जयपुर। देश के कई राज्यों में आज भी अवैध बाल विवाह कराया जा रहा है, सरकार के कड़े कानूनों के बावजूद इस कुप्रथा पर रोक नहीं लगाई जा सकी है। इस बीच राजस्थान सरकार ने विवाह रजिस्ट्रीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 को वापस ले लिया है, जिसके तहत शादी का कानूनी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया था। इस विधेयक को लेकर उस सयम बवाल खड़ा हुआ जब इसमें नाबालिगों (बाल विवाह) के विवाह को भी शादी के 30 दिन के भीतर पंजीकृत कराने की बात सामने आई।
पिछले महीने राजस्थान सरकार ने विवाह संशोधन विधेयक, 2021 को राज्य विधानसभा में पेश किया था, लेकिन विपक्ष समेत देशभर के समाज कल्याण संगठनों ने इसका जमकर विरोध किया। 16 अगस्त को राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने राज्य विधानसभा में राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक को आगे बढ़ाया। यह बिल राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 की धारा 8 में संशोधन करता है।
इस विधेयक के पारित होने के बाद राजस्थान में अगर दूल्हा और दुल्हन की आयु 21 वर्ष से कम हो तो उनकी शादी को 30 दिनों के भीतर पंजीकरण कराना अनिवार्य था। ऐसे मामले में उनके माता-पिता या अभिभावकों को विवाह का पंजीकरण कराना होता। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस कार्यक्रम में कानून को वापस लेने के फैसले की घोषणा की। सामाजिक कल्याण संगठनों ने उस प्रावधान की वैधता पर सवाल उठाया था जिसने बाल विवाह को पंजीकृत करना अनिवार्य बना दिया था और उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
वहीं, राजस्थान में विपक्ष ने कांग्रेस सरकार पर राज्य में बाल विवाह के लिए दरवाजे खोलने और ‘एक सामाजिक बुराई को मान्यता देने’ का आरोप लगाया। राजस्थान ने 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम लाकर बाल विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया था। साल 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों पता चला कि इस कानून से बाल विवाह की घटनाओं को कम करने में मदद मिली थी।