात्मा के समान अशरीरी अवस्था में स्थित होना पड़ेगा। ब्रह्माकुमारी उर्मिला दीदी ने बताया कि राजयोग से अतिइन्द्रीय सुख की अनुभूति होती है, साथ ही आत्मा के निजी गुणों सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम आदि की भी अनुभूति कर सकते हैं। राजयोग हमें परमात्मा के निकट ले जाता है।
उन्होने कहा कि आजकल योग के नाम पर तरह तरह के व्यायाम और आसन आदि करना सिखलाया जा रहा है। इससे शरीर पहलवान जैसा स्वस्थ बन सकता है, लेकिन वह कोई यथार्थ योग नही है। राजयोग में परमात्मा का सत्य परिचय जान लेने के उपरान्त उन्ही बातों का स्मरण करते हुए मन से परमात्मा को सम्बन्धपूर्वक याद किया जाता है। संकल्पों में रमण करते हुए धीरे-धीरे एक अवस्था ऐसी प्राप्त होती है जब मन और बुद्घि एकाग्र होने लगती है तथा संकल्प स्वत: ही कम हो जाते हैं। इस अवस्था में हमें आत्मा और परमात्मा के गुणों की अर्थात सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, पवित्रता और शक्ति की दिव्य अनुभूति होती है।