संस्कार अच्छे हो या बुरे, हार्टफुलनेस करती है दूर

संस्कार अच्छे हो या बुरे, हार्टफुलनेस करती है दूर

रायपुर। कर्म करते हैं तो स्वाभाविक है उसकी प्रतिक्रिया भी होगी, चाहे अच्छे हो बुरे। पुण्य व पाप कर्मों का फल हम भोगते हैं। पुण्य और पाप दोनों ही संस्कार होते हैं। आत्मा असीमित है लेकिन बीच में हमारे संस्कार आ जाते हैं। हर किसी में संस्कार होता है, नए संस्कार पुराने संस्कारों की नींव पर बनते है। संस्कार एक वृक्ष की तरह है और शाखाओं के रुप में यह निरंतर आगे बढ़ते जाते है। संस्कार तब तक क्रियान्वित नहीं होता जब तक कोई बाहरी घटना निकटस्थ कारण न बने। पूर्व संस्कारों के परिणाम को हमें मूर्तरुप में भोगना ही पड़ता है। हम अपने आपको या दूसरों को अपने भाग्य के लिए दोषी नहीं ठहरा सकते। शरीर के भीतर की नकारात्मकता को कैसे करें बाहर यह भी बताती है हार्टफुलनेस। संस्कार चाहे अच्छे हो या बुरे हार्टफु लनेस बगैर दोनों में भेद किए सफाई कर देती है।

वैश्विक मार्गदर्शक कमलेश डी. पटेल (दाजी) ने इंडोर स्टेडियम में आयोजित हार्टफुलनेस ध्यान शिविर में दूसरे दिन बताया कि हमारे पास निश्चित रुप से एक स्वतंत्र इच्छा है और वास्तव में वही हमारी समस्या भी है। संस्कारों को नियंत्रित करने के भी दो पहलू है एक कि हम अपने हृदय से जुड़े रहे और संस्कारों के खिंचाव से प्रभावित न हो और दूसरा यह कि हम सफाई की प्रक्रिया के द्वारा और भोग के जरिये संस्कारों को हटाते रहे।

प्रकृति का उद्देश्य है अपने तंत्र को शुद्ध रखना। ठीक वैसे ही प्रकृति हमें कोई सबक सिखाना चाहती है वह तो सिर्फ हमारे संस्कारों के वजन से मुक्त करती है जिससे हमारी चेतना हल्की और शुद्ध रह सके। जबकि योग साहित्य में पढ़ा या सुना होगा नकारात्मक संस्कारों को सकारात्मक संस्कारों से ही बदला जा सकता है। अच्छे या बुरे संस्कार वाले व्यक्ति बंधनों में ही बंधे होते है। इसलिए हार्टफुलनेस अच्छी या बुरी नहीं बल्कि हर चीज को साफ कर देती है।

शुद्धिकरण की इस प्रक्रिया को सरल रुप में समझाते हुए दाजी ने कहा कि हम हर रोज अपनी व्यक्तिगत सफाई कर लें अर्थात अपने जमा संस्कारों को उसी दिन हटा दें। हार्टफुलनेस प्रशिक्षक के साथ नियमित ध्यान सत्र करके (सिटिंग) लेकर हम अपने-अपने पुराने संस्कारों का बोझ भी हल्का कर सकते है। फिर भी हमें स्वयं को कभी अशुद्ध या गंदा नहीं समझना चाहिए, हमें शुद्धता की ओर आगे बढ़ते जाना चाहिए। अपने संस्कारों के नीचे तो हम पहले से ही शुद्ध और सरल है। अशुद्धता कभी आत्मा को स्पर्श नहीं करती। कल शिविर के समापन दिवस पर प्रार्थना के सत्र से शुद्धिकरण का रास्ता बताया जायेगा। शुक्रवार को ध्यान शिविर सुबह 10.30 बजे प्रारंभ होगा।

काम ऐसा करों कि उसकी छाप न पड़े-

दाजी ने बताया कि काम ऐसा करो कि उसकी छाप न पड़े। जिस प्रकार कमल गंदे पानी में रहकर भी अपने फूलों तक गंदगी को नहीं पहुंचने देती ठीक वैसे ही जो जीवन में संस्कार मिला है वह खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए उपयोग में लाएं तो महान बन जायेंगें।

विदेश से भी पहुंचे हैं शिविरार्थी-

हार्टफुलनेस ध्यान शिविर में छत्तीसगढ़ के अलावा देश और विदेश से काफी संख्या में शिविरार्थी पहुंचे हुए हैं। आस्टे्रलिया,अमेरिका से पहुंचे साधक शिविर में न केवल पूरी सादगी व अनुशासन मेें हिस्सा ले रहे हैं बल्कि अमलेश्वर स्थित आश्रम में रूके हुए भी हैं। शिविर पूरी तरह नि:शुल्क है। आज भी कई स्कूलों के बच्चे व सेना के जवान शिविर में पहुंचे हुए थे।

00 पुण्य व पाप का फल भोगना ही पड़ता है – दाजी

संबंधित समाचार

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.