साहब भी ईमानदारी से काम करें तो साथ में अपने सचिवालय से ये जानकारी भी निकलवा लें, कि पिछले सुराज अभियान के अप्रैल महीने में जहां-जहां वे गये थे और जो मांगे आई थीं वे पूरी हुई है कि नहीं, यदि वे देख लेंगे तो अच्छा होगा। नहीं तो गांव वाले यही कहेंगे “राजा तैं पउर साल भी आय रहे, तभो ले हमर रपटा आज ले नहीं बनिस ।’ तब वहां स्थिति काफी गंभीर हो जाएगी।
रमन सिंह अब जंगल जाएंगे, वहां देखेंगे कलेक्टर,पटवारी ठीक-ठाक काम कर रहे हैं या नहीं, ऐसे भी उन्होंने साफ-साफ कहा है कि कार्रवाई बडे अधिकारियों पर होगी बात भी सही है पटवारी अच्छा काम करे तो कलेक्टर को ईनाम मिलता है, तो दण्ड का भागी भी कलेक्टर ही होना चाहिए। डॉ. रमन सिंह की उपलब्धि यह है कि जो भी उनसे मिलता है सच सच ही बोलता है। “सरकार के मुखिया से आम आदमी जब सच बोलने लगे तो यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।” हमने देखा है कि राजीव गांधी जब बस्तर आये थे तो कई कृत्रिम संसाधन जुटाकर उपलब्धियों का ब्यौरा जुटाया गया था। वे राजीव गांधी थे, जिन्होंने सच के करीब पहुंचने की जहमत नहीं उठाई।
गौतम बुद्ध जब बालअवस्था में थे तब भी राज महल के कारिंदों को यह सख्त हिदायत थी कि वे बिलखते लोगों को न देख पाएं यानी उन्हें जो कुछ भी दिखाया जाए वह केवल हरा ही हरा हो।
एक दिन गलती से उनकी नजर दुखियारे परिवार पर पड़ी जो बिलख रहे थे, रो रहे थे, सेवादारों से पूछा, वे क्यों बिलख रहे है क्यों रो रहे है, जवाब था वे दुखी है कोई मृत्यु हो गई है, बुध ने पूछा मृत्यु, ये मृत्यु भला क्या होती है, भला मृत्यु से कोई क्यों बिलख के रोयेगा, कारिंदों के पास जवाब न था। बस फिर क्या मृत्यु और दुख की खोज में राज महल से निकल कर सन्यासी बन गए बुद्ध।
कहने का अर्थ यह है कि राजा की तिमारदारी में लगे लोग हमेशा से यहीं चाहते हैं कि राजा जो भी देखें वह उनकी नजर से देखें या जो दिखाया जा रहा है उसे ही देखें। लेकिन मुख्यमंत्री रमन सिंह छत्तीसगढ़ को वाकई में वैसा ही बनाना चाहते हैं जैसा उनका सपना है। प्रशासन डॉक्टर साहब के गांव पहुंचने पर किसी को रटवाकर तोते के समान बुलवा नहीं सकता, “क्योंकि तोताराम अब तोता नहीं रहा, वो जो बोलेगा सच ही बोलेगा।”
मुख्यमंत्री रमन सिंह डॉक्टर हैं और कई बार यह लिखा गया है कि वे डॉक्टर है और आयुर्वेद की तर्ज पर दवा देते हैं लेकिन इस उपमान के बाहर निकल हम यही कह पाएंगे कि रमन सिंह अभी तक यह नहीं जान पाए है कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं। इसी न जानने की वजह से उनका जुड़ाव बस्तर के दिग्मा विकासखण्ड रानीबोदली के झोपड़ी में रहने वाले आदिवासी से बना हुआ है।
अप्रैल मे मंत्रालय में कामकाज नहीं होंगे, बल्कि रमन सिंह ने अब ठान लिया है कि एसी में काम करने वाले अधिकारियों के साथ गांव में चला जाए। गर्मी में मंत्रालय के अधिकारी चौपाल में होंगे और रमन सिंह गांव वालों के सामने उनसे हिसाब मांगेंगे। “बहुत ही गंदे शब्दों में कहें तो राजा का इस बार का न्याय बाप बताओं या श्राद्ध करो की तर्ज पर होगा। काम किया है तो काम दिखाओ कि कहाँ किया है।”
सुराज अभियान में गांव के लोग जब उनसे मिलेंगे तो उनसे बड़ी मांग नहीं करेंगे। वे यह नहीं कहेंगे कि गांव में हवाई पट्टी बनाई जाए। उनकी मांग होगी कि ‘साहब… रपटा नहीं बना है। बरसात आने को तीन महीने बाकी है। थोड़ा सा डॉक्टर साहब भी ईमानदारी से काम करें तो साथ में अपने सचिवालय से ये जानकारी भी निकलवा लें कि पिछले अभियान के अप्रैल महीने में जहां – जहां वे गये थे और जो मांगे आई थी वे पूरी हुई है कि नहीं, यदि वे देख लेंगे तो अच्छा होगा।
नहीं तो गांव वाले यही कहेंगे ‘राजा तैं पउर साल आय रहे, तभो ले हमर रपटा आज ले नहीं बनिये ॥ तब वहां स्थिति काफी गंभीर हो जाएगी। हम नहीं चाहते हैं कि नौकरशाहों की वजह से राजा की छवि खराब हो।
** यह संपादकीय मैंने वर्ष 2010 मार्च में माननीय डाँ रमन सिंह जी के लिए लिखा था। मुझे कहीं से ज्ञात हुआ की साहब पुरे अखबार में सिर्फ संपादकीय पढ़ते है बस फिर क्या मैंने कलम उठाई और लिखा डाल।
** आप सभी को इसे ध्यान से पढ़ना चाहिए, यह आज के परिपेक्ष में ये पूर्णतः खरा उतरता है, अभी भी हमर राजा ऐला पढ़ के समझ ले सीख ले, कि राज कइसन होना चाहिए।
* नहीं तो लोग यही कहेंगे ‘राजा तैं पउर साल आय रहे, तभो ले हमर रपटा आज ले नहीं बनिस॥ तब वहां स्थिति काफी गंभीर हो जाएगी। हम नहीं चाहते हैं कि नौकरशाहों की वजह से राजा की छवि खराब हो।
** ** नहीं तो हमें लिखना पडेगा ….
** तोता राम तोता ही रहा ….
**संपादक
रविकांत …