राजनीति पिछले दिनो——–ब्रजेश चौबे,वरिष्ठ पत्रकार
फोटो – विधानसभा छत्तीसगढ़
कुछ तो वक्त लगेगा
आदत डालने में कुछ तो वक्त लगेगा भाजपा विधायकों को, दरअसल बजट सत्र में सदन के भीतर जो नजारा बार-बार दिखाई पड़ रहा था, उसे लेकर खूब चटकारे लगे। एक तो संख्या बल में कम और सदस्य उपस्थित न रहे तो विपक्ष है भी या नहीं एहसास दिलाना पड़ता था, तब स्वाभाविक है हो-हल्ला करना। लेकिन सत्तापक्ष के बाहुबली भी बुलंद दिखे, इसलिए कि 15 साल बाद वापसी का जोश भरा हुआ है। इस बार सदन में ऐसे कई अद्भूत नजारे देखने को मिले।
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फोटो- संवाद कार्यालय नया रायपुर
आपने पी 500 की चाय
पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में नए संवाद आफिस उद्घाटन के मौके पर मेहमानों को 500 रुपए कप कीमत वाली चाय पिलाये जाने का मामला इन दिनों राजनीतिक व प्रशासनिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। समारोह में लगभग 400 लोगों की उपस्थिति दिखाई गई है, अब लोग यह जानना चाह रहे हैं कि आखिर इस 5 सौ रुपए कप वाली चाय की खासियत क्या थी? लेकिन अभी तक कोई भी सामने नहीं आया है इतनी महंगी चाय की खूबी बताने वाला। फिर चाय पी तो पी किसने?
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आना-जाना लगा रहेगा
राजनीति में एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होना अब एक सामान्य शिष्टाचार बन गया है। ऐसे लोगों को सिर्फ सत्ता सुख चाहिए। तभी तो अधिकांश लोगों का रूख इन दिनो कांग्रेस की ओर है। उन्हे मालूम है अब पांच साल जो भी होना है कांग्रेस के साथ जुड़कर होना है। लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता इस नजाकत को भांप गए हैं इसीलिए देख-देख कर कांग्रेस प्रवेश करवा रहे हैं। लोकसभा चुनाव आते-आते यह खदबदाहट और बढ़ जायेगी।
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एक अनार, सौ बीमार
लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए पहले लोग सोंचते थे,लेकिन अब तो पार्षद चुनाव जैसे लोग कतार में खड़े हुए नजर आ रहे है। इसीलिए राष्ट्रीय दल पार्टी गाइड लाइन का हवाला देकर ऐसे लोगों को दरकिनार कर रहे हैं। चूंकि केन्द्र में अब की परिस्थिति में गठबंधन की सरकार बनना हैं चाहे दोनों प्रमुख दलों में किसी की भी सरकार बने इसलिए उसी नाम पर मुहर लगेगी जिसकी जीत सुनिश्चित हो। एक-एक सांसद अनमोल होंगे। क्योंकि चुनाव के नतीजे और जनता के मूड को भांप पाना आसान नहीं हैं, छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। फिर भी ताल ठोंक रहे हैं दावेदार।
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फोटो – राजीव भवन रायपुर
नहीं लेंगे कोई रिस्क
जीत का हर कारण शामिल है लोकसभा के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों का नाम तय करने के पीछे, पार्टी इस बार कोई रिस्क लेने तैयार नहीं हैं। दिसंबर 2018 में हुए चुनाव में तीन राज्यों में कांग्रेस ने जिस प्रकार सत्ता की वापसी करायी है,लोकसभा चुनाव में भी मजबूत दावेदारी के लिए पार्टी हर बिंदु पर सर्वे करा रही है। दो सर्वे हो रहे हैं एक प्राइवेट एजेंसी व दूसरा संगठन स्तर पर, लोकसभावार जो बैठकें ली जा रही हैं वह इसी का हिस्सा है। प्राइवेट एजेंसी का सर्वे विधानसभा स्तर पर चल रहा है। सर्वे में दावेदारी कर रहे लोगों की आर्थिक स्थिति, समाज का वोट, कार्यकर्ताओं की टीम जैसे बिंदुओं को भी शामिल रखा गया है। दोनों ही सर्वे को मिलाकर तीन मजबूत दावेदारों के नाम पेनल में रखे जायेंगे। इन्ही तीन में से एक या दो को तैयारी का संदेश पहले से मिल जायेगा। ताकि भीतरी तौर पर तैयारी की जा सके। अब देखना यह है कि लगातार लोकसभा में खराब प्रदर्शन का ग्राफ छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कहां तक सुधार पाती हैै।
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फोटो-भाजपा कार्यालय रायपुर
बदलाव की आहट
विधानसभा में मिली करारी हार के बाद भाजपा संगठन में फेरबदल की आहट शुरू हो गई है। वैसे तो प्रदेश अध्यक्ष पद से ही बदलाव शुरू होना है क्योंकि अब वे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका सदन में निभा रहे हैं। पिछले दिनों अमित शाह का दौरा था उसी समय इस पर मुहर लग जाने की संभावना थी.पार्टी के भीतर लोकसभा चुनाव से पहले इसकी जरूरत पार्टी कार्यकर्ता भी चाह रहे हैं। चुनाव के बाद से घर बैठ गए लोगों को सक्रिय करने का मुहिम भी पार्टी नेताओं ने शुरू कर दी है। विधानसभा में आरएसएस की उपेक्षा का अंदाजा भी भाजपा नेताओं को लग गया है इसलिए उनकी रायशुमारी लगातार ली जा रही है।
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फोटो – भूपेश बघेल
फाइल के कुछ पन्ने
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब भी याद दिलाते हैं कि अभी तो फाइल के कुछ पन्ने ही खुले हैं तो लगता है उस विभाग के गड़बड़झाला करने वाले लोगों पर शामत आ गई। सरकार बनने के बाद से लेकर अब तक भारी गड़बड़ी कई विभागों व अफसरों की सामने आ चुकी है जिसमें लिंक पूर्ववर्ती सरकार के नेताओं का भी बना हुआ है। पुलिस, एसआईटी से लेकर कोर्ट तक मामला पूरी तरह गरमाया हुआ है। लगता है लोकसभा आते-आते इसमें और तेजी आ जायेगी। विपक्ष ने इसे बदलापुर का नाम दे दिया है, लेकिन भूपेश हैं कि अपनी बात पर अड़े हुए हैं उन्होने दो टूक कह दिया है कानून के दायरे में हो रहे काम पर उंगली क्यों उठ रही है?
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आज तो हैं, कल का पता नहीं
सरकार बदलने के बाद जिस प्रकार तबादलों का दौर चला है अधिकारी-कर्मचारी भी सहमे हुए है न जाने कब तबादला सूची में उनका नाम आ जाए। हालांकि सरकार बदलने के बाद की एक सतत प्रक्रिया है लेकिन यह भी तय है कि यदि मिली नई जिम्मेदारियों का सही निवर्हन नहीं किया तो आज पोस्ंिटग हुआ तो कल तबादला भी संभव है। इसलिए अब वे यह भी कहने लगे हैं कि समान तैयार रखो आज तो यहां है कल का पता नहीं।
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फोटो सिंहदेव–
बाबा की सादगी सबको पसंद
पहले तो लोग राजा साहब, बाबा साहब न जाने कितने उपनाम से पुकारते थे वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव को लेकिन मंत्री बन जाने के बाद भी उनकी सादगी में कोई बदलाव नहीं आया है। यह उनकी कार्यशैली को लेकर नहीं बल्कि आम लोगों से मेल जोल के लिए वे किसी भी प्रकार के प्रोटोकाल का पालन नहीं करते। विपक्ष के लोगों को भी वे पूरा सम्मान देते हैं,बात यदि ज्यादा कुछ हो गई तो शिष्टता से खेद भी प्रगट कर लेते हैं। जर्जर हो चुके राज्य के स्वास्थ्य महकमे को वे दुरूस्त करने में लगे हुए हैं, डाक्टरों की नियुक्ति सरकारी अस्पतालों में उनका बड़ा फैसला है। सस्ता व बेहतर इलाज कैसे मिले इस पालिसी को अमल में लाने वे इन दिनों जुटे हुए हैं।
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