रायपुर। पौनी पसारी का नाम सुनते ही आज के पढ़े लिखे नौजवानों को अचरज होता है लेकिन यह हमारी छत्तीसगढ़ी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा शब्द है। इसका संबंध परम्परागत रूप से व्यवसाय से जुड़े लोगों को नियमित रूप से रोजगार उपलब्ध कराने से था। बदलती हुई परिस्थितियों में जब गांवों ने नगरों का स्वरूप लिया तो इन कार्यों से जुड़े लोगों के लिए हर घर में जाकर सुविधा देने में दिक्कत होने लगी तब उनके लिए एक व्यवस्थित बाजार की कल्पना हुई। वर्तमान समय में युवाओं को रोजगार दिलाने में यह काम आज भी प्रासंगिक है। आधुनिक समय में भी इन कार्यों की महत्ता है।
प्राचीन काल में दक्षिण कौशल के नाम से विख्यात छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा के साथ ही व्यवसायिक और व्यापारिक दृष्टि से काफी सम्पन्न प्रदेश रहा है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पुरातत्व विभाग द्वारा हुए उत्खनन से यह सिद्ध होता है। महासमुंद जिले के सिरपुर में महानदी के किनारे एक सुव्यवस्थित बंदरगाह और एक बड़े व्यापारिक नगर के प्रमाण मिलते हैं। इतिहासकारों के अनुसार यहां तत्कालीन समय का व्यवस्थित सुपरमार्केट था। यहां अनाज, लौह शिल्प, काष्ठ, कपड़े आदि का व्यापार होता था, लेकिन वर्तमान परिवेश में विदेशी अंधानुकरण और मशीनीकरण के प्रयोग से परम्परागत व्यवसाय देश-दुनिया में सिमटता जा रहा है, देश के अन्य हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में भी परंपरागत व्यवसाय का दायरा कम होता जा रहा है। ऐसे में इस तरह के व्यवसाय से जुड़े लोगों को न तो बाजार व रोजगार मिल रहा है और न ही सुविधाएं मिल रही है। परंपरागत व्यवसाय से जुड़े लोगों के शिक्षा के स्तर कम होने के कारण वे दूसरे क्षेत्र में जीवकोपार्जन का इंतजाम आसानी से नही कर पाते हैं।
राज्य सरकार ने परम्परागत कार्यों से जुड़े लोगों की दिक्कतों को समझते हुए उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनने के लिए पौनी पसारी योजना शुुरू की है। पौनी पसारी के व्यवासाय से जुड़े लोगों को काम काज के लिए व्यवस्थित स्थान देने के लिए राज्य सरकार ने पौनी पसारी योजना शुरू की है। योजना में शहरों में मिट्टी के खिलौने, कपड़ा धुलाई और रंगाई, केश कला, लौह शिल्प काष्ठ शिल्प से जुड़े लोगों के लिए सभी नगरीय निकायों में पक्का चबूतरा और व्यवस्थित शेड़ बनने जा रहे हैं। इस योजना में रायपुर शहर में सड़डू और कचना में शेड़ आबंटित कर योजना शुरू की गई है। इससे लोगों को अपने व्यवसाय को बढ़ाने में मदद मिलेगी साथ ही उनकी आमदनी में वृद्धि होगी।
विशेष बात यह भी है कि छत्तीसगढ़ में परंपरागत व्यवसाय करने वालों की संख्या अधिक है, लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। जिसके चलते बेरोजगारी, गरीबी बढ़ रही है। कुछ लोग अपराध की ओर अग्रसर होने मजबूर हो रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा परंपरागत पौनी-पसारी व्यवसाय को योजना बनाकर क्रियान्वित करना इस तरह के व्यवसाय से जुड़े लोगों और उनके परिवारों के उत्थान के लिए प्रशंसनीय कदम है।
यह बताना उचित होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार के परंपरागत व्यवसाय को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए पौनी-पसारी योजना प्रारंभ की है। इस योजना के तहत नगरीय निकायों के बाजारों में परंपरागत व्यवसाय से जुड़े लोगों को जगह उपलब्ध कराए जाने के साथ ही व्यवसाय की सुविधा महैया करायी जा रही है। योजना से लगभग 12 हजार परिवारों को रोजगार मिल सकेगा। प्रदेश के सभी 168 नगरीय निकायों में इस योजना के जरिए जन सामान्य और युवाओं को आजीविका के अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। राज्य सरकार ने आगामी दो वर्ष में इस योजना के लिए 73 करोड़ रूपए से अधिक की राशि खर्च करने का लक्ष्य रखा है।
प्राचीन सभ्यता में भी पौनी-पसारी का व्यवसाय काफी सुदृढ़ था। तत्कालीन समय में लोग पढ़े-लिखे नहीं होते थे। वे परम्परागत रूप से दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले और जीवकोपार्जन के लिए आवश्यक चीजों का स्थानीय हाट-बाजारों से अदला-बदली कर या प्रचलित मुद्रा देकर क्रय करते थे। चूंकि प्राचीन सभ्यता नगरीय सभ्यता थी। अतः नगरीय हाट-बाजारों में उपभोग की आवश्यक वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हो जाती रही होंगी। वहीं परम्परागत व्यवसाय से जुड़े लोगों को रोजगार के लिए इधर-ऊधर भटकना नहीं पड़ता था। प्राचीन ग्रंथों में इस तथ्य का अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है कि उन दिनों व्यक्तिगत स्वामित्व वाले निजी और पारिवारिक व्यवसायों में ज्यादातर लोग जुड़े थे। भारतीय धर्म शास्त्रों में भी प्राचीन समाज की आर्थिकी का विश्लेषण किया गया है। लोगों ने सामूहिक हितों के लिए संगठित व्यापार अपनाकर अपनी सूझ-बुझ का परिचय दिया था। इसी कारण वे आर्थिक एवं सामाजिक रूप से काफी समृद्ध थे।
साप्ताहिक बाजार एवं पौनी-पसारी स्थानीय छत्तीसगढ़ी संस्कृति का अभिन्न अंग है। साप्ताहिक बाजारों के माध्यम से जहां एक ओर स्थानीय जनता अपने जीवन-यापन के लिए आवश्यक सामान की खरीदी करते थे, वहीं पौनी-पसारी के माध्यम से स्थानीय जन समुदाय की आवश्यकताओं तथा सेवाओं की पूर्ति भी सुनिश्चित की जाती थी, जिसमें स्थानीय परंपरागत व्यवसायों जैसे-लोहे से संबंधित कार्यों, मिट्टी के बर्तन, कपड़े धुलाई, जूते-चप्पल तैयार करना, लकड़ी से संबंधित कार्य, पशुओं के लिए चारा, सब्जी-भाजी उत्पादन, कपड़ों की बुनाई, सिलाई, कंबल, मूर्तियां बनाना, फूलों का व्यवसाय, पूजन सामग्री, बांस का टोकना, सूपा, केशकर्तन, दोना-पत्तल, चटाई तैयार करना तथा आभूषण एवं सौंदर्य सामग्री इत्यादि का व्यवसाय ’’पौनी-पसारी’’ व्यवसाय के रूप में जाना जाता रहा है, जिसमें परिवार के मुखिया के साथ-साथ अन्य सदस्यों को भी रोजगार प्राप्त होता था। बढ़ते हुए शहरीकरण तथा मशीनों के अंधाधुंध उपयोग के कारण, पौनी-पसारी से संबंधित अधिकांश व्यवसाय शहरों में लुप्त होते जा रहे है। परंपरागत व्यवसायों तथा छत्तीसगढ़ की स्थानीय संस्कृति एवं परंपराओं को जीवन्त करने एवं इससे स्थानीय समाज तथा बेरोजगारों के लिए व्यवसाय के अवसरों का सृजन करने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ शासन की प्रेरणा से राज्य प्रवर्तित पौनी-पसारी योजना, नवीन परिवेश में नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग द्वारा प्रारंभ की गई है।
इस योजना में असंगठित क्षेत्र के परंपरागत व्यवसय करने हेतु इच्छुक व्यक्त्यिों एवं स्व-सहायता समूह की महिलाओं को कौशल उन्नयन उपरान्त सघन शहरी क्षेत्रों में व्यवसाय हेतु किफायती दैनिक शुल्क पर चबूतरा उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है। यह योजना छत्तीसगढ़ की प्राचीन परंपरा के अंतर्गत ’’पौनी-पसारी’’ व्यवसाय को नवजीवन प्रदान करने में सहायक होगी।
योजना का क्रियान्वयन शहर के प्रमुख स्थलों को केन्द्र बिन्दु बनाकर किया जा रहा है। ’’पौनी-पसारी’’ योजना के अंतर्गत मानक प्राक्कलन एवं ड्राईंग तैयार की गई है। प्रत्येक नगर पंचायत हेतु 01, नगर पालिका हेतु 02, नगर निगमों (रायपुर को छोड़कर) हेतु 04 एवं नगर निगम रायपुर के लिए 08 पौनी पसारी बाजार की स्वीकृति प्रदान की जाएगी। प्रति बाजार निर्माण के लिए 30 लाख रूपए का अनुदान दिए जाने का प्रावधान है। पौनी पसारी बाजार शासकीय-निकाय की भूमि पर स्थापित किया जा सकेगा।
पौनी पसारी योजना के तहत ऐसे परंपरागत व्यवसाय से जुड़े परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराने की पहल मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल और नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया की दूूूर-दृष्टि सोच का परिचायक है। इससे इस व्यवसाय से जुडे़ स्थानीय लोगों और उनके परिवारों को रोजगार मिलेगा, वहीं छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परम्परा को भी सहेजा जा सकेगा।
- डॉ. ओमप्रकाश डहरिया