न्यायमूर्ति सीकरी को नहीं भाया PM मोदी का गिफ्ट, ठुकराया केंद्र सरकार का यह प्रस्ताव

न्यायमूर्ति सीकरी को नहीं भाया PM मोदी का गिफ्ट, ठुकराया केंद्र सरकार का यह प्रस्ताव

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए के सीकरी को लंदन स्थित राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (सीएसएटी) में सेवानिवृत्ति के बाद एक सरकारी प्रस्ताव मिलने पर रविवार को विवाद खड़ा हो गया। इससे सिर्फ तीन दिन पहले उनके वोट से सीबीआई के निदेशक के पद से आलोक वर्मा को हटाने का फैसला किया गया। उन्हें इस पद की पेशकश पिछले साल की गई थी। माना जा रहा है कि सरकार ने पिछले साल के अंत में सीएसएटी के लिये एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा,जब इंसाफ के तराजू से छेड़छाड़ की जाती है तब अराजकता का राज हो जाता है। सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रमंडल न्यायाधिकरण के पद के लिये सीकरी की सहमति मौखिक रूप से ली गई थी। न्यायमूर्ति सीकरी को छह मार्च को सेवानिवृत्त होना है। प्रधान न्यायाधीश के बाद देश के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के एक करीबी सूत्र ने बताया कि न्यायाधीश ने रविवार शाम को विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर सहमति वापस ले ली।

उन्होंने कहा कि आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से हटाने का फैसला लेने वाली समिति में न्यायमूर्ति सीकरी की भागीदारी को सीएसएटी में उनके काम से जोड़ने को लेकर लग रहे आक्षेप गलत हैं। सूत्रों ने कहा, ‘‘क्योंकि यह सहमति दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में ली गई थी, इसका सीबीआई मामले से कोई संबंध नहीं था जिसके लिये वह जनवरी 2019 में प्रधान न्यायाधीश की तरफ से नामित किये गए।’’ उन्होंने कहा कि दोनों को जोड़ते हुए ‘‘एक पूरी तरह से अन्यायपूर्ण विवाद’’ खड़ा किया गया।

सूत्रों ने कहा, ‘‘असल तथ्य यह है कि दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में सीएसएटी में पद के लिये न्यायमूर्ति की मौखिक स्वीकृति ली गई थी।’’ न्यायमूर्ति सीकरी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ उस तीन सदस्यीय समिति में शामिल थे जिसने वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाने का फैसला किया था। सीकरी का मत वर्मा को पद से हटाने के लिये अहम साबित हुआ क्योंकि खड़गे इस फैसले का विरोध कर रहे थे जबकि सरकार इसके लिये जोर दे रही थी। सीएसएटी के मुद्दे पर सूत्रों ने कहा, ‘‘यह कोई नियमित आधार पर जिम्मेदारी नहीं है। इसके लिये कोई मासिक पारिश्रमिक भी नहीं है। इस पद पर रहते हुए प्रतिवर्ष दो से तीन सुनवाई के लिए वहां जाना होता और लंदन या कहीं और रहने का सवाल ही नहीं था।’’

संबंधित समाचार

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.