नरवा-गरूवा-घुरूवा-बारी संवर्धन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था होगी मजूबत: अपर मुख्य सचिव श्री मण्डल

नरवा-गरूवा-घुरूवा-बारी संवर्धन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था होगी मजूबत: अपर मुख्य सचिव श्री मण्डल

रायपुर। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री आर.पी.मण्डल ने कहा है कि नरवा, गरूवा, घुरूवा और बाड़ी के संरक्षण और संवर्धन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। श्री मण्डल आज यहां जिला कलेक्टोरेट परिसर स्थित रेडक्रॉस सभाकक्ष में नरवा-गरवा-घुरूवा-बाड़ी योजना (एनजीजीबी) के तहत गौठान तथा घुरूवा का चिन्हांकन एवं निर्माण के संबंध में आयोजित संभाग स्तरीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इससे बड़ी संख्या में ग्रामीणजनों को अपने ही गांव में रोजगार के अवसर मिल सकेंगे। गांवों में गौठानों के बनने से गौसंवर्धन और इससे जुड़ी आजीविका के विकास के साथ ही किसानों को मवेशियों द्वारा फसल चरनेे की समस्या से निजात मिलेगी । किसान खरीफ के साथ-साथ आसानी से रबी की फसल भी ले सकेंगे। उन्होंने कहा कि ये कार्य तभी सफल होेंगे जब इन कार्यो में अधिक से अधिक जनसहभागिता सुनिश्चित की जाए।

कार्यशाला में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की सचिव श्रीमती रीता शांडिल्य, रायपुर संभाग के आयुक्त श्री जी.आर. चुरेन्द्र, रायपुर कलेक्टर डॉ.बसवराजु एस., जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ.गौरव कुमार सिंह सहित संभाग के सभी जिला पंचायत और जनपद पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा, कृषि, उद्यान, पशुधन विकास विभाग के जिला अधिकारी उपस्थित थे।

अपर मुख्य सचिव ने कहा कि नरवा-गरवा-घुरूवा-बाड़ी योजना (एनजीजीबी) छत्तीसगढ़ शासन की अति महत्वपूर्ण व बहुआयामी योजना है। योजना के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना है। इसके जरिये ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार लाना, उनका आर्थिक उन्नयन करना व ग्रामीणों की आमदनी में बढ़ोत्तरी करना है। श्री मण्डल ने कहा कि सभी जिलों में 15 प्रतिशत ग्राम पंचायतों में आगामी 28 फरवरी तक गौठान निर्माण के कार्य प्रारंभ हो जाए तथा प्रथम चरण का कार्य आगामी अप्रैल माह तक पूर्ण कर लिया जाए। श्री मण्डल ने कहा कि गांव में गौधन का बेसलाईन सर्वे कर प्रति 100 गौधन के लिए एक एकड़ भूमि चिन्हांकित कर गौठान का निर्माण किया जाए। यदि किसी गांव में 300 गौधन है तो वहां तीन एकड़ में गौठान बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि गौधन के रख-रखाव के लिए पारम्परिक एवं प्रचलित व्यवस्था को ही बरकरार रखा जाए। गौठान को डे-केयर संेटर के रूप में विकसित किया जाएगा। गौठान का निर्माण ग्राम बसावट के पास और गौधन व मवेशियों के आने-जाने वाले रास्ते और जल स्त्रोत जैसे नदी-नाले, तालाब आदि के नजदीक किया जाए। गौठान का चयन ऊंचाई वाले स्थान में किया जाए ताकि वहां पानी व कीचड़ का भराव न हो। गौठानों की देख-रेख के लिए ग्राम गौठान समिति का गठन किया जाए। गौठान में ही घुरूवा (खाद बनाने का गढ्ढा) बनाया जाए। गौठान के चारों ओर करौंदा, बांस आदि से फेसिंग किया जाए तथा अन्दर फलदार पौधों का प्लांटेशन किया जाएगा। जिन स्थानों पर बारहमासी सतही जलस्त्रोत उपलब्ध न हो वहां बोरवेल किया जाए। यहां खाद टंकी भी बनायी जाएगी और इसे सामुदायिक गोबर गैस इकाई से जोड़ने की व्यवस्था की जाएगी। गौठान में ग्रामीण के लिए चौपाल भी बनाया जाएगा। गौठान के नजदीक ही मवेशियों के लिए चारागाह भी बनाया जाएगा। गौठानों में कृत्रिम गर्भधान, टीकाकरण एवं बधियाकरण की सुविधाएं दी जाएगी। इससे दुधारू पशुओं की नस्ल में सुधार एवं दूध के उत्पादन में वृद्धि होगी। घुरूवा- गौठान में सामुदायिक आधार पर बायोगैस प्लांट, कम्पोस्ट इकाईयां एवं चारा विकास केन्द्र बनाए जाएंगे। इससे कम लागत में अधिक फसल उत्पादन एवं ऊर्जा उत्पादन का लाभ मिलेगा।

* अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गरूवा, घुरूवा के क्रियान्वयन के संबंध में संभाग स्तरीय कार्यशाला आयोजित

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