जीवन में कथा ही अमृत प्रदान करती है – लाटा महाराज

जीवन में कथा ही अमृत प्रदान करती है – लाटा महाराज

रायपुर। इस भौतिक युग में कथा ही मनुष्य को अमृत प्रदान करती है। कथा रुपी अमृत का सेवन करने से मनुष्य का जीवन तर जाता है क्योंकि जब तक व्यक्ति में श्रद्धा होगी नहीं वह कथा का श्रवण करेगा नहीं। जिस दिन जीवन में भगवान और उनकी कथाओं में व्यक्ति की श्रद्धा हो जाए उसी क्षण से मनुष्य के जीवन में परिवर्तन की शुरुआत हो जाती है।

दुर्गामंदिर समिति द्वारा दुर्गा मंदिर परिसर प्रांगण कांदुल में आयोजित रामकथा के दूसरे दिन संत शंभूशरण लाटा महाराज ने ये बाते श्रद्धालुओं को बताई। उन्होंने कहा कि भगवान की जितनी भी लीलाएं है वे सब संसारिक व्यक्ति के लिए है और उनके जीवन से जुड़ी है। रामकिंकर महाराज जी द्वारा की गई रामकथा में सूत्रों की सूक्ष्म समीक्षा का जिक्र करते हुए लाटा महाराज ने कहा कि सती संशय का प्रतीक है, पार्वती श्रद्धा का। मन में संशय आने पर व्यक्ति अपना ही विनाश कर बैठता है। पार्वती जैसी श्रद्धा आने पर भगवान को प्राप्त कर सकता है। सती के योग अग्नि में स्वयं को समर्पित करने के भाव उन्होंने कहा कि जहां पर गुरु, संत, राष्ट्र की निंदा हो रही हो उस स्थान से चले जाना ही अच्छा है क्योंकि इनकी निंदा का श्रवण करना भी पाप है और पाप का फल भोगना ही पड़ता है। संशय को जलना पड़ता है और श्रद्धा से शीतलता मिलती है।

लाटा महाराज ने कहा कि संसार में आज परिस्थितियां ऐसी है कि प्रत्येक व्यक्ति ऊपर से हंस रहा है लेकिन भीतर से रो रहा है। भीतर से उसे शांति नहीं मिल रही है, उसे यह आंतरिक शांति भगवान की कथाओं से व संतों के साथ सत्संग से ही प्राप्त हो सकती है। हाथ की रेखाएं तो बदल सकती है लेकिन मस्तिष्क की रेखाएं नहीं बदलती। व्यक्ति के भाग्य में जो लिखा है वह उसे भोगना ही पड़ता है उससे वह बच नहीं सकता। भाग्य केवल शिव ही बदल सकते है उसके लिए वैसा शिव भक्त होना पड़ता है। स्थान बदलने से भाग्य नहीं बदल जाता।

लाटा महाराज ने कहा कि विज्ञान चाहे कितनी भी तरक्की कर लें लेकिन कभी वह धर्म से आगे नहीं बढ़ सकता। धर्म में विज्ञान तो आ सकता है लेकिन विज्ञान में धर्म नहीं हो सकता। धर्म तमाशा नहीं है धर्म समझने का और उस पर अनुशासन का है। जिस घर में गुरु न आए, संत न आए, वेदों और भगवान की पूजा न हो वह घर,घर नहीं शमशान जैसा होता है वहां पर कभी अच्छे कार्य शांति नहीं हो सकती।

00 गुरु, संत, राष्ट्र की निंदा का श्रवण करना भी पाप

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