न्यूज़ डेस्क। पश्चिम बंगाल में जारी तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक हिंसा देशव्यापी चर्चा और चिंता का विषय बन गया है। इस हिंसा में बीजेपी के अलावा राज्य के कांग्रेस और वामपंथी दलों के कार्यकर्ता भी प्रभावित हुए हैं। हिंसा के पीछे के तथ्य को उजागर करने के लिए बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों ने चुनाव बाद हिंसा के 20 पीड़ितों का साक्षात्कार लिया और केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट ‘खेला इन बंगाल 2021: शॉकिंग ग्राउंड स्टोरीज’ सौंपी।
किशन रेड्डी ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस बंगाल में डॉ बाबा साहब अंबेडकर के संविधान के खिलाफ सरकार चला रही है और राज्य की पुलिस टीएमसी के कार्यकर्ताओं की तरह काम कर रही है। रेड्डी ने कहा लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए केंद्र सरकार आगामी दिनों में इस मुद्दे पर चर्चा करेगी।
A team of Group of Intellectuals and Academicians has submitted the Centre its report into violent incidents that took place after Bengal assembly polls. The violence is still going on. Home Ministry-led committee has also submitted report on same issue: MoS (Home) G Kishan Reddy pic.twitter.com/5HT5OFLR3s
— ANI (@ANI) May 29, 2021
बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों की टीम ने जिन 20 लोगों का साक्षात्कार किया, उनमें नौ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग की महिलाएं हैं और नौ महिलाएं सामान्य वर्ग और दो पुरुष शामिल थे। साक्षात्कार लेने वालों में सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट की वकील मोनिका अरोड़ा, जीजीएस आईपीयू की प्रोफेसर प्रो.विजिता सिंह अग्रवाल, दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर सोनाली चितालकर और डॉ श्रुति मिश्रा, उद्यमी मोनिका अग्रवाल शामिल थीं।
राज्य में व्याप्त अराजकता और एक केंद्रीय मंत्री पर टीएमसी कैडर के हमलों के कारण ये साक्षात्कार जूम और गॉगल मीट जैसे प्लेटफॉर्म के साथ-साथ फोन पर ऑनलाइन आयोजित किए गए थे। इस दौरान पीड़ितों के नाम और पहचान गुप्त रखी गई है। टीएमसी कैडर द्वारा संगठित हिंसा से उनके जीवन को गंभीर और लगातार खतरा बना हुआ है।
टीम का मुख्य निष्कर्ष यह है कि बंगाल में हिंसा को केवल ‘राजनीतिक हिंसा’ मानने से मुख्य रूप से सामना की जाने वाली भयावहता को कम करना है। हिंदू समाज के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग जिन्होंने बीजेपी का समर्थन या वोट किया, सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। इस हिंसा में पीड़ितों की लिंग, जाति, धार्मिक और आर्थिक पहचान परिणाम के रूप में पहचानना होगा।
टीम का कहना कि राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ यह हिंसा एक जनसंहार की प्रकृति में थी। महिलाओं का सबसे भयानक तरीकों से दुष्कर्म किया गया, पीटा गया और उसका डराया गया। क्रूड बम से हमला किया गया, आदमियों की हत्या की गई और उनके राशन कार्ड को लूटा गया। टीम की मुख्य सिफारिश यह है कि बंगाल की महिलाओं और बच्चों की रक्षा के लिए कानून के सभी मौजूदा तंत्र चाहें वह सर्वोच्च न्यायालय हो या विभिन्न राष्ट्रीय आयोगों को अपना कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए।