कलयुग में हर आदमी नाच रहा है – शंभूशरण

कलयुग में हर आदमी नाच रहा है – शंभूशरण

रायपुर। हम बदलें न बदलें लेकिन इतना जान लें कि जमाना बदल चुका है और उसी के अनुसार चलना होगा इसलिए कलयुग में आज हर आदमी नाच रहा है भले ही उसके नाचने का परिपेक्ष्य कुछ और हो। जब प्रयास से काम न बने तब विश्वास पर आश्रित हो जाना चाहिए। जिस जगत में हर जगह परमात्मा हैं उसी के प्रागट्य पर सवाल किया जाता है कि श्रीराम का अवतरण कहां से किस रूप में हुआ।

निमोरा में आयोजित श्रीरामकथा ज्ञानयज्ञ में संत शंभूशरण लाटा महाराज ने श्रीराम जन्मोत्सव के प्रसंग पर श्रद्धालुओं को बताया कि राम जन्म का प्रसंग अयोध्या में अलौलिक था इसलिए कि कौन ऐसा था जो इस अवसर का साक्षी न बनना चाहे। यहां तक कि शिवजी भी साधु का वेष धारण कर दर्शन करने पहुंचे थे। सूर्य भी स्थिर हो गया था सूर्यवंश के इस कुलगौरव को देखने, रात तरस रही थी भगवान के देखने यहां तक कि वायु भी थम गया था। जिस जगत में निवास करते हैं उसी के अनुरूप आम आदमी की तरह उन्होंने जन्म लिया था। हालांकि उन्होंने माता कौशल्या को अपने विराट रूप का दर्शन जरूर कराया था फिर भी मां से वचन ले लिया था कि वे इसका जिक्र किसी से नहीं करेंगे।

लाटा महाराज ने एक आम आदमी के संदर्भ में कहा कि जिस दिन इस भवसागर रुपी विषयों से वैराग्य हो जाए और केवल भगवान प्राप्ति ही उसका लक्ष्य रहे तो भगवान उसे अवश्य प्राप्त होंगे। जब प्रयास से काम न बने तब विश्वास पर आश्रित हो जाना चाहिए। भगवान प्रेम से प्रकट होते है और प्रेम से प्राप्त किए जा सकते है। बशर्ते उस व्यक्ति का भगवान के प्रति वैसा प्रेम हो। उन्होंने कहा कि इस संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसके जीवन में कोई न कोई कमी न हो, हम जीवन में कमी की पूर्ति के लिए लोगों के सामने हाथ पसारते है, दूसरों की बातों पर विश्वास करते है, उनके सामने रोते है। लेकिन कभी भगवान पर विश्वास नहीं करते। जीवन में हंसने के लिए साधन तो हमने जुटा लिए है लेकिन रोने के लिए कोई स्थान नहीं रखा है।

हर आदमी नाच रहा है-

कलयुग की विडंबना है कि हर आदमी नाच रहा है,चाहे इसका परिपेक्ष्य कुछ भी हो। जिस प्रकार एक मदारी बंदर को नचाता है वैसे ही आज के पति अपनी पत्नी के वश में होकर नाच रहे हैं, इसे अन्यथा लेने की आवश्यकता नहीं है आज घर-घर की यह कहानी है। कथा में भी पति अपने पत्नी को ले आए ताकत नहीं लेकिन पत्नी यह काम अवश्य कर सकती है। बता कर तो जाते हैं कथा में जा रहे हैं लेकिन फिल्म देखने पहुंच जाते हैं।

जमाना बदल गया है-

जमाना बदल चुका है और उसी के अनुसार हम-आपको चलना होगा,अन्यथा दुखी हो जायेंगे। घर में बुजुर्ग सास-ससुर को समय पर रोज बहुएं रोटी दे देवें तो समझो दीवाली है। बड़े शहरों में तो आज सास अपनी बहुओं के लिए चाय बनाती हैं।

00 जगत में हर जगह हैं परमात्मा, बस भाव चाहिए

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