संचार के आधुनिक माध्यमों से समृद्ध हुआ है हिन्दी साहित्य
रायपुर। संचार के माध्यमों के विकास के साथ-साथ हिन्दी साहित्य का भी विकास हुआ है। हिन्दी साहित्य को आधुनिक संचार माध्यमों ने वैश्विक पहचान दी है। एक समय साहित्य और पत्रकारिता का अटूट संबंध था किन्तु आज दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई हैं जिसे खत्म करने की आवश्यकता है। दूसरों तक अपनी बात पहुँचाने में व्यक्ति स्वयं माध्यम है।
उपर्युक्त बातें मैट्स विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी साहित्य और संचार माध्यम विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में अतिथियों, प्राध्यापकों तथा शोधार्थियों ने व्यक्त कीं। हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. रेशमा अंसारी ने बताया कि राष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार गीताश्री (दिल्ली), विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश नैयर उपस्थित थे। गीता श्री ने पत्रकारिता व हिन्दी साहित्य के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई हैं जिन्हें कम करना संभव प्रतीत नहीं होता। साहित्यकारों ने ही पत्रकारिता को आगे बढ़ाया है। प्राचीन काल से अब तक सफर तय करते-करते दोनों अलग-अलग हो गये। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश नैयर ने कहा कि पहले जो साहित्यकार होता था वह पत्रकार भी हुआ करता था और वही पत्रकार श्रेष्ठ माना जाता था जिसे साहित्य में रूचि हुआ करती थी। स्वतंत्रता के आंदोलन में अंग्रेजो के शासनकाल में साहित्यकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है जन-जन को अपने साहित्य के माध्मय से जागरुक करने में समय के साथ-साथ साहित्य की प्रवृत्तियाँ भी बदली हैं।
00 राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोधार्थियों ने प्रस्तुत किये शोध पत्र