भ्रष्टाचार से धर्म क्षेत्र भी अछूता नहीं – लाटा महाराज
रायपुर। भ्रष्टाचार तो रावण युग से चले आ रहा है और आज इसने व्यापक रुप धारण कर लिया है। केवल राजनीतिक, व्यापार, शिक्षा के साथ-साथ धर्म क्षेत्र में आ गया है। अन्य क्षेत्रों की तुलना में धर्म में भ्रष्टाचार अधिक है। संसाद भ्रष्टाचार मुक्त तो हो ही नहीं सकता। कांदुल दुर्गा मंदिर परिसर में चल रही रामकथा के तीसरे दिन भगवान शिव और रावण भक्ति प्रसंग पर ये बातें लाटा महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार,बिगड़ी राजनीति, व्यापार तथा शिक्षा तो एक बार सुधर जाएगी, धर्म में भ्रष्टाचार को कैसे समाप्त होगा क्योंकि आज धर्म और कथाओं में लोगों को ठगा जा रहा है। यदि धर्म खराब हो गया तो सही रास्ता कौन दिखाएगा। आज समाज में धर्म का जो स्वरुप है वह भ्रष्टाचार का है। धर्म के नाम पर ठगराज से सावधान रहने की जरुरत है। आज संसार में ऐसी ठगरुपी खलों की संख्या बढ़ते जा रही है। आज धर्म में ढकोसला बढ़ते जा रही है।
लाटा महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत और रामकथा में यूं तो कोई अंतर नहीं है केवल नियम है। श्रीमद् भागवत में नियमों का पालन करना अनिवार्य है जबकि रामकथा में भगवान के नाम का स्मरण भजन करने के लिए कोई नियम स्थान तय नहीं है। केवल व्यक्ति को भगवान के प्रति श्रद्धा रखनी होती है। उन्होंने कहा कि इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती, एक इच्छा पूरी हुई दूसरी पैदा हो जाती है। इच्छा व्यक्ति को अच्छा नहीं रहने देती है। इच्छाओं की पूर्ति करते-करते मनुष्य अस्वस्थ होने लगता है। संसार में मनुष्य की सभी इच्छाएं भगवान पूरी नहीं करते जितना जीवन के लिए आवश्यक है वे उसे अवश्य देते है। मनुष्य की खोपड़ी खाली पात्र से भी बदतर है जो कभी भरती ही नहीं है।
लाटा महाराज ने कहा कि व्यक्ति को जिस दिन इस संसार रुपी भवसागर रुपी विषयों से वैराग्य हो जाए और केवल भगवान प्राप्ति ही उसका लक्ष्य रहे तो भगवान उसे अवश्य प्राप्त होंगे। भगवान प्रेम से प्रकट होते भी है और प्रेम से प्राप्त किए भी जा सकते है। बशर्ते उस व्यक्ति का भगवान के प्रति वैसा प्रेम हो। उन्होंने कहा कि इस संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसके जीवन में कोई न कोई कमी न हो, हम जीवन में कमी की पूर्ति के लिए लोगों के सामने हाथ पसारते है, दूसरों की बातों पर विश्वास करते है, उनके सामने रोते है। लेकिन कभी भगवान पर विश्वास नहीं करते। जीवन में हंसने के लिए साधन तो हमने जुटा लिए है लेकिन रोने के लिए कोई स्थान नहीं रखा है।
महाराज जी ने कहा कि यह संसाररुपी कुएं में हम सब ईश्वर के अंश है और इस कुएं में हमारा दोबारा गिर न जाए इसलिए भगवान हमें वेदशास्त्रों के माध्यम से कथा श्रवण के माध्यम से निकालने का प्रयास करते है लेकिन व्यक्ति इसे समक्ष नहीं पाता और वह संसाररुपी भौतिकता में ही भटकता रहता है।
00 भगवान प्रेम से ही मिलते है