नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को कहा कि स्वतंत्र, निष्पक्ष और भयमुक्त चुनाव सुनिश्चित करने वाले चुनाव अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने से पहले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उसकी मंजूरी की आवश्यकता होगी। आयोग ने कैबिनेट सचिव, मुख्य सचिवों, कार्मिक विभाग के सचिव आदि को जारी आदेश में कहा कि चुनाव अधिकारियों को चुनावों के बाद उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
बयान में कहा गया है, “चुनाव आयोग को चुनाव के बाद मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ), अतिरिक्त / संयुक्त / डिप्टी / सहायक सीईओ के उत्पीड़न के कुछ उदाहरण मिले हैं। कई बार उनके कार्यकाल के पूरा होने के बाद राज्य सरकार द्वारा निशाना बनाया जाता है।”
चुनाव आयोग ने आगे कहा कि इस तरह के मामलों में अधिकारी न सिर्फ डिमोटिवेट होते हैं, बल्कि उनका मनोबल भी काफी घट जाता है। इससे उनके निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने की कोशिशों को प्रभावित करता है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने भी माना है कि चुनाव ड्यूटी के दौरान राज्य / केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती है। वहीं, सरकार गलत अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की सलाह को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। डीओपीटी के निर्देशों के अनुसार, अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का अधिकार आयोग के पास है।
चुनाव आयोग का कहना है कि मुक्त, निष्पक्ष, और निर्भीक चुनाव कराने के लिए अधिकारियों को उत्पीड़न से सकारात्मक संरक्षण जरूरी है। इस वजह से सरकारों को मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEO) और अन्य अधिकारियों के खिलाफ किसी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने से पहले आयोग की मंजूरी लेने का निर्देश दिया जाता है। वहीं, सरकार को सीईओ की सुविधाओं- जैसे गाड़ी, सुरक्षा और अन्य सुविधाओं को भी कम नहीं करने का आदेश दिया गया।