शरद पवार की ‘मूल चिट्ठी’, जिसे वर्ष 2010 में एग्रीकल्चर मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्रियों को लिखा था

मुंबई/नागपुर। देश के पूर्व कृषि मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार की एक चिट्ठी को लेकर सत्ताधारी बीजेपी आक्रामक है। तत्कालीन मनमनोहन सिंह नीत कांग्रेस की सरकार में कृषि मंत्री रहते शरद पवार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी थी। जिसमें कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढाने पर जोर दिया गया था। पवार की इसी चिट्ठी को लेकर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेंस कर किसान आंदोलन को हवा देने की विपक्षी साजिश का आरोप लगाया।

हम तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार की मूल चिट्ठी यहां शेयर कर रहे हैं, जिसे उन्होंने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को प्रेसित किया था। शरद पवार ने इस बात की जरूरत बताई थी कि कृषि क्षेत्र को बेहतर बाजार की दरकार है, ताकि ग्रामीण इलाकों में रोजगार और उनकी अर्थव्यवस्था बेहतर हो सके। चिट्ठी में आगे लिखा गया है कि इसके लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी अहम है। चिट्ठी में लागू APMC एक्ट में बदलाव की भी वकालत की गई थी।

अब भारतीय जनता पार्टी के नेता तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार की इसी चिट्ठी की मौजूदा कानून से तुलना कर रहे हैं। दलील दी जा रही है कि किसानों का ऐतराज खासकर निजी भागीदारी और APMC एक्ट के खात्मे को लेकर है, जिसे पहले की कांग्रेस नीत सरकार ने ही प्रस्तावित किया था। अब ऐसे में भाजपा नेता और सरकार के मंत्री विपक्षी पार्टियों की मंशा को लेकर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।

पवार की चिट्ठी पर NCP की सफाई

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने सोमवार को कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के नेतृत्व वाली सरकार में बतौर कृषि मंत्री शरद पवार ने कई ‘अनिच्छुक’ राज्यों से अटल बिहारी वाजपेयी नीत सरकार के एपीएमसी कानून को लागू करने के लिए समझाया था। राकांपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि उनकी पार्टी ने संसद में नये कृषि कानूनों का समर्थन नहीं किया था और इन्हें बिना किसी चर्चा के पेश किया गया। सरकार के सूत्रों ने केंद्रीय मंत्री के तौर पर पवार द्वारा इस संबंध में कई मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र का अंश साझा किया। इसके बाद राकांपा के प्रवक्ता महेश तपासे ने इस बारे में जानकारी दी। तपासे ने कहा, ‘‘आदर्श कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम, 2003 को वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने शुरू किया था। उस वक्त कई राज्य सरकारें इसे लागू नहीं करना चाहती थीं।” तपासे ने एक बयान में कहा, ‘‘केंद्रीय कृषि मंत्री के तौर पर कार्यभार संभालने के बाद पवार ने राज्यों के कृषि विपणन बोर्डों के साथ व्यापक सहमति बनाने की कोशिश की और कानून को लागू करने के लिए उनसे सुझाव मांगे।” तपासे ने कहा, ‘‘एपीएमसी काननू के प्रारूप के अनुसार किसानों को होने वाले फायदे के बारे में उन्होंने (पवार ने) कई राज्य सरकारों को अवगत कराया, जिसे लागू करने पर वे सहमत हुए। कानून के लागू होने से देशभर के किसानों को लाभ हो रहा है। किसानों के हितों की रक्षा के लिए पवार ने इस कानून में कुछ बदलाव किया था।” तपासे ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लाए गए नये कृषि कानून ने संदेह पैदा किया है और इसने न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे मुद्दों के संबंध में किसानों के मन में असुरक्षा का भाव पैदा किया है। उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार इस नये कृषि कानून में अन्य कई मुद्दों का समाधान करने में नाकाम रही है, जिसके कारण इतने बड़े पैमाने पर देश भर के किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। केंद्र सरकार व्यापक सहमति नहीं बना सकी और किसानों तथा विपक्ष की जायज आशंकाओं को दूर करने में नाकाम रही।”

पटेल ने नागपुर में कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पेश तीनों नये कानूनों पर किसी के साथ चर्चा नहीं की गई थी और ये किसानों के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि एपीएमसी या न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को लेकर नये कानून में कोई स्पष्टता नहीं है। नुकसान होने या निजी कंपनियों या कारोबारियों द्वारा अनुबंध का पालन नहीं होने पर किसान को न्याय पाने के लिए क्या करना होगा, इस बारे में भी स्पष्टता नहीं है। संसद में विधेयक पारित किए जाने के दौरान राकांपा के अनुपस्थित रहने के बारे में पूछे गए सवाल पर पटेल ने कहा, ‘‘उस समय भी हमने कहा था कि विधेयकों को जल्दबाजी में लाया गया है।” किसानों के विरोध प्रदर्शनों को पवार द्वारा समर्थन दिए जाने के बाद सरकार के सूत्रों ने रविवार को कहा था कि संप्रग के नेतृत्व वाली सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने मुख्यमंत्रियों को अपने-अपने राज्यों में एपीएमसी कानून लागू करने के लिए कहा था ताकि इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। किसानों के मौजूदा प्रदर्शन को लेकर पवार नौ दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करने वाले हैं। किसानों के संगठनों ने आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है जिसका विपक्षी दलों के साथ राकांपा ने समर्थन किया है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि 2010 में पवार ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लिखे पत्र में कहा था कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास, रोजगार और आर्थिक समृद्धि के लिए कृषि क्षेत्र को बेहतर बाजार की जरूरत है। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे इसी तरह के एक पत्र में पवार ने फसल के बाद होने वाले निवेश और फसल को खेतों से उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए विपणन को लेकर बुनियादी ढांचे की जरूरत पर जोर दिया था।

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