‘बिहार में का बा’ वाली नेहा सिंह राठौर के खिलाफ जौनपुर में मुकदमा, आपत्तिजनक शैली और भाव-भंगिमा का आरोप

न्यूज़ डेस्क। बिहार में का बा….गाने के बाद तेजी से चर्चा मेंं आईं बिहार की लोकगायिका नेहा सिंह राठौर के खिलाफ जौनपुर में मुकदमा दर्ज किया गया है। नेहा के गाने चला देखि आई जौनपुर के बीएड कॉलेज’ को आपत्तिजनक बताते हुए नेहा के खिलाफ मंगलवार को ACJM चतुर्थ की कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया।

कहा गया है कि गाना जारी होने के बाद अधिवक्ता हिमांशु श्रीवास्तव व उपेंद्र विक्रम सिंह ने लीगल नोटिस जारी कर नेहा से लिखित मांफी के लिए कहा था। गायिका की ओर से जवाब न मिलने पर बरसठी के पुरेसवा निवासी रवि प्रकाश पाल की ओर से मुकदमा दायर किया गया है। कोर्ट ने सुनवाई के लिए 20 फरवरी की तिथि नियत की है।

आरोप लगाया गया है कि गायिका ने इस गाने में आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया और इसे सोशल मीडिया पर प्रमोट किया गया। गाने की शैली एवं भाव भंगिमा के साथ शब्दों को अपमानजनक बताया गया है। गाने में यहां से बीएड करने वाली महिलाओं के बारे में अपमानजनक शब्द कहे गए हैं। इससे महिलाओं की गरिमा गिरी है। वादकारियों को भी मानसिक कष्ट पहुंचा।

दिनांक 17 दिसंबर 2020 को वादी व गवाह धनंजय तिवारी व प्रमोद यादव ने गाना सुना। गाने में महिलाओं के बारे में नकारात्मक छवि समाज में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया। पब्लिसिटी स्टंट के लिए गाने में अनर्गल, बेबुनियाद, मिथ्या एवं आधारहीन शब्द प्रयोग किए गए हैं। जो कानूनन दंडनीय अपराध की श्रेणी में आते हैं। कोर्ट से FIR दर्ज कराने की मांग की गई है।

नेहा के गाने को लेकर विवाद का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले नेहा ने अपने गाने से ऐतिहासिक इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र संस्कृति को निशाना बनाया था। इलाहाबाद के छात्रों को बम, कट्टा, झगड़ा कर के कर्नल गंज से कटरा तक परेशान करने वाला बताया था। इतना ही नहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने की वजह सिर्फ चुनाव लड़ना ही गायिका की ओर से बताया गया था। इलाहाबाद के छात्र-छात्राओं ने नेहा के इस गीत का काफी विरोध किया था। ट्वीटर और फेसबुक अकाउंट को रिपोर्ट भी की गई थी।

तब नेहा ने ट्वीटर पर सफाई दी थी कि आपको इतना भावुक होने की आवश्यकता नहीं है। क्यों बात-बात पर आहत हो जाते हैं? जिस इलाहाबाद विश्वविद्यालय की संस्कृति को अपमानित करने का आरोप आप मुझपर लगा रहे हैं, वो निश्चित रूप से महान हुआ करता था, विश्वविद्यालय को ‘ऑक्सफ़ोर्ड ऑफ ईस्ट’ भी कहा जाता था। पर अब ऐसा है क्या? एक ऐतिहासिक बुलंद इमारत में डिग्री कॉलेज बनकर रह गया है इलाहाबाद विश्वविद्यालय। और इसके जिम्मेदार हैं कुछ ऐसे ‘समझदार’ लोग, जो बिना बात, बात-बात पर आहत होने का स्वांग करते हैं, और विश्वविद्यालय के मूल्यों को नष्ट करते हैं।

नेहा ने कहा था कि University stands for universal ideas के मूल को भूलकर, हर शाखा के एक वृक्ष बनने की क्षमता की काट-छाँट करने के बाद अगर आप उम्मीद करते हैं कि ये प्यारा विश्वविद्यालय अपनी खोई हुई गरिमा वापस पा सकेगा, तो भरोसा कीजिये, आप गलत सोच रहे हैं। जिस तरह से राजनीतिज्ञों की आलोचना को संविधान की आलोचना नहीं माना जा सकता, उसी तरह से विश्वविद्यालय के मठाधीशों की आलोचना को विश्वविद्यालय की आलोचना नहीं समझा जाना चाहिए। बाकी आलोचना से बाहर तो हमारा संविधान भी नहीं है।

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