जीवन में सफलता के लिए धर्मरूपी सारथी का साथ होना जरूरी – दीदी मंदाकिनी

जीवन में सफलता के लिए धर्मरूपी सारथी का साथ होना जरूरी – दीदी मंदाकिनी

रायपुर। सारे सद्गुण आपके जीवन में क्यों न हो, पर कर्म की यमुना पर शासन किसका है यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। कर्म की आवश्यकता जीवन में है इसमें कोई शक नहीं। लेकिन धर्मरूपी सारथी का साथ होना जरूरी है नहीं तो जीवन में पराजित हो जायेंगे। कितना भी दुराचारी क्यों न हो यदि वह भगवान की भजन करता है और उसका मार्ग सही है तो निश्चित ही वह सद्गति तक पहुंच जायेगा। बुद्धि में स्पष्टता का होना आवश्यक है क्योकि बुद्धि और अभिमान भाई-बहन हैं। सरयू के दो किनारे हैं सत्संग और कथा इसलिए पूरे मन से सुने और अवध की अनुभूति करें।

सिविल लाइन स्थित गुरूतेगबहादुर सभागार में श्रीराम कथा अनुष्ठान के तीसरे दिन मानस एवं गीता भागवत पुराण में आत्म प्रबंधन विषय पर मानस मर्मज्ञ दीदी मां मंदाकिनी ने बताया कि बुद्धि और विवेक का सारथी अहंकारी नहीं हो सकता। कर्म करना तो आवश्यक है, क्रिया में विवेक नहीं लगाएंगे और अहंकार की वृत्ति लेकर उतरेंगे तो चाहे कितने ही सद्गुणी क्यों न हों सफल नहीं हो पायेंगे। कर्ण सिर्फ धनुर्विद्या ही नहीं बल्कि हर मामलों में अर्जुन से ज्यादा सदगुणी था। लेकिन दुर्योधन के प्रति उनका समर्पण इतना था कि श्रीकृष्ण की कूटनीति भी उसे डिगा नहीं सकी। यहां समर्पण की दृष्टि देखें जब भगवान स्वंय निमंत्रण देने पहुंचे हो और सभी प्रकार के प्रलोभन दे चुके हैं फिर भी कर्ण कौरवों की सेना से लड़ने तैयार नहीं हुआ। कर्ण अभिमानरहित कर्म कर रहा है लेकिन उसका सारथी शल्य है जो कि अभिमान का प्रतीक है और महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी भगवान श्रीकृष्ण को ही चेतावनी दे रहा है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि कर्म की यमुना पर शासन किसका है।

कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए दीदी मंदाकिनी ने बताया कि बुद्धि में भ्रांति न पाले। बुद्धि और अभिमान को भाई-बहन बताते हुए कहा कि कंस अभिमान, देवकी बुद्धि और वसुदेव विवेक के प्रतीक थे। लेकिन कुछ पल के लिए बुद्धि और विवेक को भी भ्रम हो गया था। कंसरूपी क्रिया के मूल में लोभ की वृत्ति थी और शासन अभिमान का था और यही उसके नष्ट होने का कारण बना।

रोकने से और बढ़ती है भक्ति-

किसी को कार्य करने से यदि रोका जाए तो उसे करने की इच्छा जागृत होती है। ठीक वैसे ही यदि भक्ति को रोकने का प्रयास किया जाए तो वह और बढ़ती है। इसीलिए रावण ने कभी भी विभीषण को भक्ति करने से नहीं रोका और यही वजह था कि तमाम दुर्गुण होते हुए भी अपने भाई को छोड़कर विभीषण श्रीलंका से अनयंत्र कहीं नही गया।

सरयू के दो किनारे हैं सत्संग और कथा-

हम सबके जीवन में यमुना प्रवाहित हो रही है। अयोध्या और सरयू यदि मनुष्य के अंतर हृदय में हो तो रामचरित मानस कैलाश मानसरोवर तीर्थ है। भक्ति प्रेम से घनीभूत विश्वास लेकर भगवान की कथा सुनेंगे तो संत सभा-सत्संग स्थल ही अयोध्या है। अंत:करण से सुनेंगे तो अवध की अनुभूति होगी।

00 बुद्धि और अभिमान हैं भाई – बहन 00 सरयू के दो किनारे हैं सत्संग और कथा

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