न्यूज़ डेस्क। देश से लेकर विदेश तक में भारत को बदनाम करने का ठेका उठाने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है। ‘सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है…’ इस बयान से जुड़े मानहानि केस में राहुल गांधी को सूरत कोर्ट ने गुरुवार (23 मार्च 2023) को दोषी करार दिया और 2 साल की सजा एवं 15 हजार का जुर्माना भी लगाया। इसके कुछ देर बाद उसी कोर्ट ने उन्हें जमानत भी दे दी। साथ ही सजा को 30 दिन के लिए स्थगित कर दिया। सुनवाई के दौरान राहुल कोर्ट में मौजूद रहे। कोर्ट ने राहुल गांधी से पूछा कि आप क्या कहना चाहते हैं तो राहुल गांधी ने कहा मैंने किसी के खिलाफ जानबूझकर नहीं बोला। इससे किसी को नुकसान नहीं हुआ। सबसे दुखद बात यह है कि पीएम मोदी से नफ़रत करते-करते राहुल गांधी OBC वर्ग से नफ़रत करने लगे, ओबीसी वर्ग को गाली देने लगे। राहुल ने नफरत में एक समुदाय को ही गाली दे डाली।
Now what do you have to say @RahulGandhi ?
Democracy in danger?
Freedom of speech curbed? pic.twitter.com/dO74ZK7DYw— Modi Bharosa (@ModiBharosa) March 23, 2023
सूरत की अदालत ने राहुल के मोदी सरनेम वाले बयान पर 2 साल की सजा सुनाई है। माना जा रहा है कि राहुल के वकील अब उनकी जमानत की अर्जी देंगे। कोर्ट ने साथ ही साथ राहुल को जमानत भी दे दी है। कोर्ट ने इसके अलावा सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया है। अब राहुल गांधी को दोषसिद्धि को निलंबित कराने के लिए बड़ी अदालत जाना होगा। इसके लिए राहुल गांधी के पास एक महीने का समय है। अगर राहुल गांधी को उच्च अदालत से राहत नहीं मिलती है, तो कांग्रेस नेता की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। 2019 में राहुल ने पीएम मोदी को लेकर दिया था बयान।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत द्वारा 2 साल की सजा सुनाए जाने बाद उनकी संसद की सदस्यता की क्या स्थिति होगी, सुनिए संविधान विशेषज्ञ डीके दुबे के विचार#IssWakt | @NikhilSinghDD pic.twitter.com/V8vswcUHxB
— डीडी न्यूज़ (@DDNewsHindi) March 23, 2023
सांसद राहुल गांधी को सूरत जिला अदालत ने उनकी ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी को लेकर दायर आपराधिक मानहानि मामले में दो साल कैद की सजा सुनाई। हालांकि, बाद में राहुल गांधी को कोर्ट से जमानत मिल गई, लेकिन अब उनकी संसद सदस्यता पर तलवार लटक गई है। दरअसल, आपराधिक केस में दो साल या ज्यादा की सजा पर संसद की सदस्यता रद्द हो सकती है। आरपीए एक्ट (RPA Act) में यह प्रावधान है। इसके मुताबिक, भ्रष्टाचार और एनडीपीएस में दोषी करार देना ही काफी है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है कि अगर किसी MP या MLA को किसी भी कोर्ट से 2 साल या उससे ज्यादा की सजा हो गई तो इनकी सदस्यता तत्काल रद्द हो जाती है फिर चाहे वो अगली अपील कहीं भी करता रहे। उच्चतर कोर्ट अगर सजा रद्द कर दे तभी उनकी सदस्यता बच सकती है।
राहुल गांधी ने ओबीसी वर्ग को गाली दी थी,जिस कारण उन्हें सजा हुई तो सारे विपक्षी दल और @ArvindKejriwal भी उनके समर्थन में खड़े हो गये हैं । ये सब लोग मोदी जी को नफ़रत करते-करते OBC वर्ग से नफ़रत करने लगे,ओबीसी वर्ग को गाली देने लगे।
— Tajinder Pal Singh Bagga (@TajinderBagga) March 23, 2023
राहुल गांधी को अगर ये सज़ा भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए होती तो कांग्रेस को फ़ायदा हो सकता था। अगर ये सज़ा नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाने के चलते होती तो उन्हें फ़ायदा हो सकता था। मगर ये सज़ा ओबीसी समुदाय के एक हिस्से को चोर कहने के लिये हुई है। ये तथ्य जितना उछलेगा, उन्हें उल्टा नुक़सान करेगा। राहुल गांधी ने ओबीसी वर्ग को गाली दी थी, जिस कारण उन्हें सजा हुई तो सारे विपक्षी दल उनके समर्थन में खड़े हो गये हैं। ये सब लोग मोदी जी को नफ़रत करते-करते OBC वर्ग से नफ़रत करने लगे, ओबीसी वर्ग को गाली देने लगे।
साल 2013 के सितंबर महीने में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था। इसका मकसद उसी साल जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को निष्क्रिय करना था, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि दोषी पाए जाने पर सांसदों और विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी। उस समय देश भर में तत्कालीन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर आंदोलन चल रहे थे। इस अध्यादेश के आने के चलते उस समय की विपक्षी पार्टियों- बीजेपी, लेफ्ट पार्टी इत्यादि ने और जमकर कांग्रेस पर हमला शुरु कर दिया गया था। सरकार पर आरोप लग रहे थे कि वो भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा देना चाह रही है, इसलिए ये अध्यादेश लाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के हिसाब से देखें तो राहुल गांधी तो निपट गए। राहुल गांधी ने 2013 में दागी नेताओं को अयोग्य होने से बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश पर बयान देकर यूपीए सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था। इसी के खिलाफ वो अध्यादेश था जिसको राहुल गांधी ने फाड़ा था। साल 2013 के सितंबर महीने में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जब अध्यादेश पारित किया था। उस समय RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव पर भी चारा घोटाले को लेकर ‘अयोग्यता’ की तलवार लटक रही थी और राज्य सभा सांसद राशिद मसूद भ्रष्टाचार मामले में दोषी ठहराए जा चुके थे। यानी कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए यह अध्यादेश लेकर आई थी।
कांग्रेस ने 27 सितंबर 2013 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी, जहां पार्टी के नेता अध्यादेश की ‘अच्छाईयों’ को जनता के सामने पेश करने वाले थे। हालांकि, यहां अचानक से राहुल गांधी की नाटकीय अंदाज में एंट्री हुई। उन्होंने अपनी पार्टी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि ‘ये अध्यादेश पूरी तरह बकवास है, इसे फाड़ कर फेंक दिया जाना चाहिए’। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी पूरी कैबिनेट के लिए यह एक बड़ी ‘शर्मिंदगी’ वाली घटना थी।