वैश्विक विकास पर चर्चा चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती- प्रधानमंत्री मोदी

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार, 21 दिसंबर को भारत-जापान संवाद सम्मेलन को संबोधित किया। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म के साहित्य और दर्शन का यह बहुमूल्‍य खजाना अलग-अलग देशों और भाषाओं में अनेक मठों में पाया जाता है। मैं आज ऐसे सभी पारंपरिक बौद्ध साहित्य और धर्म ग्रंथों के लिए पुस्तकालयों के सृजन का प्रस्ताव करना चाहता हूं। हम भारत में इस तरह की सुविधा का निर्माण करने में प्रसन्नता का अनुभव करेंगे और इसके लिए उचित संसाधन भी उपलब्ध कराएंगे। यह पुस्तकालय विभिन्न देशों से इस प्रकार के बौद्ध साहित्य की डिजिटल प्रतियों का संग्रह करेगा। इसका उद्देश्य ऐसे साहित्‍य का अनुवाद करना और इसे बौद्ध धर्म के सभी भिक्षुओं और विद्वानों को स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराना है। यह पुस्तकालय ऐसे साहित्य का भंडार मात्र ही नहीं होगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह शोध और संवाद के लिए एक मंच तथा मनुष्यों के बीच, समाज के बीच तथा मनुष्य और प्रकृति के बीच एक सच्चा ‘संवाद’ भी होगा। इसके शोध में यह जांच करना भी शामिल होगा कि बुद्ध के संदेश किस प्रकार समकालीन चुनौतियों के मुकाबले हमारे आधुनिक विश्‍व का मार्गदर्शन कर सकते हैं। इनमें गरीबी, जातिवाद, उग्रवाद, लिंग भेदभाव, जलवायु परिवर्तन और ऐसी कई अन्य चुनौतियां शामिल हैं।

उन्होंने कहा, ‘लगभग तीन सप्ताह पहले मैं सारनाथ गया था। सारनाथ वह जगह है जहां गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। सारनाथ से प्रकट हुआ यह ज्योति पुंज पूरी दुनिया में फैल गया और इसने करुणा, महानता और सबसे बढ़कर पूरी मानवता की भलाई के लिए मानव कल्‍याण को गले लगाया। इसने धीरे-धीरे शांतिपूवर्क विश्‍व इतिहास के मार्ग को ही परिवर्तित कर दिया। सारनाथ में ही भगवान बुद्ध ने धम्‍म के अपने आदर्श के बारे में विस्‍तार से उपदेश दिया था। धम्‍म के केन्‍द्र में मानव और अन्‍य मनुष्‍यों के साथ उनका संबंध स्थित हैं। इस प्रकार अन्‍य मनुष्‍यों के जीवन में सकारात्मक शक्ति होना ही सबसे महत्वपूर्ण है। संवाद ऐसा होना चाहिए जो हमारे इस ग्रह में सकारात्मकता, एकता और करुणा की भावना का प्रसार करे और वह भी ऐसे समय में जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।’

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह नए दशक का पहला संवाद है। यह मानव इतिहास के एक महत्वपूर्ण दौर में आयोजित किया जा रहा है। आज किये जाने वाले हमारे कार्य हमारे आने वाले समय का आकार और रास्‍ता तय करेंगे। यह दशक और उससे आगे का समय उन समाजों का होगा, जो सीखने और साथ-साथ नव परिवर्तन करने पर उचित ध्‍यान देंगे। यह उज्‍ज्‍वल युवा मस्तिष्‍कों को पोषित करने के बारे में भी है, जिससे आने वाले समय में मानवता के मूल्यों को बढ़ावा मिलेगा। शिक्षण ऐसा होनी चाहिए जिससे नवाचार को आगे बढ़ाया जा सके। कुल मिलाकर नवाचार मानव सशक्तिकरण का मुख्‍य आधार है।

भारत-जापान संवाद सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि समाज जो खुले दिमाग वाला लोकतांत्रिक और पारदर्शी है वही नवाचार के लिए अधिक उपयुक्‍त है। इसलिए प्रगतिरूपी प्रतिमान को बदलने का अब पहले की अपेक्षा बेहतर समय है। वैश्विक विकास की चर्चा कुछ लोगों के बीच ही नहीं की जा सकती है। इसके लिए दायरे का बड़ा होना जरूरी है। इसके लिए कार्य सूची भी व्‍यापक होनी चाहिए। प्रगति के स्‍वरूप को मानव केन्द्रित दृष्टिकोण का अनुसरण करना चाहिए और वह हमारे परिवेश के अनुरूप होना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि शत्रुता से कभी शांति हासिल नहीं होगी। विगत में, मानवता ने सहयोग के बजाय टकराव का रास्ता अपनाया। साम्राज्यवाद से लेकर विश्व युद्ध तक, हथियारों की दौड़ से लेकर अंतरिक्ष की दौड़ तक, हमने संवाद किए लेकिन उनका उद्देश्‍य दूसरों को नीचे खींचना था। आइये, अब हम मिलकर ऊपर उठें। गौतम बुद्ध की शिक्षाओं से हमें शत्रुता को सशक्तता में बदलने की शक्ति मिलती है। उनकी शिक्षाएँ हमें बड़ा दिलवाला बनाती हैं। वे हमें विगत से सीखने और बेहतर भविष्य बनाने की दिशा में काम करने की शिक्षा देती हैं। यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए सबसे अच्छी सेवा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘संवाद’ का सार घनिष्‍ठता बनाए रखना है। ‘संवाद’ हमारे अंदर बेहतर समावेश करे, यह हमारे प्राचीन मूल्‍यों को आकर्षित करने और आने वाले समय के लिए अपने आपको तैयार करने का समय है। हमें मानवतावाद को अपनी नीतियों के केन्‍द्र में रखना चाहिए। हमें अपने अस्तित्व के केंद्रीय स्तंभ के रूप में प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व स्‍थापित करना चाहिए। स्‍वयं अपने साथ, अपने अन्‍य साथियों और प्रकृति के साथ ‘संवाद’ इस पथ पर हमारा मार्ग प्रकाशित कर सकता है।

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